कहानीः शर्त – चेखव

अन्तॉन पावलेविच चेखव (1860-1904)

   रूसी कथाकार और नाटककार अन्तॉन पावलेविच चेखव  विश्व के सबसे महत्वपूर्ण लेखकों में से एक हैं।  चेखव के लेखन में अपने समय का जैसा गहन और मार्मिक वर्णन मिलता है।   चेखव की संवेदना में मानवीयता का तत्व इतना गहरा है कि वे बहुत त्रासद स्थितियों में भी सूरज की थोड़ी सी रोशनी और सुन्दरता के शाश्वत गुण को देख लेते हैं । चेखव की कला में सादगी एक असाधारण शक्ति के रूप में उभरी है और वह विश्व कथा साहित्य में अप्रतिम है ।   सैकड़ों कहानियों के अलावा चेखव के कई विश्व प्रसिद्ध नाटक भी हैं ।

आज जब आदमी परिवार सहित भी 4-6 हफ्ते के कोरेन्टीन में नहीं रह पा रहा ऐसे में एक व्यक्ति के 15 साल सेल्फ कोरेन्टीन की उनकी सुप्रसिद्ध कहानी The Bet का हिन्दी रुपान्तर-

शर्त

एन्तॉन पावलेविच चेखव

   शरद की एक घनी रात था । बूढ़ा बैंकर अध्ययन कक्ष में एक कोने से दूसरे कोन तक चहलकदमी कर रहा था । उसके दिमाग में 15 साल पहले ऐसी ही शरद की शाम को घटी का दृश्य घूम रहा था । पार्टी में बहुत से समझदार लोग मौजूद थे और बेहद दिल गपशप चल रही थी । बातों ही बातों में मृत्युदंड पर बहस चल पड़ी । मेहमानों में कई विद्वान और पत्रकार भी मौजूद थे, उनमें से बहुत से मृत्युदंड  के िखलाफ थे । वे इसे सजा देने का पुराना और दकियानूस तरीका मानते थे, जो इसाई राय के लिए अनुचित और अनैनितक था । कइयों का यह मानना था कि मृत्युदंड को दुनिया भर में हमेशा के लिये कैद में बदल देना चाहिए ।

   ”मैं तुमसे सहमत नहीं हूँ,” मेजबान ने कहा, ”मैंने खुद न तो कभी मृत्युदंड भोगा है और न ही उम्र कैद पर यदि कोई अनुभव की दृष्टि से देखे तो मेरे विचार से मृत्युदंड उम्र कैद में यादा मानवीय है । मृत्युदंड पल भर में आपका काम तमाम कर देता है, उस कैद आपको तिल-तिलकर खत्म करती है । अब आप ही बताइय कौन यादा मानवीय है – फांसी देने वाला जल्लाद जो आपको पल भर में मार देता है या वह जो  वर्षों तक लगातार आपको तिल-तिलकर मारता है?”

   ”ये दोनों ही अनैतिक है  एक मेहमान बोल पड़ा, क्योंकि दोनों एक ही है, जीवन लेना। राय कोई ईश्वर नहीं होता । उसे किसी का भी जीवन नहीं है, जिसे वह लौटा नहीं सकता ।”

   उस महफिल में एक वकील भी था, वह करीब पच्चीस साल का एक नौजवान था । उसकी राय पूछी गई तो वह बोला, ”मृत्युदंड और उम्र कैद दोनों ही समान रूप से अनैतिक है पर यदि मुझे इनमें से एक को चुनना पड़े तो मैं यकीनन उम्र कैद चुनूँगा । किसी तरह जी लेना बिल्कुल न जीने से यादा बेहतर है ।”

   इसी के साथ बहस ने दिलचस्प मोड़ ले लिया । नौजवान बैंकर जो काफी उतावला था अचानक उत्तेजित हो उठा और टेबल पर अपनी मुट्टी ठोंक ठोंक कर युवा वकील की और मुखरविंब हो चिल्ला उठा —

   ”यह बकवास है, मैं तुम्हें दो लाख दूँगा, मुझे यकीन है तुम उम्र कैद तो क्या पाँच साल जेल नहीं काट सकते, मैं शर्त लगाता हूँ।”

   ”यदि वाकई तुम गंभीर हो,” वकील ने कहा ”तो मैं भी शर्त लगाता हूँ कि पाँच नहीं बल्कि पंद्रह साल जेल में रहूँगा ।”

   ”अच्छा पंद्रह ! ठीक है।” बैंकर जोर में चीखकर बोला, ”भाईयों ! मैं दो लाख दांव पर लगाता हूँ।”

   ”ठीक है, तुम अपने दो लाख दांव पर लगाओ और मैं अपनी आजादी” वकील ने कहा ।

   और फिर इस तरह वह सनकी और अजीबोगरीब शर्त लगाई गई । बैंकर के पास उस वक्त बहुत पैसा था, अकूत संपत्ति थी । पैसे के गरूर ने उसे गुस्ताख और सनकी बना दिया था । वह हर्षोन्माद में अपने ही लीन था । खाने की मेज पर उसने वकील का मज् ााक उड़ाते हुए कहा : ”नौजवान दोस्त, होश में आओ। अभी भी वक्त है सोच लो । मेरे लिए दो लाख कोई मायने नहीं रखते पर तुम जिन्दगी के तीन चार सुनहरे साल खो दोगे । मैं तीन, चार साल ही कह रहा हूँ क्योंकि मुझे यकीन है तुम इससे अधिक नहीं टिक पाओगे । बदनसीब इंसान, मत भूलो कि मर्जी से स्वीकार की गई कैद सजा के कारावास से कहीं यादा कठिन होती है। फिर किसी भी क्षण तुम मुक्त हो सकते हो, यह ख्याल ही कोठरी में तुम्हारी जिन्दगी में जहर घोल देगा । मुझे तुम पर दया आती है।”  

   और अब बैंकर को एक कोने से दूसरे कोने तक चहलकदमी करते हुए वे तमाम बातें याद आ रही थीं । उसने खुद से पूछा : ”आिखर मैंने क्यों यह शर्त लगाई? इससे क्या फायदा? वकील अपने जीवन के 15 साल खो देगा और मैं दो लाख फूंक दूँगा । क्या इससे साबित हो जयेगा कि मृत्युदंड उम्र कैद से बेहतर या बदतर हैं? नहीं, नहीं । यह सब बकवास है । मेरे जैसे दौलतमंद आदमी के लिये यह एक सनक थी, और वकील के लिये केवल पैसा का लोभ।”

   उसे फिर याद आया उस शाम की पार्टी के बाद क्या हुआ । यह तय हुआ कि वकील को बैंकर के घर के बाहर बनी बाग की कोठरी में उसकी कड़ी निगरानी में कैद रखा जाएगा। यह भी तय हुआ कि इस पूरे समय के दौरान वकील उस सीमा को पार नहीं कर पाएगा, किसी भी जीवित व्यक्ति से नहीं मिलेगा, न ही  किसी की आवाज सुन पाएगा और उसे किसी प्रकार के पत्र या ¥खबार-वगैरह भी उपलब्ध नहीं होंगे । पर हाँ उसे संगीतयंत्र रखने, किताबें पढ़ने, पत्र लिखने और शराब तथा सिगरेट पीने की अनुमति होगी । करार के मुताबिक वह चाहे तो एक छोटी सी िखड़की के जरिए बाहरी दुनिया से संवाद कर सकेगा पर बेहद खामोशी से, जरूरत की हर चीज किताबें, संगीत, शराब जितनी चाहे वह उस छोटी सी िखड़की से चिट भेजकर मंगा सकेगा । उस करारनामे में हर छोटी-से-छोटी बात को भी बड़ी सावधानी से विस्तारपूर्वक दर्ज किया गया, ताकि कैद को पूरी तरह एकाकी बनाया जा सके और इस करारनामे के तहत वकील ठीक 15 साल बाद अर्थात् 14 नवम्बर 1870 के 12 बजे से 14 नवम्बर 1885 के ठीक 12 बजे तक बंदी रहने के लिए वचनबद्ध था । निर्धारित समय से एक-आध मिनट भी पहले निकल भागने का कोई भी प्रयास शर्त का उल्लंघन माना जाएगा और फिर बैंकर उसे दो लाख अदा करने की शर्त से मुक्त हो जाएगा ।

   कैद के पहले वर्ष में वकील की छोटी-मोटी पर्चियों के जरिए जितना जानना संभव था उससे यही पता चला कि वह बेतहाशा एकाकीपन और बोरियत के दौर से गुजर रहा था । उसके कक्ष से दिन-रात पियानो की आवाज गूँजती रहती । उसने शराब और सिगरेट पीनी छोड़ दी थी । ”शराब”, उसने लिखा, ”इच्छाओं को जगाती है और इच्छाएं किसी भी कैद की सबसे बड़ी दुश्मन हैं, इसके अलावा अच्छी शराब अकेले पीने से बढ़कर उबाऊ काम और कोई नहीं हो सकता और तम्बाकू कमरे की हवा को दूषित करता है ।” पहले वर्ष के दौरान वकील को हल्की-फुल्की किताबें भेज गई, जटिल प्रेम घटनाओं वाले उपन्यास, अपराध और काल्पनिक जगत की कहानियाँ, हास्य कहानियाँ और ऐसी ही कुछ किताबें ।

   दूसरे वर्ष पियानो की आवाज बंद हो गई और वकील की रुचि केवल क्लासिक किताबें पढ़ने में रही । पाँचवे वर्ष के दौरान संगीत फिर गूंजने लगा, कैदी ने शराब की भी माँग की । उसे जिस किसी ने भी देखा उसने पाया कि पूरे साल वह केवल खाता-पीता रहा और बिस्तर पर पड़ रहा । वह अक्सर जम्हाइयां लेता और खुद से गुस्से में बातें करता । किताबें उसने बिल्कुल नहीं पढ़ीं । कभी-कभी रात को वह लिखने बैठ जाता । वह देर-देर तक लिखता रहता और सुबह सबकुछ फाड़ देता । एकाध बार उसे रोते हुए भी सुना गया ।           

   छठे वर्ष के आिखरी महीनों में कैदी पूरे उत्साह से नयी-नयी भाषाएं सीखने लगा। वह दर्शनशास्त्र और इतिहास की किताबें पढ़ने लगा । वह इन विषयों में ऐसा डूबा कि बैकंर के लिए इतनी किताबें जुटाना मुश्किल होने लगा । चार सालों के समय में उसने करीब छह-सौ किताबें मंगवाई । इसी उन्माद के दौर में बैंकर को कैदी से एक पत्र मिला – ”प्यारे जेलर, मैं यह पंक्तियां छह भाषाओं में लिख रहा हूँ । तुम इसे विशेषज्ञों को दिखाओं । उन्हें ये पढ़ने दो। यदि उन्हें इनमें एक भी गलती न मिले तो मैं तुमसे गुजारिश करता हूँ कि बगीचे में बंदूक की गोली दागने का आदेश दो । उसकी आवाज से मैं समझ जाऊंगा कि मेरी मेहनत जाया नहीं हुई । हर युग और हर देश के जीनियस विभिन्न भाषाओं में बोलते हैं, पर उन सभी के भीतर की लौ एक ही है । मैं अब उन सबको समझ सकता हूँ इस अहसास ने मुझे जो परम सुख दिया है, ओह तुम उसका अंदाजा नहीं लगा सकते ।” कैदी की इच्छा पूरी कर दी गई । बैंकर के आदेश से बगीचे में दो बार गोलियां दागी गईं ।

   बाद में, जब दस वर्ष पूरे हो गए, वकील अपने टेबल के करीब स्थिर बैठा रहता और सिर्फ बाइबल पढ़ता रहता । बैंकर को इस बात का बड़ा तााुब होता कि एक शख्स जो चार सालों में छह सौ भारी भरकम किताबें चाट गया वही अब महज एक किताब पढ़ने में पूरा साल लगा रहा है, वह भी इतनी सरल और छोटी सी किताब । इसके बाद ‘बाइबल’  की जगह धर्म और आध्यात्म की किताबों ने ले ली ।

   अपने कारावास के अंतिम दो वर्षों के दौरान कैदी ने बेतरतीब तरीके से बहुत अधिक तादाद में पढ़ा । अब वह कभी प्राकृतिक विज्ञान पर कुछ पढ़ता, तो कभी बायरन या फिर शेक्सपीयर । वह जो पर्चियाँ भेजता उसमें एक ही साथ कभी रसायन शास्त्र, चिकित्सा विज्ञान की पाठय पुस्तकें, कभी कोई उपन्यास या दर्शन अथवा धर्म पर किसी शोधग्रंथ की मांग करता।  वह ऐसे पढ़ता जैसे समुद्र में जहाज के टूटे हुए टुकड़ों के बीच तैर रहा हो और अपना जीवन बचाने की लालसा में एक टुकड़ा छोड़ दूसरा पकड़ रहा हो ।

   बैंकर ने यह सब याद किया और सोचा :

   ”कल बारह बजे वह आजाद हो जाएगा। करारनामे के अनुसार मुझे उसे दो लाख देने होंगे । यदि मैं देता हूँ तो मैं पूरी तरह तबाह हो जाऊँगा हमेशा के लिये … ”

   पंद्रह साल पहले उसके पास बेपनाह दौलत थी, कई हजार मिलियन । पर अब उसके पास क्या बचा है? सिर्फ कर्ज । शेयर बाजार में सट्टे बाजी, जोिखम भरे दांव और अंधाधुंध खर्च जिसे वह बुढ़ापे में भी छोड़ नहीं पाया था । इन सब आदतों ने उसका कारोबार चौपट कर दिया था । एक बेबाक, आत्मविश्वासी और गर्वीला व्यापारी महज एक साधारण बैंकर बनकर रह गया था, जो बाजार में हर उतार-चढ़ाव से कांपने लगता था ।

   ”ओह वह बेहूदा शर्त!”  वह बूढ़ा हताशा में अपना सिर पकड़ मन ही मन  कोसने लगा … यह आदमी मर क्यों न गया ? वह सिर्फ चालीस साल का है । वह मेरी दमड़ी तक नहीं छोड़ेगा । मौज मस्ती करेगा और बाजार में दांव लगाकर खुश होगा और मैं कौड़ी कौड़ी का मोहताज एकर् ईष्यालु भिखारी बन कर रह जाऊंगा और रोज उससे मुझे वही सब सुनना होगा। ”मैं अपने जीवन की इस खुशी के लिए तुम्हारा आभारी हूँ । चलो मैं तुम्हारी मदद करूँ?” नहीं, कभी नहीं, यह  नहीं हो सकता । इस दिवालियेपन और बदनामी से बचने का अब केवल एक ही रास्ता है – ”इस आदमी को मरना होगा।”

   घड़ी ने तीन बजाए। बैंकर ने सुना । घर में हर कोई नींद में बेसुध था और िखड़कियों से बाहर केवल बर्फ से ढके वृक्षों की सरसराहट गूँज रही थी । बगैर कोई आवाज किये उसने सेफ से उस दरवाजे की चाबी निकाली जिसे पिछले पंद्रह वर्षों से खोला नहीं गया था । उसने अपना ओवर कोट पहना और घर से बाहर निकल आया । बगीचे में अंधेरा और ठंड थी । पानी बरस रहा था । जिस्म को बेधती हुई सर्द हवा बगीचे में सरसरा रही थी। वृक्षों का झूमना जारी था । बैंकर ने अपनी ऑंखों पर काफी जोर डाला पर उसे कहीं कोई जमीन नजर नहीं आई । वह बगीचे में बनी सफेद मूर्तियों, कैदखाने और वृक्षों को भी नहीं देख पा रहा था। उस कैदखाने की ओर बढ़ते हुए उसने दो बार वॉचमैन को आवाज दो । जवाब नहीं मिला । जाहिर था कि खराब मौसम से बचने के लिये वह रसोई अथवा ग्रीन हाउस के किसी कोने में जा सोया था ।

   ”यदि मैं अपने इरादे को पूरा करने का साहस जुटा लेता हूँ तो सबसे पहले वाचमैन पर ही शक किया जाएगा,” बूढ़े बैंकर ने मन ही मन सोचा ।

   ऍंधेरे में उसने सीढ़ियों और दरवाजे को टटोला और उस कैदखाने के हॉल में प्रवेश किया, फिर संकरे गलियारे में दीवार टटोलकर बढ़ने लगा ।

   उसने माचिस की तीली जलाई ।

   वहाँ किसी का नामोनिशां नहीं था । किसी का बिस्तरा बिना चादर के वहाँ पड़ा था और लोहे का एक स्टोव कोने में अस्पष्ट धुंधला सा दिखाई दे रहा था । कैदी के दरवाजे पर लगी सील बरकरार थी ।

   जब तीली बुझ गई, तो उत्तेजना से कांपते हुए उस बूढ़े ने छोटी िखड़की से भीतर झांका । कैदी के कमरे में धुंधली सी मोमबत्ती जल रही थी । कैदी खुद टेबल के करीब बैठा हुआ था । केवल उसकी पीठ, सिर के बाल और हाथ दिख रहे थे । खुली किताबें मेज पर दोनों कुर्सियों और टेबल के पास बिछे कालीन पर बिखरी हुई थीं ।

   पाँच मिनट बीत गए पर कैदी ने कोई हरकत नहीं की । पंद्रह वर्ष के कारावास से उसे स्थिर बैठने का अभ्यास हो गया था । बैंकर ने अपनी ऊँगली से िखड़की पर दस्तक दी । जवाब में कैदी ने कोई हरकत नहीं की । फिर बैंकर ने सावधानी से दरवाजे की सील तोड़ दी और ताले में चाबी घुमाई । जंग लगे ताले से एक कर्कश सी गुर्राने जैसी आवाज निकली । दरवाजा चरमरा उठा । बैंकर को तत्काल आश्चर्यभरी सिसकारी और किसी के कदमों की आवाज सुनने की पूरी उम्मीद थी । तीन मिनट बीत गए पर भीतर पहले जितनी ही निस्तब्धता छाई रही । अब उसने अंदर घुसने का इरादा किया ।

   मेज के समीप एक आदमी बैठा हुआ था । किसी सामान्य आदमी से बिल्कुल धूसर जमीन की तरह । गाल अंदर धंस गए थे, पीठ लम्बी और पतली और हाथ, जिस पर वह अपने घने बालों वाला सिर झुकाकर लेटा हुआ था, इतना पतला था कि उसे देखना बेहद कष्टदायक था । उसके बालों में सफेदी चमकने लगी थी और उस बूढ़े से लगने वाले जर्जर शरीर को देखकर यह यकीन करना मुश्किल था कि वह सिर्फ चालीस साल का है । मेज पर, उसके झुके हुए सिर के पास ही एक कागज रखा था जिस पर बहुत छोटे-छोटे अक्षरों में कुछ लिखा हुआ था ।

   ”बेचारा शैतान” बैंकर ने सोचा, ”वह सोया है और शायद करोड़ों के सपने देख रहा है । मुझे बस उसके अर्द्ध मरणासन्न शरीर को बिस्तर पर फेंकना होगा, एक मिनट तकिये से दबाना होगा और किसी भी तरह की चांज से यह सिद्ध नहीं पाएगा कि उसकी मौत सामान्य ढंग से नहीं हुई है । पर पहले देख लिया जाए उसने यहाँ क्या लिखकर रखा है?”

   बैंकर ने मेज से कागज उठाया और पढ़ने लगा :

   ”कल आधी रात को ठीक बारह बेज मैं आजाद हो जाऊँगा और लोगों से मिलजुल सकूँगा । पर यह कोठरी छोड़ने और सूरज देखने से पहले मैं आपसे कुछ कहना जरूरी समझता हूँ । मैं अपने पूरे होशहवास में और ईश्वर को साक्षी मानकर यह घोषित करता हूँ कि मैं आजादी, जिन्दगी और खुशहाली तथा तुम्हारी किताबों में दर्ज दुनिया की तमाम खुशियों से नफरत करता हूँ ।”

   ”पंद्रह सालों तक मैंने बड़ी मेहनत से सैकड़ों किताबें पढ़ी और इस दुनिया के बारे में सच जाना । सच तो यह है कि मैंने इन किताबों में ही दुनिया की हर चीज को देखा । तुम्हारी इन किताबों में मैंने सुगंधित मदिरा को पिया है, जंगलों में हिरणों और खतरनाक सूअरों का शिकार किया है । स्त्रियों से प्रेम किये हैं । ये सुन्दर स्त्रियाँ जो अलौकिक बादलों की तरह थीं, आपके कवियों की प्रतिभा से जादू का सा असर करती, रातों को मेरे करीब आईं । उन्होंने फुसफुसाकर मुझे अद्भुत कथाएं सुनाईं, जिन्हें सुनकर मैं नशे से चूर हो गया । तुम्हारी किताबों में मैंने एलब्रूज और मान्ट ब्लॉन्क की चोटियों की चढ़ाई की और वहाँ से मैंने देखा कि सुबह सूरज किस तरह उगता है, और शाम को कैसे पूरे आकाश को लालिमा से भर देता है? किस तरह समुद्र और पहाड़ की चोटियाँ बैंगनी सुनहरे रंग में रंग जाती हैं? मैंने वहाँ से देखा कि किस तरह बिजली कौंधती है और बादलों को चीरती चली जाती है? मैंने हरे-भरे जंगल, खेत खलिहान, नदियाँ, झीलें, नगर देखे । मैंने शांत गीतों और वाद्य यंत्रों के संगीत को सुना । मैंने उन सुन्दर यक्षों के परों को छुआ जो ईश्वर की बातें करते उड़ते हुए मेरे पास आते थे । इन किताबों में मैं अतुल गहराई में डूबा, मैंने कई चमत्कार देखे । इन किताबों में मैंने संसार के बसते और उजड़ते शहरों को जाना । इन किताबों से मुझे मनुष्य के हजारों सालों के इतिहास का ज्ञान हुआ।

   ”तुम्हारी किताबों ने मुझे ज्ञान दिया, युगों से जन्मे अथक मानवीय विचार मेरी खोपड़ी के छोटे से पिंड में सिकुड़ कर रह रहे हैं। मुझे पता है कि मैं आप सभी से यादा ज्ञानी हूँ ।

   ”और मैं जान गया हूँ कि संसार की हर चीज झूठी है । नफरत है मुझे तुम्हारे इन सांसारिक सुखों से और समझदारी से । सबकुछ मरीचिका की तरह व्यर्थ, खोखला, नश्वर, काल्पनिक और भरमाने वाला है । कोई कितना भी सुन्दर हो, बुद्धिमान हो, गर्वीला हो फिर भी किसी दिन मौत उसका नामोनिशां मिटा देगी, बिल्कुल धरती में दफन चूहों की भाँति और तुम्हारा सारा वैभव, सारी समृद्धि सारा इतिहास धरा रह जाएगा और तुम्हारे प्रतिभासम्पन्न विद्वानों की अमरता भी नहीं रहेगी । वह इस लौकिक भूमंडल के साथ नष्ट हो जाएगी ।         

   ”तुम पागल हो और रास्ता भटक गए हो। तुमने मिथ्या को ही सत्य मान लिया है और कुरूपता को सुंदरता । यदि तुम अचानक सेब और संतरे के वृक्षों पर फलों की बजाय मेढंक

और छिपकलियों को उगते देख¤ लो या फिर गुलाब में से बदबूदार घोड़े की पसीने की गंध आने लगे तो यह सब तुम्हें विस्मय से भर देगा । मुझे भी तुम्हें देखकर ऐसा ही विस्मय होता है । मैंने पृथ्वी के बदले स्वर्ग पाया है । मैं तुम्हें समझना नहीं चाहता ।

   ”और मैं साबित करना चाहता हूँ कि मेरे लिये यह सब व्यर्थ है जिसके लिए तुम मर -मिटते हो। मैं उस दो लाख की रकम को भी तिलांजलि देता हूँ जिसकी मैंने कभी जनन्त के रूप में कल्पना की थी और जिससे अब मुझे नफरत है, मैं उन पैसों पर अपना अधिकार छोड़ता हूँ । मैं कल रात बारह बजने से पाँच मिनट पहले ही बाहर आ जाऊँगा और इस तरह करार की शर्तों को तोड़ दूंगा।”

   जब बैंकर पूरा पत्र चुका तो उसने वह कागज टेबल पर रख दिया । उसने कैदी के माथे का चुंबन लिया और रोने लगा । वह कोठरी से बाहर आ गया । जिन्दगी में कभी, किसी भी समय, अपना सबकुछ सट्टे में गंवाने पर भी उसे अपने आप से इतनी घृणा नहीं हुई थी जितनी आज ! घर आकर वह बिस्तर पर गिर पड़ा, इस हादसे ने उसे इतना हिला दिया था कि देर तक वह रोता रहा और उसे नींद नहीं आई ।

   अगली सुबह बेचारा वॉचमेन भागते हुए उसके पास आया और बताया कि उसने उस कैदी को कोठरी की िखड़की से बगीचे में कूदते हुए देखा । वह गेट से बाहर निकल ओझल हो गया । बैंकर तत्काल अपने नौकर के साथ उस कोठरी तक गया और कैदी के  भाग जाने की पुष्टि की । किसी तरह की अफवाह से बचने के लिये उसने बेहद निर्मोही ढंग से पत्र उठाया और वहाँ से लौटकर सेफ में बंद कर दिया ।

One thought on “कहानीः शर्त – चेखव”

  1. बड़ी ही पेचीदा कहानी है इस कहानी से मुझे इतना ही समझ आया कि किताबों में दुनियाँ का सारा ज्ञान भरा पड़ा है और जो किताबों से प्रेम कर ले वह अन्ततः जिंदगी को समझ जायेगा ,उसे फिर अपनी बोरियत दूर करने के लिए किसी महफ़िल की जरूरत नहीं पड़ेगी और दूसरी बात यह समझ आयी कि इंसान अंतिम समय तक जिंदगी का मोह नहीं छोड़ पाता, युवा वकील मृत्युदंड और आजीवन कारावास में से किसी एक को चुनने के सवाल पर आजीवन कारावास चुनता है और बैंकर अंत में सच जान लेने पर भी दिवालिया होने के डर से अपनी शर्त पर कायम नहीं रह पाता और शर्त हार जाने पर भी उसे उजागर नहीं कर पाता…दु:खद पहलू यह है कि अंत में भी वह उस वकील से लापरवाह बना रहता है,उसका अंतिम पत्र सार्वजनिक नहीं कर पाता,वह अपनी हार सार्वजनिक नहीं कर पाता।

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