नई साहित्यिक सांस्कृतिक समूह ‘लोकमित्र’ के तत्वावधान में राजधानी के साहित्यकारों, संस्कृतिकर्मियों और सुधिजनों की मौजूदगी में गत 27 दिसंबर 2025 को हर्ष और उत्साह के साथ, एक वैविध्यपूर्ण कार्यक्रम के जरिए, महान शायर मिर्ज़ा ग़ालिब की 228 वीं जयंती मनाई गई।
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रायपुर के नए साहित्यिक सांस्कृतिक समूह ‘लोकमित्र’ ने विगत 27 दिसंबर 2025 को हर्ष और उत्साह के साथ, एक वैविध्यपूर्ण कार्यक्रम के जरिए, महान शायर मिर्ज़ा ग़ालिब की 228 वीं जयंती मनाई। रायपुर के साहित्यकारों संस्कृतिकर्मियों और सुधिसाहित्यिकों की एक बड़ी मौजूदगी में स्थानीय विमतारा भवन, शांति नगर में एक सुरुचिपूर्ण कार्यक्रम का आयोजन कर ग़ालिब के व्यक्तित्व और कृतित्व की चर्चा, उनके ग़ज़लों की संगीत में प्रस्तुति, वीडियो क्लिप्स व स्लाइड्स के जरिए इस महान साहित्यकार को श्रद्धांजलि दी।
कार्यक्रम की शुरुआत में हाल ही में दिवंगत वरिष्ठ कवि विनोद कुमार शुक्ल को एक मिनट का मौन रखकर श्रद्धांजलि दी गई। उन्हें याद करते मंच संचालक कवि पीयूष कुमार ने विनोद कुमार शुक्ला की कविता ‘समुद्र कि सतह से निकलकर आया’ का पाठ किया।
कार्यक्रम के संगीत-सत्र में नगर के राष्ट्रीय स्तर पर चर्चित युवा, निवेदिता शंकर और वसु गंधर्व ने ग़ालिब की हुई ग़ज़लों का गायन किया। निवेदिता ने ‘सब कहां कुछ लाला ओ गुल में नुमाया हो गईं’ और ‘कभी नेकी जो उसके जी में आ जाए है मुझसे’ तथा वसु ने ‘मुद्दत हुई है यार को मेहिमां किए हुए’ तथा
‘दिल ही तो है ना संगो ख़िस्त दर्द से भर न आए क्यूँ’ ग़ज़लों की श्रेष्ठ प्रस्तुति दी। उनकी प्रस्तुति में वह बात थी मानो मिर्जा ग़ालिब की हाल की शख्सियत हाल में मौजूद श्रोताओं को छू रही हो।
उसके बाद एक तरह से आयोजन के केंद्रीय विचार-सत्र में अब्दुल जावेद नदीम आनंद बहादुर और अब्दुल सलाम कौसर ने मिर्ज़ा ग़ालिब के व्यक्तित्व और उनकी शायरी के अनेक पहलुओं को उद्घाटित किया। अब्दुल जावेद नदीम ने जहाँ ग़ालिब की ग़ज़लों के ऐसे तत्वों की पड़ताल की जिनके जरिए वे शताब्दियों से देश के श्रेष्ठ कवियों की पांत में सम्मानित हैं, तो अब्दुल सलाम कौशर ने ग़ालिब की ग़ज़लों में अंतर्निहित नैतिकता की खोज की। आनंद बहादुर ने कई शेरों को उद्धरित करते हुए ग़ालिब की शायरी में मौजूद सूक्ष्म अंतरछायाओं को उजागर करने का काम किया। वे उनके दार्शनिक आयामों, शायरी में मौजूद महीन बुद्धिचातुर्य और बनावटी जीवन शैली व पाखंड को उजागर करने की उनकी क्षमता पर प्रकाश डालने में सफल हुए।
इस विमर्श और संवाद के पश्चात पृष्ठभूमि में मिर्ज़ा ग़ालिब के सुंदर एलईडी छवि के तले छत्तीसगढ़ के कई श्रेष्ठ कवियों और शायरों ने अपनी रचनाओं का वाचन किया। इस पाठ में जीवन का शायद ही कोई ऐसा पहलू होगा जिसे करीब दो दर्जन कवियों ने अपनी कविताओं में स्पर्श नहीं किया हो, और एक तरह से कहा जा सकता है कि यह पाठ सामूहिकता में मिर्जा असदुल्लाह ख़ान ग़ालिब की रचना धर्मिता से संवाद कर रहा था। इस क्रम में जया जादवानी, संजय अलंग, जीवेश प्रभाकर, नीलू मेघ, सुखनवर हुसैन, आलोक वर्मा,अब्दुल जावेद नदीम, पीयूष कुमार, स्वराज करूण, अब्दुस्सलाम कौसर, , मीसम हैदरी, इर्तिका हैदरी, सफ़दर अली ‘सफ़दर’, आर डी अहिरवार, इमरान अब्बास, गिरधर वर्मा, यूशा और मिनेश साहू आदि ने उच्च स्तरीय रचनाओं के वाचन से जीवन के अनेक अनुभूत और अननुभूत सच्चाइयों से श्रोताओं को रूबरू कराया।
लोकमित्र समूह के सदस्यों ने बताया कि यह समूह छत्तीसगढ़ के साहित्य और संस्कृति के क्षेत्र में मित्रतापूर्ण, विचारपूर्ण व भेदभाव विहीन पहल के उद्देश्य से सामने आया है। लोक और मित्र दोनों व्यापक निहितार्थ वाले शब्द हैं। और समूह लेखक व संस्कृतिकर्मियों को एक सूत्र में पिरो कर साहित्य और संस्कृति को लोक के बीच ले जाने के लिए कृतसंकल्प है। साहित्य प्रेमियों ने इस आयोजन की सराहना की और इसे रायपुर की सांस्कृतिक गतिविधियों में एक नई पहल बताया।
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