गोल बाजार रायपुर: मुख्य मंत्री भूपेश बघेल की सदाशयता और संवेदनशीलता- जीवेश चौबे


रायपुर का गोल बाजार एक अनमोल ऐतिहासिक धरोहर है जिस पर नगरवासियों को , विशेष रूप से पैदाइशी रइपुरियों को गर्व रहा है। यह न सिर्फ रायपुर बल्कि पूरे छत्तीसगढ़ के लिए एक गौरव है।

देखा जाए तो हर गांव कस्बे का पुराना बाजार अपनी खासियत लिए होता है ,अपनी एक विशिष्ट संस्कृति का वाहक होता है और इसी के लिए प्रसिद्ध भी होता है। न सिर्फ जनप्रतिनिधि बल्कि आम नागरिकों में भी अपनी विरासत और धरोहर के प्रति प्रेम और लगाव होना बहुत जरूरी है जिससे प्रदेश की ऐतिहासिक धरोहरों का संरक्षण को प्राथमिकता देते हुए विकास के मॉडल बनाए जाएं। मुख्य मंत्री ने गोलबाज़ार को लेकर अपनी इसी सोच और प्रतिबद्धता का परिचय दिया है जिसके लिए वे साधुवाद के पात्र हैं।

एक जमाने से , लगभग सवा सौ साल से भी ज्यादा समय से, रायपुर का गोल बाजार ऐसी ही संस्कृति का प्रतिनिधि करता रहा है और एक ऐतिहासिक धरोहर के रूप में न सिर्फ व्यवसायिक बल्कि सांस्कृतिक विरासत की भी पहचान बना हुआ है। आज भी तीज त्योहारों पर दूर दूर से ग्रामीण और शहरी आबादी का सैलाब गोलबाजार में उमड़ पड़ता है।तीज त्योहारों के अलावा भी मनिहारी और दीगर सामानों के लिए भी रोजाना हजारों लोग गोल बाज़ार में आते हैं।

मेरे पिता , प्रसिद्ध साहित्यकार एवं संपादक प्रभाकर चौबे, बचपन में हम भाइयों को और बाद में मेरी बेटियों को भी हर दिवाली के समय दिया, बत्ती, फूलबत्ती, केसर,पोताई का चूना,सन,दिवाली की विशेष माला,ग्वालन, सूपा,आकाशदिया जैसी छोटी  बड़ी सामग्री  की खरीददारी के लिए गोल बाजार ले जाते रहे। आज भी उसकी स्मृतियों से दिल रोमांचित हो जाता है।

इसकी गोल चक्करदार चबूतरेनुमा शिल्प में ढली दुकानों के बीच घूमते हुए मानो भीतर ही भीतर  बदलते हुए हर दौर की परिक्रमा का रोमांचक एहसास होता रहा है। इस जमीनी रूमान और गंवई अनुभूति को एक ठेठ रइपुरिया और छत्तीसगढ़िया ही महसूस कर सकता है। हममें से लगभग सभी रइपुरिया इस एहसास को महसूस करते रहे हैं।

कुछ अरसे पहले जब रायपुर नगर निगम में गोलबाजार को तोड़कर, उसकी  मौलिकता नष्ट कर नया बाजार बनाने का निर्णय लिया गया था तो भीतर ही भीतर जैसे कुछ दरक सा गया था ।  तब मैने रायपुर निगम के निर्णय पर अफसोस जाहिर करते हुए विरोध भी जाहिर किया था, मगर नक्कारखाने में तूती की आवाज कौन सुनता है।

मगर जैसे एक अंडर करेंट की मानिंद जमीनी रूमानियत का यही एहसास प्रदेश के मुख्य मंत्री भूपेश बघेल को भी हुआ और  स्वतंत्रता दिवस, 15 अगस्त, को मुख्य मंत्री भूपेश बघेल ने स्वतः संज्ञान लेते हुए नगर निगम रायपुर की प्रस्तावित गोलबाज़ार परियोजना का निरीक्षण करने गोलबाज़ार का रुख किया।

भूपेश जी के देसज अंतर्मन में कहीं न कहीं ऐतिहासिक धरोहरों और छत्तीसगढ़िया सांस्कृतिक विरासत के प्रति रची बसी संवेदनशीलता और अनुराग ने ही गोलबाज़ार की ऐतिहासिक महत्ता को पहचाना होगा। 

जमीन पर उतरे बिना जमीन से जुड़ना संभव नहीं होता , शायद इसीलिये  उस दिन पैदल घूमते हुए उन्होंने अपनी माटी की महक से लबरेज सोंधेपन की खुशबू और सांस्कृतिक, ऐतिहासिक और सार्वभौमिक  अपनेपन के इसी एहसास को भीतर तक खुद महसूस किया जिसमें सभी रइपुरियों की भावनाएं भी शामिल थीं । निश्चित रूप से ऐसा एहसास एक देसज और मिट्टी से जुडा व्यक्ति ही महसूस कर सकता है ।

बस….फिर पल भर में उन्होंने इस परियोजना को बदलने  का निर्णय लेते हुए तत्काल गोलबाज़ार की मौलिकता नष्ट करे बिना इसके उन्नयन और विस्तार नई परियोजना लाने  के निर्देश दिए। मुख्य मंत्री के इस निर्णय से सभी नगरप्रेमियों , विशेष रूप से ठेठ रइपुरियों में हर्ष व्याप्त है।अफसोस और कसक इतनी रह गई कि रायपुर और प्रदेश की दो ऐतिहासिक धरोहर , एक सबसे पहला नलघर और दूसरा प्रदेश की पहली प्रशासनिक इकाई की यादगार रायपुर का पालिका भवन, जो बाद में प्भरदेश का पहला लिगम भवन रहा, ध्वस्त हो गया। काश इसे बचा पाते।

मुख्य मंत्री भूपेश बघेल ने गोलबाजार की मौलिकता बरकरार रखते हुए इसके उन्नयन की घोषणा कर अपनी संवेदनशीलता और माटीप्रेम की अद्भुत मिसाल पेश की है। मुख्य मंत्री भूपेश बघेल की सदाशयता और जनभावना के प्रति उनके ऐसे संवेदनशील निर्णय के लिए पूरे रइपुरियों एवं नगरप्रेमियों की ओर से हार्दिक बधाई।

उम्मीद करते हैं मुख्य मंत्री भूपेश बघेल इस निर्णय को किसी सूरत बदलने नहीं देंगे, बल्कि रायपुर मॉडल को प्रदेश के सभी पुराने बाज़ारोें के लिए भी लागू करने की योजना पर विचार करते हुए इस दिशा में शीघ्र पहल करेंगे।

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