प्रधानमंत्री के डेढ़ घंटे तक चले भाषण को समझने के 10 सूत्र

नवीन कुमार

दिल्ली की सीमा पर डटे किसानों और सरकार के गतिरोध के बीच पूरे देश को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के भाषण का इंतजार था कि वो इस गतिरोध खत्म करने का क्या मंत्र देते हैं। तो क्या ऐसा हुआ? क्या वह किसानों में कोई विश्वास जता पाए? क्या उन्होंने कोई नई बात की? क्या उनके भाषण से किसानों की आशंकाएं खत्म हो जा जाएंगी?

ऐसे कई सवाल आपके भी मन में होंगे। वो बोलते रहे, बोलते रहे, बोलते रहे। यह उनके राजनीतिक जीवन के सबसे लंबे भाषणों में से एक था। लगभग डेढ़ घंटे तक वह बोलते रहे। इसमें से भाषण का हिस्सा 51 मिनट था। इसको डिकोड करने की जरूरत है। इतने लंबे भाषण के जरिये वो साबित क्या करना चाहते थे? मोटे तौर पर दस सूत्रों में इसे समझना आसान होगा। इसको ठीक से समझना पड़ेगा क्योंकि उन्होंने बहुत सारी बातें सुलझाने के बजाय उलझा दी हैं।

नंबर एक। नरेंद्र मोदी फूट डालो और राज करो की नीति पर चल रहे हैं। मतलब किसान और किसान के बीच फूट डालो। यह फूट उन्होंने कई तरीके से डालने की कोशिश की। पंजाब के किसान और बिहार के किसान में। हरियाणा के किसान और केरल के किसान में। राजस्थान के किसान में और मध्य प्रदेश के किसान में। सबसे बड़ी फूट उन्होंने डालने की कोशिश की है छोटे किसान और बड़े किसान में। पीएम मोदी ने कहा कि 80 फीसद छोटे किसान हैं और नये कृषि कानूनों से वो खुश हैं। हमें उन किसानों का समर्थन हासिल है। ये 80 फीसद वो किसान हैं जो खाने भर का अनाज उगाते हैं या बहुत मामूली उपज बाजार में बेचते हैं। उन्होंने घुमा-फिराकर यह भी कहा कि वो 20 फीसद किसान भी मोटे तौर पर सिर्फ पंजाब के हैं। इसका मतलब मोदी ने इशारा किया कि एक राज्य के चंद बड़े किसानों के आंदोलन पर ध्यान देने की जरूरत नहीं है।

नंबर दो। प्रधानमंत्री को किसानों के कल्याण को लेकर सरकार से ज्यादा पूंजीपतियों पर भरोसा है। वह कहना चाहते थे कि जो काम आज तक हम नहीं कर सके, पिछली सरकारें नहीं कर सकीं, उसे अंबानी, अडानी, बियानी और दूसरे पूंजीपति कर देंगे। चाहे वह उपज की कीमत हो, टेक्नोलॉजी हो, बाजार हो या उपज का व्यापार हो। उनके इस विचार पर किसान आंदोलन से कोई फर्क नहीं पड़ता। इससे एक बात साफ है कि पीएम मोदी को पूंजीपतियों पर अटूट भरोसा है। कम से कम देश के किसानों से तो बहुत-बहुत ज्यादा।

नंबर तीन। पीएम ने अपने भाषण में कहा कि दिल्ली की सीमाओं पर आए हुए ज्यादार किसान किसान हैं ही नहीं। वह पॉलिटिकल एजेंट हैं और भटके हुए हैं, बरगलाए हुए हैं। नासमझ हैं, नादान हैं। पीएम ने साफ कहा कि आंदोलनकारियों में चंद गिने हुए लोग ही किसान हैं और उन्हें भी भटका दिया गया है। मतलब पीएम मोदी कह रहे हैं कि न तो किसान उनका कहा सुन रहे हैं, न गृह मंत्री अमित शाह का कहा सुन रहे हैं, न कृषि मंत्री नरेंद्र तोमर को सुन रहे हैं, न रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह को सुन रहे हैं और न ही वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल को सुन रहे हैं। जिन राहुल गांधी, अरविंद केजरीवाल, ममता बनर्जी, उद्धव ठाकरे, पिनरई विजयन, स्तालिन, केसीआर के बारे में बीजेपी वाले दिन भर कहते रहते हैं कि उन्हें कोई सुनता नहीं हैं उनके बारे में मोदी कह रहे हैं किसान सिर्फ उनकी सुन रहे हैं। विपक्ष को इस पर खुश होना चाहिए।

नंबर चार। मोदी ने कहा कि कि किसानों पर राजनीति नहीं होनी चाहिए। लेकिन उन्होंने राजनीति के अलावा कुछ नहीं किया। 51 मिनट के भाषण में लगभग 17 मिनट यानि एक तिहाई समय में वो घुमा फिराकर बंगाल और केरल के बारे में बोलते रहे। खासकर बंगाल के बारे में। ये बात किसी से छिपी नहीं है कि बंगाल में चुनाव होने हैं और पूरी बीजेपी ममता बनर्जी को सत्ता से हटाने में जुटी हुई है। दो हजार रुपये की किसान सम्मान निधि बंगाल के किसानों को देने में ममता बनर्जी का अड़ंगा बहुत बड़ा राजनीतिक मुद्दा बनने जा रहा है। जैसे यह किसानों की सारी समस्याओं का समाधान हो।

नंबर पांच और सबसे जरूरी। कृषि कानूनों को सरकार वापस नहीं लेने जा रही है। पीएम मोदी ने बार-बार कहा कि आजतक जो नहीं हुआ वो होने जा रहा है। किसान फायदा लेंगे कैसे नहीं? लेना पड़ेगा। हमें पूंजीपतियों पर पूरा भरोसा है कि वो किसानों का शोषण नहीं करेंगे। गोया देश के पूंजीपति अपनी तिजोरी भरने के लिए नहीं, अब से किसानों के फायदे के लिए काम करने वाले हैं।

नंबर छह। प्रधानमंत्री ने एक बार भी नहीं कहा कि सरकार एमएसपी की गारंटी लेती है। या हम खुली खरीद के मामले में ऐसी कोई व्यवस्था लागू करने पर सोच सकते हैं। मतलब कानून जैसा है वैसा ही अच्छा है। किसानों को इस पर ऐतबार करना ही होगा।

नंबर सात। पीएम मोदी ने सारा इल्जाम किसानों के माथे पर डाल दिया। मतलब हम तो बात करने के लिए तैयार हैं, किसान ही नहीं करना चाहते। एक शब्द पूरी सरकार बार-बार इस्तेमाल करती है। खुले मन से। दरवाजा बंद करके मन कैसे खोलते हैं इसे वही बेहतर समझते होंगे।

नंबर आठ। पीएम मोदी ने 51 मिनट के भाषण में किसान आंदोलन का नोटिस लेने से ही इंकार कर दिया। जेल में बंद पाकिस्तान के भ्रष्ट पूर्व प्रधानमंत्री नवाज शरीफ की मां के निधन तक पर द्रवित होने वाले उन्होंने आंदोलन के दौरान अब तक करीब 40 किसानों की मौत पर एक शब्द भी खर्च नहीं किया। वह साबित करना चाहते थे कि ऐसे आंदोलनों से उन पर कोई फर्क नहीं पड़ता। किसानों को जो करना हो करें। हमने जो कर दिया सो कर दिया।

नंबर नौ। प्रधानमंत्री ने एक बार भी नहीं कहा कि वह किसानों को मिलने वाली जिस टेक्नोलॉजी की बात कर रहे हैं कि वो करार करने वाली कंपनियां देंगी, उसका खर्चा कौन उठाएगा। कई इलाकों से ऐसी खबरें हैं कि करार करने वाली कंपनियां अपना ही बताया हुआ बीज खाद और कीटनाशक खरीदने पर मजबूर कर रही हैं। मतलब किसानों से एक हाथ से खरीद रही हैं और पीछे से उसी को अपना माल बेच रही हैं।

नंबर दस। पीएम मोदी ने कहा कि कहीं भी एपीएमसी की मंडी बंद नहीं हुई है। उन्हें शायद जानकारी नहीं है। मध्य प्रदेश में कई मंडियों पर ताला लटक चुका है। न तो वहां खरीद हो रही है और न ही बिक्री। यहां जो समझने की बात है वो यह कि उन्होंने ये भी नहीं कहा कि हम मंडी सिस्टम को और आगे बढ़ाएंगे या और नई मंडियां खोलेंगे।

टीवी का बक्सा सुबह से लेकर शाम तक बीजेपी का भोंपू बना रहा। पहले राजनाथ सिंह का भाषण। फिर अमित शाह का भाषण, फिर किसानों से बातचीत और फिर नरेंद्र मोदी का भाषण। इसके बाद सारे भाषणों की सप्रसंग व्याख्या। सिंघु बॉर्डर से लेकर टिकरी और गाजीपुर बॉर्डर तक बैठे हुए किसानों ने पीएम मोदी के भाषण को छूटते ही खारिज कर दिया और कहा कि सरकार सिर्फ लफ्फाजी कर रही है और इससे आंदोलन पर कोई फर्क नहीं पड़ता। किसानों ने साफ-साफ कहा कि नरेंद्र मोदी कॉरपोरेट कंपनियों का साथ देने के लिए किसानों की न सुनने को तैयार हैं और न ही उन्हें समझने को, लेकिन वो एक बात को अच्छी तरह समझ लें कि आंदोलनकारी किसानों को किसान मानने से मना करके हालात का कोई हल निकलने वाला नहीं है। हम आने वाले दिनों में आंदोलन को और तेज करेंगे। सरकार मुगालते में है कि शुतुरमुर्ग की तरह गर्दन में रेत छिपा लेने से आंदोलन की आंच कम हो जाएगी।

अल्लामा इकबाल का एक शेर इस मौके के लिए बड़ा मौजूं है-

माना कि तेरे दीद के काबिल नहीं हैं हम 
तू मेरा शौक देख मेरा इंतजार देख

सौज- जनपथ

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