बचाव अभियान का सबसे मुश्किल हिस्सा था, आख़िर के 10 से 12 मीटर में खुदाई करके रास्ता बनाना और इसमें अहम भूमिका निभाई ‘रैट-होल माइनर्स’ ने . दिल्ली की एक कंपनी में काम करने वाले ‘रैट-होल माइनर’ मुन्ना क़ुरैशी वो पहले वो शख़्स थे, जो बुधवार शाम सात बजकर पांच मिनट पर सुरंग के अंदर फँसे लोगों तक पहुँचे और उनका अभिवादन किया.
उत्तराखंड के उत्तरकाशी में निर्माणाधीन सुरंग का हिस्सा ढहने के कारण फँसे 41 मज़दूरों को आख़िरकार 17 दिनों की मशक्कत के बाद सुरक्षित निकाल लिया गया है.
दिवाली के बाद से ही पूरे देश की निगाहें सिलक्यारा में बन रही इस सुरंग पर टिकी थीं. स्थानीय से लेकर अंतरराष्ट्रीय मीडिया भी लगातार इस मामले को कवर कर रहा था. इस बचाव अभियान का सबसे मुश्किल हिस्सा था, आख़िर के 10 से 12 मीटर में खुदाई करके रास्ता बनाना और इसमें अहम भूमिका निभाई ‘रैट-होल माइनर्स’ ने . दिल्ली की एक कंपनी में काम करने वाले ‘रैट-होल माइनर’ मुन्ना क़ुरैशी वो पहले वो शख़्स थे, जो बुधवार शाम सात बजकर पांच मिनट पर सुरंग के अंदर फँसे लोगों तक पहुँचे और उनका अभिवादन किया. मुन्ना उन खदान कर्मियों में से एक थे, जो ट्रेंचलेस इंजीनियरिंग सर्विसेज़ कंपनी के लिए दिल्ली की सीवर और पानी के पाइपों को साफ़ करने का काम करते हैं. बचे हुए 12 मीटर से मलबा हटाने के लिए इन्हें सोमवार को सिलक्यारा लाया गया था.
ख़बर के अनुसार, मुन्ना क़ुरैशी ने सुरंग से बाहर निकलने के बाद बताया, “मैंने आख़िरी चट्टान हटाई और उन्हें देखा. इसके बाद मैं निकलकर दूसरी ओर गया. उन्होंने मुझे गले से लगाया, तालियां बजाईं और मेरा शुक्रिया अदा किया.”
समाचार एजेंसी एएनआई से एनडीआरएफ़ (नेशनल डिजास्टर रेस्पॉन्स फ़ोर्स) के कर्मी मनमोहन सिंह रावत ने टनल के भीतर पहुँचने पर अपना अनुभव साझा किया है. मनमोहन सिंह रावत ने कहा, ”जब मैं टनल के भीतर पहुँचा तो जो मेरे श्रमिक भाई थे, वो ख़ुशी से उछल पड़े. उनकी ख़ुशी देखते बन रही थी. मैंने उनसे कहा कि एनडीआरएफ़ की टीम पहुँच गई है और अब आपलोग को बाहर निकलना है. हमारे लिए यह काफ़ी चुनौतीपूर्ण था लेकिन चीज़ें प्लान के मुताबिक़ हुईं. टनल के भीतर श्रमिकों के मानसिक संतुलन बनाए रखने, हम उनका हौसला बढ़ाते रहते थे.”
रैट-होल माइनिंग खदानों में संकरे रास्तों से कोयला निकालने की एक काफ़ी पुरानी तकनीक है और मेघायल में इसका ज़्यादा चलन रहा है.
रैट-होल का मतलब है- ज़मीन के अंदर संकरे रास्ते खोदना, जिनमें एक व्यक्ति जाकर कोयला निकाल सके. इसका नाम चूहों द्वारा संकरे बिल बनाने से मेल खाने के कारण रैट-होल माइनिंग पड़ा है.
सिलक्यारा सुरंग से निकाले गए पहले श्रमिक को रात क़रीब आठ बजे एंबुलेंस में स्थानीय सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र ले जाया गया.
मुन्ना क़ुरैशी ने कहा कि रैट-होल माइनर्स लगातार पत्थरों से भरे मलबे को हटा रहे थे. उन्होंने कहा, “मैं अपनी ख़ुशी ज़ाहिर नहीं कर सकता. मैंने अपने साथी मज़दूरों के लिए यह काम किया है. जितना सम्मान उन लोगों ने हमें दिया है, उसे मैं कभी नहीं भूल सकता.”
आख़िर के दो मीटर में खुदाई करने वाले एक अन्य रैट-होल माइनर फ़िरोज़ आंखों में आंसू लिए सुरंग से बाहर निकले. उन्होंने कहा, “मैंने फंसे हुए मज़दूर को गले से लगाया और मुझे रोना आ गया.”
एक अन्य रैट-होल माइनर ने कहा कि बचाव अभियान मुश्किल था क्योंकि मलबे में बहुत सारी चट्टानें थीं.
उन्होंने कहा, “लगभग एक बजे अंदर फंसे हुए लोगों की आवाज़ें सुनाई देने लगी थीं. वे हमसे क़रीब 10 मीटर दूर थे. हमने चिल्लाकर उन्हें बताया कि जल्द ही आपको बचा लिया जाएगा.”
सुबोध कुमार वर्मा उन 41 मज़दूरों में से एक हैं, जिन्हें सिलक्यारा टनल से निकाला गया है. सुरक्षित बाहर आने के बाद सुबोध ने समाचार एजेंसी एएनआई से कहा, ”मैं झारखंड से हूँ. सच कहिए तो हमें वहाँ सिर्फ़ 24 घंटे ही दिक़्क़त हुई. इन 24 घंटों में खाने-पीने और ऑक्सीजन की दिक़्क़त हुई.” लेकिन 24 घंटे के बाद पाइप के ज़रिए काजू, किशमिश और अन्य चीज़ें हमें खाने के लिए मिलने लगी थीं. 10 दिन के बाद हमें दाल, चावल भी मिलने लगे. मुझे कोई ख़ास दिक्क़त नहीं हुई. दिक़्क़त केवल 24 घंटे के लिए हुई. केंद्र और राज्य सरकार को शुक्रिया है.”
ट्रेंचलेस इंजिनियरिंग में अंडरग्राउंड टनलिंग के एक्सपर्ट प्रवीण यादव ने बताया कि एनडीआरएफ़ के सदस्यों समेत कई लोगों ने अंदर जाने की कोशिश की, लेकिन ब्लोअर या ऑक्सिजन की पर्याप्त सप्लाई न होने के कारण वे नाकामयाब रहे.
उन्होंने कहा, “जब कुछ काम नहीं कर रहा था, मैंने और सहयोगी बलिंदर यादव ने अंदर जाने के लिए सहमति दी, मगर मेरे बॉस ने कहा कि पहले एनडीआरएफ़ के लोगों को कोशिश करने दो. लेकिन वो जवान काफ़ी बड़े थे और उनके लिए पाइप बहुत छोटे थे. ऐसे में अब मुझे अंदर जाना था. मैंने गैस कटर लिया, पानी की दो बोतलें उठाईं, घुटनों और कुहनियों के दम पर रेंगते हुए पाइप में चला गया.”
आगे रास्ता बनाने के लिए मलबे में मौजूद मोटे सरियों को ढूंढना था, उन्हें गैस कटर से काटना था और बचे हुए टुकड़ों को हटाना था.
प्रवीण यादव ने कहा, “इसके कारण बहुत ज़्यादा गर्मी पैदा हो रही थी और झुलसने का भी ख़तरा बना हुआ था. तंग जगह में जाना ही एक मुश्किल काम था, लेकिन घंटों तक गैस कटर इस्तेमाल करना तो और भी बड़ी चुनौती थी. ये सहनशक्ति और अनुभव का मामला था.”
यादव ने बताया कि जब गैस कटर इस्तेमाल हो रहा था, चिंगारियां उनके चेहरे और शरीर पर गिर रही थीं. लेकिन उन्होंने सेफ़्टी जैकेट, ग्लव्स, गॉगल्स और हेलमेट पहना हुआ था. उन्होंने कहा, “अगर आप अनुभवी हैं तो आपको पता है कि किस ऐंगल से कटाई करनी है ताकि ख़तरा कम से कम हो.”
उन्होंने बताया कि कई बार ड्रिलिंग के दौरान बाधाएं आ रही थीं और इन बाधाओं को हटाने के लिए उन्हें दिन में दो से तीन बार अंदर जाना पड़ रहा था. वह बताते हैं, “जब मैं मेटल को काटने के बाद उनके ठंडा होने पर उन्हें बाहर लेकर आ रहा था तो पसीने से पूरी तरह तर होता था. यहां तक कि मेरे जूते पसीने से भर गए होते थे. जैसे ही ताज़ा हवा मुझसे टकराती, बहुत सुखद अहसास होता. लोगों ने मेरे लिए तालियां बजाई, मेरी सराहना की. लेकिन मैं इंतज़ार कर रहा था कि कब लंबे समय तक शावर लूं और आराम से सोऊं.” उन्होंने कहा कि वह पहले भी अमोनिया से भरी जगह से चार लोगों को बचाने के अभियान में शामिल रहे हैं, लेकिन यह उनका सबसे मुश्किल बचाव अभियान था.
समाचार एजेंसी पीटीआई की ख़बर के अनुसार, रैट-होल माइनिंग अवैध है, लेकिन एनडीआरफ़ के एक सदस्य ने कहा कि रैट-होल माइनर्स की प्रतिभा और अनुभव के दम पर ही 41 लोगों की ज़िंदगी बचाई जा सकी.
नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने 2014 में तीन से चार फुट ऊंची सुरंगें बनाने वाली रैट-होल माइनिंग तकनीक के माध्यम से मेघायल में कोयले की माइनिंग पर रोक लगा दी थी.
एनडीआरएफ़ के सदस्य लेफ़्टिनेंट जनरल (सेवानिवृत) सैयद अता हसनैन ने कहा कि 24 घंटों से भी कम समय में 10 मीटर का रास्ता बनाकर रैट-होल माइनर्स ने कमाल किया है.
उन्होंने मीडिया से बात करते हुए कहा था, “भले ही रैट-होल माइनिंग अवैध हो, लेकिन माइनर्स के टैलेंट और एक्सपीरियंस और उनकी क्षमताओं को इस्तेमाल किया जा रहा है.”
एनएचएआई के सदस्य विशाल चौहान ने बताया कि भले ही कोयला खदानों में एनजीटी ने इस पर रोक लगाई हो, लेकिन यह कंस्ट्रक्शन साइट पर अभी भी यह तकनीक इस्तेमाल होती है. उन्होंने कहा, “यह एक विशेष परिस्थिति है, लोगों की जान बचाने का मामला है. वे (रैट-होल माइनर) ऐसे टेक्नीशियन हैं, जो हमारे लिए मददगार हैं.”पीटीआई के अनुसार, जब पूछा गया कि रैट-होल माइनर्स को किसने हायर किया, चौहान ने कहा, “जब हम एक सरकार की बात करते हैं तो खर्चा इधर से आया या उधर से आया, एक ही बात है.”सिलक्यारा में जिन 12 रैट-होल माइनर्स ने बचाव अभियान में अहम भूमिका निभाई, वे दिल्ली, झांसी और देश के अन्य हिस्सों से आते हैं.
सौ. बीबीसी, हिन्दी