कोरोनावायरस के संक्रमण को फैलने से रोकने के लिए देश भर में किए गए लॉकडाउन के बाद मजदूरों में अफरा तफरी मच गई। इसके चलते सरकार ने तुरत-फुरत में कई घोषणाएं की। इसमें एक घोषणा थी, मजदूरों को आर्थिक सहायता दी जाएगी। लेकिन क्या मजदूरों को यह पैसा मिल पाया, किस कानून के तहत यह पैसा दिया गया, क्या पहले से इस कानून की पालना सही तरीके से हो रही थी? आखिर क्यों मजदूरों को अपनी सरकार पर भरोसा नहीं रहा? इन सवालों का जवाब तलाशती एक बड़ी रिपोर्ट डाउन टू अर्थ के लिए राजू साजवान ने तैयार की है। .हम इसकी संपादित रिपोर्ट प्रकाशित कर रहे हैं । पूरी रिपोर्ट की लिंक नीचे दी गई है । – (संपादक)
लगभग सभी राज्यों में भवन एवं अन्य निर्माण मजदूर अधिनियम 1996 के तहत राज्यों में मजदूरों के लिए कल्याण बोर्ड बना हुआ है। इसका मकसद निर्माण मजदूरों को अलग-अलग स्कीम के तहत सहायता उपलब्ध कराना है। भारत में कोरोनावायरस के प्रसार को रोकने के लिए जब 24 मार्च 2,020 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 21 दिन के देशव्यापी लॉकडाउन की घोषणा की तो उसके बाद प्रवासी मजदूरों में अफरातफरी मच गई। इसे रोकने के लिए 25 मार्च 2020 को केंद्रीय श्रम मंत्री संतोष गंगवार का बयान आया कि सभी राज्य सरकारों से कहा गया है कि वे अपने राज्य में बने भवन एवं अन्य निर्माण मजदूर (बीओसीडब्ल्यू) कल्याण बोर्ड में जमा पैसे से मजदूरों को आर्थिक सहायता दें। बयान में यह भी बताया गया कि इन बोर्डों के पास 52 हजार करोड़ रुपए जमा हैं और इन बोर्डों में 3.5 करोड़ मजदूर पंजीकृत हैं। केंद्र के इस बयान के बाद राज्य सरकारों ने अपने-अपने हिसाब से आर्थिक मदद की घोषणाएं कर दीं।
हरियाणा निर्माणकर्ता मजदूर सभा के अध्यक्ष जगदीप वालिया बताते हैं कि सरकार ने पैसा देने की घोषणा तो कर दी, लेकिन कई दिन तक तो श्रम विभाग के अधिकारी कर्मचारियों को पता ही नहीं था कि पैसा कैसे मिलेगा? हमने बार-बार श्रम विभाग और बोर्ड के अधिकारियों से बात की, तब जाकर 18 अप्रैल को बोर्ड के अधिकारियों ने बताया कि कुछ मजदूरों को बैंक खाते में पैसा ट्रांसफर नहीं हो पा रहा है, क्योंकि उनका खाता आधार से लिंक नहीं है। लॉकडाउन और कोरोनावायरस के इस भय भरे माहौल में पहले मजदूरों को आधार कार्ड लिंक कराने के लिए बैंकों की लाइन में लगना पड़ेगा। तब उनके पास पैसा आएगा।”
दूसरी तरफ सरकार का दावा कुछ और है। सरकार की ओर से कोविड-19 के अपडेट्स को लेकर रोजाना की जा रही प्रेस कॉन्फ्रेंस में 8 अप्रैल 2020 को गृह मंत्रालय की संयुक्त सचिव सहेली घोष राय ने बताया कि 31 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में निर्माण मजदूर बोर्डों ने सेस फंड से 1,000 से लेकर 6,000 रुपए तक देने की घोषणा की है और अब तक करीब 2 करोड़ निर्माण मजदूरों को 3,000 करोड़ रुपए दिए जा चुके हैं।
सरकार के दावों पर सवाल खड़े करते हुए निर्माण मजदूरों की राष्ट्रीय अभियान समिति (एनसीसी-सीएल) ने 14 अप्रैल को लिखे एक पत्र में कहा कि जो आंकड़े दिए जा रहे हैं, वे निराधार हैं। समिति ने दावा किया कि सबसे अधिक निर्माण मजदूर (1.21 करोड़ से अधिक) उत्तर प्रदेश में हैं। 30 जून 2017 तक इनमें से 36 लाख मजदूर ही बोर्ड में पंजीकृत थे। 5 अप्रैल 2020 को श्रम विभाग के प्रमुख सचिव के पत्र में बताया गया कि उत्तर प्रदेश निर्माण मजदूर कल्याण बोर्ड के पास केवल 10.92 लाख मजदूरों का बैंक खातों का विवरण उपलब्ध है। राज्य सरकार ने पंजीकृत मजदूर को 1,000 रुपए देने की घोषणा की है। यानी उत्तर प्रदेश कुल मिलाकर केवल 109.2 करोड़ रुपए ही दे सकता है। यदि सबसे अधिक पंजीकरण वाले राज्य उत्तर प्रदेश में ही केवल 109 करोड़ रुपए दिए गए तो सभी राज्यों का मिलाकर 3,000 करोड़ रुपए कैसे हो सकता है।
कुछ ऐसा ही सवाल दिल्ली असंगठित निर्माण मजदूर यूनियन ने भी उठाया। यूनियन के महासचिव अमजद हसन बताते हैं कि दिल्ली सरकार ने सबसे अधिक 5,000 रुपए प्रति मजदूर देने की घोषणा की है। दिल्ली में कुल निर्माण मजदूरों की संख्या 12 लाख से अधिक है, लेकिन आम आदमी पार्टी की सरकार ने नवंबर 2018 में जब ऑनलाइन पंजीकरण शुरू किया तो फरवरी 2020 तक केवल 35 हजार मजदूर ही अपना दोबारा पंजीकरण करा पाए, जबकि उस समय तक 7,500 मजदूरों का पंजीकरण अटका हुआ था। यूनियन के दबाव में इन मजदूरों का पंजीकरण किया गया। अमजद बताते हैं कि दिल्ली सरकार ने 17 अप्रैल 2020 तक 39,600 मजदूरों को ही आर्थिक सहायता दी है जो लगभग 19.80 करोड़ रुपए बनती है। बिल्डिंग एंड वुक वर्क्स इंटरनेशनल (बीडब्ल्यूआई) से संबंधित निर्माण मजदूर पंचायत संगम की ओर से 11 अप्रैल 2,020 को एक पत्र लिखा गया, जिसमें कहा गया कि इस समय दिल्ली निर्माण कल्याण मजदूर बोर्ड के पास लगभग 3,200 करोड़ रुपए हैं। लेकिन यह फंड केवल पंजीकरण कराने वाले मजदूरों को दिया जा रहा है। जबकि यह समय सभी निर्माण मजदूरों तक सहायता पहुंचाने का है।
जितने भी राज्यों ने भवन एवं अन्य निर्माण मजदूर कल्याण (बीओसीडब्ल्यू) बोर्ड के तहत मजदूरों को नगद राशि देने की घोषणा की है, वहां से भी जो रिपोर्ट सामने आ रही हैं, वे उत्साहजनक नहीं हैं।
केंद्र की सलाह के बाद राज्य सरकारों ने बीओसीडब्ल्यू बोर्ड में जमा पैसा मजदूरों को देने की घोषणा की है। निर्माण मजदूरों की राष्ट्रीय समिति (एनसीसी-सीएल) के 30 अप्रैल को जारी एक सर्कुलर जारी कर कहा कि एक ओर केंद्र सरकार का दावा है कि 2 करोड़ मजदूरों को 3,000 करोड़ रुपए दिए जा चुके हैं तो दूसरी ओर राज्यों द्वारा जारी आंकड़े अलग-अलग बयानी कर रहे हैं।
एनसीसी-सीएल ने इन आंकड़ों को तीन भागों मे बांटा है। एक भाग में अप्रैल के प्रथम सप्ताह तक जारी राशि को रखा गया है, दूसरे भाग में उसके बाद जारी राशि को रखा गया है, जबकि तीसरे भाग में उन आंकड़ों को शामिल किया गया है, जिनकी सूचना निर्माण मजदूरों से जुड़े हिमांशु उपाध्याय ने एकत्र की है। हिमांशु ने लगभग हर राज्य द्वारा भवन-निर्माण मजदूरों के लिए घोषित सहायताओं का विवरण इकट्ठा किया है।
आंकड़े बताते हैं कि अप्रैल के प्रथम सप्ताह तक 11 राज्यों ने लगभग 935.62 करोड़ रुपए जारी किए हैं। इसमें सबसे अधिक केरल ने जारी किए हैं। केरल ने 20 लाख मजदूरों को 200 करोड़ रुपए जारी किए हैं। वहीं तमिलनाडु ने 12.14 लाख मजदूरों को 1,500 रुपए प्रति मजदूर के हिसाब से 121.4 करोड़ रुपए, राजस्थान ने 17 लाख मजदूरों को 170 करोड़ रुपए, मध्य प्रदेश ने 8.31 लाख मजदूरों को 83 करोड़ रुपए, ओडिशा ने 4.4 लाख मजदूरों को 60 करोड़ रुपए, पंजाब ने तीन लाख मजदूरों को 180 करोड़ रुपए जारी किए हैं।
जबकि 8 अप्रैल तक पंजाब ने 3.2 लाख मजदूरों की दूसरी किस्त लगभग 175 करोड़ रुपए जारी किए। इसके अलावा ओडिशा ने 105 करोड़ रुपए, तमिलनाडु ने 5.47 लाख मजदूरों को 54.7 करोड़ रुपए, उत्तर प्रदेश ने 7 अप्रैल से 23 अप्रैल के बीच कुल 15.02 लाख मजदूरों को कुल 150 करोड़ रुपए जारी किए।
गुजरात के बीओसीडब्ल्यू बोर्ड ने तो अलग ही काम किया। दूसरे राज्यों में जहां बोर्ड ने अपने सेस खाते से सीधे-सीधे मजदूरों के खातों में पैसा ट्रांसफर कर दिया, वहीं गुजरात के बीओसीडब्ल्यू बोर्ड ने 250 करोड़ रुपया मुख्यमंत्री गरीब कल्याण योजना में ट्रांसफर कर दिया। यह बताया जा रहा है कि यह पैसा अब 6.4 लाख मजदूरों को राहत देने पर खर्च किया जा जाएगा। एनसीसी-सीएल की रिपोर्ट के मुताबिक महाराष्ट्र ने 11 लाख मजदूरों को 2,000 रुपए प्रति मजदूर के हिसाब से 220 करोड़ रुपए की घोषणा की है।
दरअसल, देशभर में कुल कितने निर्माण मजदूर हैं, इसका कोई ठोस आंकड़ा उपलब्ध नहीं है। लेकिन 1996 में जब बिल्डिंग एंड अदर्स कंस्ट्रक्शन वर्कर्स (रेगुलेशन ऑफ इम्प्लॉयमेंट एंड कंडीशन ऑफ सर्विस) बिल 1996 में जब संसद में रखा गया था, तब उसमें बताया गया था कि देश भर में 8.5 करोड़ मजदूर भवन एवं निर्माण कार्यों में लगे हुए हैं, जो असंगठित क्षेत्र से हैं। 2017 में एनसीसी-सीएल में एक विश्लेषण के बाद बताया था कि जून 2017 में देश में निर्माण मजदूरों की संख्या 7.43 करोड़ से अधिक थी, जबकि उस समय तक निर्माण मजदूर कल्याण बोर्डों में पंजीकृत मजदूरों की संख्या 2.77 करोड़ थी। यानी कि केवल 37 फीसदी मजदूर ही बोर्ड में पंजीकृत हैं।
अब श्रम मंत्रालय द्वारा कहा जा रहा है कि पंजीकृत मजदूरों की संख्या 3.5 करोड़ है, हालांकि राज्यसभा में पूछे गए एक सवाल के जवाब में यह संख्या 30 सितंबर 2018 तक 3.16 करोड़ थी।
बिल्डिंग एंड वुड वर्कर्स इंटरनेशन के रीजनल पॉलिसी ऑफिसर (एशिया पेसिफिक) राजीव शर्मा बताते हैं कि यह अस्थायी राहत दी जा रही है, लेकिन इसमें भी काफी खामियां हैं। मजदूरों के पास बैंक खाते नहीं है, वे इधर से उधर आते-जाते रहते हैं। ऐसे में, उनके लिए आसान नहीं होता कि वे अपना बैंक खाता रखें। उन्हें जो दिहाड़ी मिलती है, उसे वो उसी दिन खर्च कर देते हैं। इतना ही नहीं, वे तो अपना हर साल का पंजीकरण भी नहीं कर पाते। इस वजह से पिछले कुछ सालों के दौरान जहां देश में निर्माण गतिविधियां बढ़ी हैं, वहीं निर्माण मजदूर कल्याण बोर्ड में मजदूरों का पंजीकरण घटता जा रहा है। ऐसे में यदि सरकार उन्हीं मजदूरों को आर्थिक सहायता देगी, जिन्होंने अपना पंजीकरण को रिन्यू नहीं कराया है तो सहायता पाने वाले मजदूरों की संख्या तो काफी कम रह जाएगी।
निर्माण मजदूर अधिकार अभियान के संयोजक थानेश्वर आदिगौड़ बताते हैं कि दिल्ली का ही उदाहरण लीजिए, एक समय में 5.5 लाख मजदूर पंजीकृत थे, अब लगभग 40 हजार हैं। मतलब 10 फीसदी से भी कम रह गए हैं? क्या इसके लिए पंजीकरण प्रक्रिया दोषी नहीं है? दरअसल, सरकारें नहीं चाहती कि मजदूरों को उनका हक मिले। महामारी के समय में भी सरकार आंकड़ों का खेल खेल रही है।
मजदूर संगठनों ने जब यह मुद्दा उठाया कि क्या जो मजदूर अभी भी पंजीकृत (लाइव) हैं, उन्हें ही यह पैसा दिया जाएगा, तो 21 राज्य सरकारों ने घोषणा की कि जो एक बार भी पंजीकृत हो चुका है, उन्हें यह पैसा दिया जाएगा। इनमें अरुणाचल प्रदेश, गोवा, गुजरात, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, जम्मू कश्मीर,कर्नाटक, केरल, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, मेघालय, मिजोरम, नागालैंड, ओडिशा,पुडुचेरी, पंजाब, राजस्थान, तमिलनाडु, तेलंगाना, त्रिपुरा, उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड शामिल हैं।
(रिपोर्ट- राजू साजवान सौ. चाउनटूअर्थ )- पूरी रिपोर्ट आप इस लिंक पर पढ़ सकते हैं-