ग्रेटर हैदराबाद नगर निगम चुनाव भले ही भाजपा ने अमित शाह से लेकर योगी आदित्यनाथ जैसे स्ट्रार प्रचारकों एवं लगभग पूरे केन्द्रीय मंत्रिमंडल सहित प्रचार में पूरी फौज उतार दी थी मगर नतीजों से एक बात साफ है कि वह औवैसी के गढ़ को हिला नहीं पाई है। 150 सीटों के चुनाव में ओवैसी ने 51 सीटों पर ही उम्मीदवार उतारे थे, उसके बावजूद उनकी पार्टी एआईएमआईएम 44 सीटें जीतने में सफल रही।
उल्लेखनीय है कि चुनाव में ओवैसी ने 51 सीटों पर ही उम्मीदवार उतारे थे, उसके बावजूद उनकी पार्टी एआईएमआईएम 44 सीटें जीतने में सफल रही जबकि भाजपा 149 उम्मीदवार खड़े कर 48 एवं टीआरएस पूरी 150 सीटों पर लड़ने के बाद 55 सीटें जीती । भाजपा ने हालांकि पिछले चुनाव के मुकाबले में जबरदस्त जीत हासिल की है। खास बात यह है कि अब मेयर चुनाव के लिए ओवैसी किंग मेकर की भूमिका भी निभा सकते हैं।
नतीजों के बाद असदुद्दीन ओवैसी ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा कि वह पार्टी के प्रदर्शन से खुश है। हमारा स्ट्राइक रेट सबसे अच्छा है। इस दौरान उन्होंने कहा कि जहां-जहां अमित शाह और योगी आदित्यनाथ प्रचार करने गए, वहां-वहां भाजपा को हार मिली है।
चुनावी रैलियों में, ओवैसी ने पूरे चुनाव के दौरान मुस्लिम बाहुल्य सीटों पर पूरा ही फोकस किया। उन्होंने स्थानीय मुद्दें उठाए और मोदी को घेरा। साथ ही टिकट वितरण मे मुस्लिम, दलितों पर ज्यादा फोकस किया । साथ ही साथ योगी के हैदराबाद को भाग्यनगर बनाने के मुद्दे पर फोकस रखा ।इसी का परिणाम था कि उनके गढ़ में पार्टी का स्ट्राइक रेट शानदार रहा । इस वजह से न तो टीआरएस की तरह उनकी सीट घटी और न वोट प्रतिशत घटा। लेकिन भाजपा के आने से यह जरूर हुआ कि वह तीसरे नंबर पर सिमट गए और अपना विस्तार नहीं कर पाए।
भाजपा की बड़ी कामयाबी ने मेयर के चुनाव को फंसा दिया है। क्योंकि टीआरएस जो कि पिछले चुनाव में 99 सीटें जीती थी, उसे 150 सीटों वाले नगरनिगम में बहुमत नहीं मिला है। 150 वार्ड सदस्यों वाले हैदराबाद नगर निगम चुनाव में सत्तारूढ़ टीआरएस को 55 भाजपा ने 48 सीटें जीती हैं। जबकि असदुद्दीन ओवैसी के नेतृत्व वाले एआइएमआइएम ने 44 सीटें जीती हैं। चुनाव में कांग्रेस का प्रदर्शन निराशाजनक रहा है और उसे महज दो सीटें मिली हैं।
ऐसे में उसे अब अपना मेयर चुनने के लिए एआईएमआईएम या फिर भाजपा का साथ लेना होगा। जहां तक ओवैसी का बात है तो उन्होंने अपने पत्ते अभी नहीं खोले हैं। और मुख्यमंत्री चंद्रशेखर राव के लिए भाजपा का दामन थामन आसान नहीं होगा, क्योंकि ऐसा करने के लिए उन्हें अपनी राष्ट्रीय महत्वाकांक्षा पर रोक लगानी होगी। <