8 मार्च 2021 को अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस के उपलक्ष्य में हिंदी साहित्य परिषद्, हिंदी विभाग, राजधानी कॉलेज, दिल्ली विश्वविद्यालय द्वारा ‘इको फेमिनिज़्म’ विषय पर व्याख्यान का आयोजन किया गया।गूगल मीट पर आयोजित वेबीनार में यह व्याख्यान सुप्रसिद्ध आलोचक प्रो. के. वनजा द्वारा दिया गया। स्वागत व्यक्तव्य देते हुए, कॉलेज के प्राचार्य डॉ. राजेश […]
Read Moreगायत्री आर्य ऑफिस में क्रेच खोलिए, मांओं को छुट्टी देने में नाक-भौं न सिकोड़िए, महिलाओं पर अश्लील चुटकुले न बनाइए. कुछ भी ऐसा करिए और तब कहिए कि आप महिलाओं का सम्मान करते हो प्रसव का दर्द और मातृत्व का सुख तब भी था जब भाषाएं और सभ्यताएं भी विकसित नहीं हुई थीं. यानी मातृत्व […]
Read Moreशिखा सर्वेश पितृसत्तात्मक समाज की सोच को बदलने के लिए राजनीतिक दलों, सरकारों एवं सामाजिक संगठनों को मिलकर काम करना होगा। इस मानसिकता के नहीं बदलने तक महिलाओं की स्थिति में सुधार संभव नहीं है। आज भी स्वतंत्र स्त्री की पराधीनता में सबसे बड़ी बाधक बात यही है कि वह हमेशा किसी न किसी के […]
Read Moreश्रेया हाल में ही एमज़ॉन प्राइम पर आई फिल्म ‘द लास्ट कलर’ इस पितृसत्तात्मक समाज की बेड़ियों को तोड़ती हुई महिलाओं, मूलतः विधवाओं के हकों की बात करती है। बनारस में फिल्माई गई यह फिल्म महिला केन्द्रित फिल्म है जो विधवाओं के साथ होने वाले अमानवीय बर्ताव के अलावा और भी कई संजीदा विषयों के […]
Read Moreभारत का विभाजन दक्षिण एशिया के लिए एक बड़ी त्रासदी था. विभाजन के पीछे मुख्यतः तीन कारक थे – पहला, ब्रिटिश सरकार की फूट डालो और राज करो की नीति, दूसरा, हिन्दू साम्प्रदायिकता, जो भारत को हिन्दू राष्ट्र बनाना चाहती थी और तीसरा, मुस्लिम साम्प्रदायिकता, जो धर्म के आधार पर एक अलग देश, पाकिस्तान, की […]
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