एम.ए. समीर “हमको मिटा सके ये जमाने में दम नहीं….” जिगर मुरादाबादी ने हमेशा फिल्मी दुनिया से दूरी बनाए रखी ये इश्क़ नहीं आसां इतना ही समझ लीजे इक आग का दरिया है और डूब के जाना है यह एक बहुत ही मशहूर शेर है, जिसे न सिर्फ खत-ओ-किताबत के दौरान खूब इस्तेमाल किया गया, […]
Read Moreप्रेम कुमार केंद्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने फ़िल्म अभिनेता रजनीकांत के लिए दादा साहेब फाल्के पुरस्कार की जैसे ही घोषणा की, बंगाल और असम में मतदान का लाइव दिखा रहे न्यूज़ चैनल और वहां मौजूद विश्लेषकों में दो खेमे बन गये। एक इस घोषणा को राजनीतिक बता रहा था तो दूसरा इस […]
Read Moreनेटफ्लिक्स पर अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के मौके पर रिलीज हुई ‘बॉम्बे बेगम्स’ विवादों में घिर गई है। राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग द्वारा आरोप लगाए गए हैं कि इसमें बच्चों का अनुचित तरीके से चित्रण किया गया है। एनसीपीसीआर ने एक नोटिस जारी कर इस वेब सीरीज की स्ट्रीमिंग को रोकने की मांग की है। […]
Read Moreश्रेया हाल में ही एमज़ॉन प्राइम पर आई फिल्म ‘द लास्ट कलर’ इस पितृसत्तात्मक समाज की बेड़ियों को तोड़ती हुई महिलाओं, मूलतः विधवाओं के हकों की बात करती है। बनारस में फिल्माई गई यह फिल्म महिला केन्द्रित फिल्म है जो विधवाओं के साथ होने वाले अमानवीय बर्ताव के अलावा और भी कई संजीदा विषयों के […]
Read Moreएम.ए. समीर नरेंद्र शर्मा पहले मदन मोहन मालवीय की पत्रिका ‘अभ्युदय’ से जुड़े, उसके बाद उन्होंने सिनेमा, आकाशवाणी और दूरदर्शन से भी जुड़े. भारतीय सिनेमा के अभिनय सम्राट को ‘दिलीप कुमार’ नाम देने वाले और भारतीय रेडियो प्रसारण में आकाशवाणी के सबसे लोकप्रिय चैनल ‘विविध भारती ’ को ‘विविध भारती’ नाम देने वाले भी नरेंद्र […]
Read Moreसुनील मिश्र “कुलभूषण खरबंदा ऐसे कलाकार हैं, जिनके लिए भूमिकाएं लिखी नहीं जा सकतीं, क्योंकि वे किसी किरदार को निभाते नहीं, बल्कि जीते हैं” मिर्जापुर के दो सीजन देखते हुए ध्यान कुलभूषण खरबंदा पर एकाग्र हो जाता है। सामने एक किरदार बैठा है जिसका नाम है, सत्यानंद त्रिपाठी। उसका बेटा अखंडानंद त्रिपाठी मिर्जापुर का बाहुबली […]
Read Moreरामजी यादव नसुड़ी यादव बिरहा गायन के इतिहास के सबसे अलग, विलक्षण और बोल्ड गायक थे। वे बिरहा के आदि विद्रोही थे और उन्होंने पूर्वांचल के समाज में व्याप्त सांस्कृतिक जड़ता, अज्ञानता, धार्मिक अंधविश्वासों और मिथकों पर इतना जोरदार प्रहार किया कि खुद मूर्तिभंजन के एक मिथक बन गए। अपने जीवनकाल में ही वे किम्वदंती […]
Read Moreदादा साहब फालके का लिखा यह आलेख 1913 में तब की मशहूर पत्रिका नवयुग में छपा था. इसमें उन्होंने अपने संघर्षों की कहानी कही है 1910 में बंबई के अमरीका-इंडिया पिक्चर पैलेस में मैंने ‘द लाइफ ऑफ़ क्राइस्ट’ फिल्म देखी. इससे पहले, कई बार अपने परिवार या मित्रों के साथ फिल्में देखी होंगी, लेकिन क्रिसमस […]
Read Moreअनुराग भारद्वाज अपनी मौत से एक दिन पहले ग़ालिब ने नवाब लोहारू के खत का जवाब कुछ यूं लिखवाया- मुझसे क्या पूछते हो कि कैसा हूं? एक या दो दिन ठहरो फिर पड़ोसी से पूछ लेना सौं उससे पेश-ए-आब-ए से बेदरी है (मैं झूठ बोलूं तो प्यासा मर जाऊं), शायरी को मैंने नहीं इख़्तियाया (अपनाया). […]
Read Moreअनिल शुक्ल बंसी कौल ने अंततः ड्रामा स्कूल से निकलने के 11 साल बाद भोपाल में जमने का फ़ैसला करते हैं। यहाँ 1984 में उन्होंने ‘रंग विदूषक‘ नाट्य संस्था की स्थापना की। …ऐसे दौर में जबकि हिंदी रंगकर्म का आकार निरंतर संकुचित होता जा रहा है और ज़रूरत उसके भीतर लोक नाट्य के नए-नए तत्वों […]
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