आखिर क्यों कहना पड़ता है -‘आई कुड नॉट बी हिन्दू’ !

आज संविधान निर्माता बाबा साहेब डॉ भीमराव अंबेडकर का महापरिनिर्वाण दिवस है, बाबा साहब ने अपने लेखन में सामाजिक विषमता के कारक तत्वों की खोज करते हुए पाया था कि हिन्दू धर्म एक चार मंजिला इमारत है,जिसमें सीढ़ियां नहीं है, जो जहां जन्मता है,वहीं मरता है। उन्होंने कहा कि इस धर्म में पैदा हो जाना मेरे बस की बात नहीं है, पर मैं इसमें मरूंगा नहीं.. और अंततः उन्होंने 14 अक्टूबर 1956 में बुद्ध की शरण ली ।

डॉ अम्बेडकर से परिचय होने से पहले ही मेरा सामना हिन्दूराष्ट्र के चिन्तनकारों से हो चुका था, जिनके प्रभाव में मैं उस हिन्दूराज को लाने में सक्रिय रहा ,जिसे डॉ अम्बेडकर ने इस देश समाज के लिए सर्वथा अहितकारी बताया। वे जीवन भर कट्टर हिंदुओं की नफरत के शिकार रहे और आज हम देखते हैं कि उनकी मृत्यु के बरसों बाद भी उनका नाम, उनका लिखा और उनकी प्रतिमाएं जातिवादी लोगों की घृणा की शिकार होती हैं।

आज जब मैं अपनी उस यात्रा पर दृष्टि करता हूं तो मैं महसूस करता हूं कि मैंने भी हर संभव कोशिश तो की ही थी,एक अच्छा और सच्चा हिन्दू बनने की,दलित परिवार में पैदा हुआ,पर बचपन में ही मन्दिर का पुजारी बना,वैदिक कर्मकांड सीखे,संस्कृत पढ़ी,श्लोक रटे, मंत्र याद किये,ज्योतिष पढ़ा,पञ्चाङ्ग, कुंडली ,हस्तरेखा देखना,मुहूर्त निकालना सीखा।

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की शाखा में गया, प्रशिक्षित हुआ, मुख्यशिक्षक बना, कार्यवाह रहा, संघ कार्यालय का प्रमुख बना,सन 1990 में महज 15 साल की उम्र में बाबरी मस्ज़िद तोड़ने निकला, टूंडला स्टेशन पर गिरफ्तार हुआ, आगरा की जेल में 10 दिन बिताए, रिहा होने के बाद घर लौटा।

12 मार्च 1991 को भीलवाड़ा जिला मुख्यालय पर हुए दंगे में शिरकत की पुलिस पर पत्थर फेंके और बाद में पुलिस के हत्थे चढ़कर जमकर लाठियां भी खाई, सब कुछ सहा, क्योंकि हिन्दू राष्ट्र बनाने के लिए जीवन न्योछावर करने को तैयार था।

मैं तो प्रचारक बनने को आतुर था,लेकिन मेरी जाति ने साथ नहीं दिया, नहीं बन पाया,मेरी अध्ययनशीलता व बुद्धिजीविता का यह कह कर मख़ौल उड़ाया गया कि हमें प्रचारक चाहिये, विचारक नहीं।

मैं लगभग पांच साल तक कट्टर स्वयंसेवक, प्रतिबद्ध कारसेवक और कर्मकांडी शुद्ध कट्टर हिन्दू के रूप में जीया और लोगों को भी कट्टरता वादी हिन्दू बनने के लिए प्रेरित करता रहा।

लेकिन मैं हिन्दू धर्म की वर्णाश्रम व्यवस्था के जातीय सोपान के जिस पायदान पर खड़ा था, वहां मेरे लिए कोई जगह न थी,मेरे घर का बना खाना तक फेंक दिया गया और साथ ही मुझे भी। जिन लोगों ने मेरे साथ जातीय भेदभाव किया, वे आज सब भूल चुके है, उन्हें ऐसी कोई मामूली सी घटना के बारे में कुछ भी याद नहीं हैं। संघ के अधिकृत लोग इसे संघ का अधिकृत व्यवहार नहीं मानते हैं तो कईं लोगों को इसमें कुछ भी बुराई नहीं लगती है।

मेरे जेहन में सवालों का अंधड़ है कि इस देश के बहुसंख्यक हिन्दू जब हिन्दू राष्ट्र बना लेंगे, तब हमारा स्थान,  भागीदारी और हमारे मौलिक अधिकार कहाँ होंगे,कुछ हक भी होंगे कि नहीं होंगे ?

कई सवाल हैं,एक हिन्दू ,अच्छा और कट्टर हिन्दू होने की तमाम कोशिशों के बाद भी मैं एक सामान्य हिन्दू होने में भी सफल क्यों नहीं हो सका ? इस सफर को एक किताब के रूप में हिंदी में ‘मैं एक कारसेवक था’ के तौर पर नवारुण प्रकाशन के संजय जोशी लाये और अब उसका अंग्रेजी अनुवाद प्रस्तुत किया है- नवयाना पब्लिकेशन ने।

किताब का नाम है ‘आई कुड नोट बी हिन्दू’ ,इसे हिंदी से इंग्लिश में अनुवाद करने का श्रमसाध्य काम जेएनयू की प्रोफेसर डॉ निवेदिता मेनन ने किया है,उनका बहुत आभार, किताब के प्रकाशन के लिए नवयाना के एस आनंद, संपादन के लिए यूसुफ मलिक व नवयाना के एलेक्स का आभार ।

इस किताब के लिए अपनी टिप्पणी भेजने के लिए डॉ. शशि थरूर (पूर्व केंद्रीय मंत्री), सुविख्यात तमिल लेखक पेरुमाल मुरुगन, मलयालम के लोकप्रिय लेखक बेन्यामिन, सिंथिया स्टीफन, जाने माने अर्थशास्त्री प्रोफ़ेसर ज्यां ड्रेज़ और बाबा साहब के जीवनीकार क्रिस्टोफ जेफरलोट (लंदन) का भी बहुत-बहुत आभार ।

आज बाबा साहब के महापरिनिर्वाण दिवस 6 दिसम्बर है, जिस दिन को दक्षिणपंथी समूहों ने अयोध्या में बाबरी मस्जिद को गिराने के लिए चुना था, इस अवसर पर किताब की उद्घोषणा बाबा साहेब को एक विन्रम श्रद्धांजलि भी है और उनके बताए मार्ग पर आगे बढ़ने का संकेत भी ।

हिंदी में जिस तरह ‘मैं एक कारसेवक था’ को आपका स्नेह मिला, इस अंग्रेजी किताब को भी आपका प्यार मिले, इसमें बहुत सी अनकही बातें हैं जो पहली बार कही गयी है,सारे तथ्य व नाम और घटनाएं अपनी प्रमाणिकता के साथ मौजूद है।

यह किताब 14 जनवरी 2020 से हर बुक स्टॉल पर उपलब्ध रहेगी, इसका वितरण हार्पर एंड कोलिन्स कर रहे हैं, आप इसे रेलवे स्टेशन से लेकर एयरपोर्ट तक की हर बुक स्टॉल से ले सकेंगे और अमेज़ॉन आदि पर भी उपलब्ध रहेगी।

जिन जिन मित्रों ने हिंदी किताब पढ़ी है,अगर उनकी इंग्लिश थोड़ी सी भी ठीक है,वे आराम से इसे समझ पाएंगे,इसलिये जरूर पढ़ियेगा और अपनी राय से अवगत कराइयेगा।

-भंवर मेघवंशी
( सम्पादक- शून्यकाल डॉटकॉम )

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