स्वयं प्रकाश की स्मृति में आयोजित वेबिनार: “सौ रंगों की भाषाओं वाले कहानीकार हैं स्वयं प्रकाश – असग़र वजाहत “

दिल्ली। ‘स्वयं प्रकाश की कहानियां, कहानी के कहानीपन को तोड़ती हैं। उनकी भाषा कभी संस्मरण की भाषा का रूप ले लेती है तो कभी रेखाचित्र, डायरी और अख़बार की भाषा के रूप में हमारे सामने आती है। उनकी भाषा के अनेक रंग-बिरंगे रूप हैं। स्वयं प्रकाश के कहानियों की उपलब्धि उनकी भाषा के यही सौ रंग हैं।’

सुप्रसिद्ध साहित्यकार और नाटककार असग़र वजाहत ने स्वयं प्रकाश स्मृति न्यास द्वारा स्वयं प्रकाश की 74 वीं जयंती पर आयोजित वेबिनार में उक्त विचार व्यक्त किए। प्रो. वजाहत ने ‘‘कहानी की भाषा’’ विषय पर वेबिनार में क्रमशः भाषा, कहानी की भाषा और स्वयं प्रकाश की कहानियों की भाषा पर प्रकाश डाला। उन्होंने सर्वेश्वर दयाल और रघुवीर सहाय जैसे कवि-कहानीकारों के भाषिक प्रयोगों और उनके कहानियों के भाषा की सूक्ष्मताओं के बारे में भी बताया। प्रो वजाहत ने स्वयं प्रकाश जी की कहानियों की भाषिक जीवंतता को रेखांकित करते हुए कहा कि स्वयं प्रकाश ज़िंदा भाषा के कहानीकार हैं। अपनी कहानियों में उन्होंने चमकती हुई,खिलती हुई भाषा का प्रयोग किया है। अपने समय के अन्य कहानीकारों की भांति वे भाषा के चमत्कारिक और कलात्मक प्रयोग के लोभ में नहीं फँसते और पूरी कहानी में अपनी भाषा को अद्वितीय ढंग से विश्वसनीय और जीवंत बनाये रखते हैं। 

व्याख्यान के समाहार में प्रो. वजाहत ने स्वयं प्रकाश की तीन कहानियों, “बलि”,”गौरी का गुस्सा” और “पार्टीशन” का उदाहरण देते हुए स्पष्ट किया कैसे उनकी कहानी के पात्रों की भाषाएं व्याकरण की बंदिशों को तोड़ते दिखाई देते हैं। उन्होंने संवाद, कथ्य, परिवेश और पात्रों की भाषा के परस्पर संबंधों को स्पष्ट किया और कहानी में मौजूद संवाद और वर्णन के बीच के सूक्ष्म अंतर को भी समझाया।

वेबिनार में प्रो वज़ाहत ने आनन्द प्रकाशन, कोलकाता से डॉ कामेश्वर सिंह के संपादन में सद्य प्रकाशित पुस्तक “स्वयं प्रकाश की सर्वश्रेष्ठ कहानियाँ” का लोकार्पण भी किया।

इससे पहले कार्यक्रम की शुरुआत में न्यास के अध्यक्ष प्रो मोहन श्रोत्रिय ने स्वागत उद्बोधन दिया।  उन्होंने स्वयं प्रकाश जी की रचनाओं के प्रचार प्रसार के प्रति न्यास की प्रतिबद्धता को भी ज़ाहिर किया।

कार्यक्रम के संयोजक डॉ विशाल विक्रम सिंह ने स्वयं प्रकाश स्मृति न्यास का विस्तृत परिचय देते हुए उसके सदस्यों के नामों की घोषणा की, जिनमें वरिष्ठ आलोचक और संपादक प्रो मोहन श्रोत्रिय (अध्यक्ष), आलोचक डॉ दुर्गाप्रसाद अग्रवाल, कवि  राजेश जोशी, कवि और आलोचक प्रो आशीष त्रिपाठी, आलोचक और संपादक डॉ पल्लव (सचिव), श्रीमती अंकिता सावंत और श्रीमती अपूर्वा भटनागर शामिल हैं। न्यास द्वारा प्रतिवर्ष एक सम्मान भी दिया जाएगा।

अंत में स्वयं प्रकाश स्मृति न्यास के गठन के उद्देश्यों और उसकी प्रतिबद्धताओं पर प्रकाश डालते हुए, न्यास के सचिव और बनास जन पत्रिका के संपादक डॉ पल्लव ने श्रोताओं और मुख्य वक्ता के प्रति धन्यवाद ज्ञापित किया। 

फेसबुक पर प्रसारित इस वेबिनार में स्वयं प्रकाश जी के प्रशंसकों, पाठकों के साथ-साथ देश भर के अनेक वरिष्ठ साहित्यकारों ने भागीदारी की।  अंत में स्वयं प्रकाश स्मृति न्यास के गठन के उद्देश्यों और उसकी प्रतिबद्धताओं पर प्रकाश डालते हुए, न्यास के सचिव और बनास जन पत्रिका के संपादक डॉ पल्लव ने श्रोताओं और मुख्य वक्ता के प्रति धन्यवाद ज्ञापित किया। फेसबुक पर प्रसारित इस वेबिनार में स्वयं प्रकाश जी के प्रशंसकों, पाठकों के साथ-साथ देश भर के अनेक वरिष्ठ साहित्यकारों ने भागीदारी की। 

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