सुप्रसिद्ध साहित्यकार,प्रतिष्ठित व्यंग्यकार व संपादक रहे श्री प्रभाकर चौबे लगभग 6 दशकों तक अपनी लेखनी से लोकशिक्षण का कार्य करते रहे । उनके व्यंग्य लेखन का ,उनके व्यंग्य उपन्यास, उपन्यास, कविताओं एवं ससामयिक विषयों पर लिखे गए लेखों के संकलन बहुत कम ही प्रकाशित हो पाए । हमारी कोशिश जारी है कि हम उनके समग्र लेखन को प्रकाशित कर सकें । हम पाठकों के लिए उनके व्यंग्य उपन्यास ‘हे विदूषक तुम मेरे प्रिय’को धारावाहिक के रूप में प्रकाशित कर रहे हैं । विदित हो कि‘भिलाई इप्टा’द्वारा इस व्यंग्य उपन्यास का नाट्य रूपांतर का काफी मंचन किया गया है । आज प्रस्तुत है 6 वीं कड़ी– बिकी नदी किनारे नाच- गानाः
6 – बिकी नदी किनारे नाच- गानाः
महाराज के दरबार में कचहरी लगी थी। महाराज न्याय करने मुकदमे सुन रहे थे। आज एक ही मुकदमा था। एक व्याक्तिं रस्सी से बँधा दरबार में पेश किया गया। महाराज ने पूछा- इसका क्या अपराध है।
पेशकार ने बताया कि यह जलगांव का रहने वाला है, यह नदी में नाव चलाते हुए पकत्रडा गया है।
महाराज ने कहा- नदी में नाव नहीं चलाएगा तो क्या सत्रडक पर नाव चलाएगा। पूरे मामले का खुलासा करो।
पेशकार ने कहा- महाराज यह उस नदी में नाव चला रहा था जिसे बेच दिया गया है। राज्य के नगर सेठ ने वह नदी खरीदी है।
महाराज ने आरोपित से पूछा- तुम निजी नदी पर नाव क्यों चला रहे थे।
आरोपित ने कहा- महाराज मुझे पता नहीं था कि नदी बिक गई है।
महाराज ने कहा- नदी के तट पर सूचना फलक लगाया गया है कि इस नदी का पानी नगर सेठ को बेच दिया गया है। अब इसमें मछली मारना, नाव चलाना, तैरना सब प्रतिबंधित है। तुमने सूचना फलक पत्रढा नहीं।
आरोपित ने कहा- महाराज मैं पत्रढा- लिखा नहीं हूँ। मजूरी करता हूँ।
महाराज ने गुस्से में कहा- तुम अनपत्रढ हो। साक्षर नहीं हो। हमारे राज्य में सर्वशिक्षा अभियान चल रहा है, सबको साक्षर करना है, तुम कैसे छूट गए।
महाराज ने दीवान से कहा कि वे शिक्षा विभाग से सम्पूर्ण साक्षरता की ास्थिंति की जानकारी लें। दीवान ने बताया कि सम्पूर्ण शिक्षा अब शिक्षा विभाग के पास नहीं है, सम्पूर्ण साक्षरता एक मिशन है और एक मिशन यह काम कर रहा है।
महाराज ने पूछा कि शिक्षा विभाग में और कितने शिक्षा उपविभाग है, बत्रडा अंधेर है, वे गरजे। दीवान ने बताया कि इसकी जानकारी ज्ञानमंडल के संचालक विदूषक जी देंगे।
महाराज ने कहा- तब ठीक है। फिर आज के मुकदमे की ओर आए, बोले हाँ तो आरोपित तुम एक निजी नदी के पानी में नाव चला रहे थे, क्यों?
आरोपित ने कहा- महाराज, आज्ञा हो तो पूरा किस्सा बयान करूँ, गलती हुई हो तो माफी दीजिएगा।
महाराज ने कहा- सुनाओ किस्सा। आज किस्सा सुनने का दिन हुआ। विदूषक जी आप भी सुनिए। किस्सा शुरू हो।
आरोपित ने किस्सा सुनाया- महाराज मैं अपत्रढ, गाँव का रहने वाला, कभी खेतों में, कभी रोजगार गारंटी योजना में मजूरी करता हूँ। तीन माह पहले, इसी वैशाख में मेरी शादी हुई। महाराज मुझे टी0वी0 पर कैसेट लगाकर नई- नई फिल्में देखने का शौक है। गाँव में जो वीडियो केन्द्र है वहाँ दो रुपए टिकिट में मजेदार फिल्में दिखाई जाती है। एक से एक बत्रिढया फिल्म। हीरो हिरोइन प्यार कर रहे हैं। गाना गा रहे हैं- कभी बाग- बगीचे में नाचते गा रहे हैं, कभी खेत- खलिहान में गा रहे हैं, कभी पहात्रड पर, कभी जंगल में गा रहे हैं। सुंदर- सुंदर बदन दिखाते नदी में नाव में बैठकर गाना गाते हैं।
महाराज, मेरी शादी हुई। एक दिन मैं और मेरी पत्नी दोनों ने ऐसी प्यार भरी फिल्म देखी। पत्नी ने कहा कि- चल अइसने अपने चलो नाचबो- गाबो। मुझे लगा कि मैं पत्नी की इच्छा पूरी करूँ। मैं यह सोचकर उत्साह में भर गया कि हम दोनों फिल्मी एक्टरों की तरह बागीचे में नाचेंगे, नाव में बैठकर गाएंगे।
दीवान ने टोका- अरे तेरी कहानी कब तक चलेगी।
विदूषक ने कहा- दीवानजी, इसे कहने दें।
फिर आरोपित ने बताना शुरू किया- महाराज मैंनें पत्नी से कहा कि मैं कोई सुन्दर- सा बागीचा देखकर आता हूँ, फिर साथ चलेंगे। मैं बगीचा खोजने निकला तो पाया कि आस- पास शहरों के सारे बागीचे सूने पत्रडे हैं। फूल- पत्ती की क्या बात, छाया तक नहीं वहाँ। फिर मैं तालाब देखने गया तो पाया कि तालाब में पानी कीचत्रड है। लद्दी में तो तैरा नहीं जा सकता। एक पुराने तालाब का पानी बास कर रहा है तो एक के किनारे कचरा पत्रडा है। एक भी तालाब तैरने लायक नहीं मिला। फिर मैं नदियों की ओर गया। नदियाँ सूखी। कुछ पर बत्रडे बाँध बना दिए गए हैं, नीचे पानी नहीं आता। और महाराज खोजते- खोजते इस नदी तक पहुँचा। यहाँ लबालब पानी देखकर मन मचल उठा। किनारे नाव थी, उसे लेकर नाव चलाने लगा। सोचा कि शाम को पत्नी को ले आऊँगा, दोनों नाव में बैठकर गाना गाते मजा लेंगे।
दीवान ने पूछा- तुम्हें पता नहीं था कि यह नदी बिक गई है। अब यह गाँव वालों की नहीं रही, प्रायवेट हो गई है।
आरोपित बोला- महाराज, मुझे क्या पता कि नदी, पहात्रड, हवा, पानी बिकने लगे।
महाराज ने कहा- तुमने अपराध तो किया है, दंड मिलेगा।
दीवान ने कहा- महाराज, इसे कत्रडे से कत्रडा दंड दिया जाए, लोगों को पता चले कि प्रायवेट नदी में नहाने, नाव चलाने पर महाराज छोत्रडेंगे नहीं।
महाराज ने कहा- क्या दंड दिया जाए, यह विदूषक जी बताएं।
विदूषक ने कहा- महाराज, लगता है यह, नर्तक- गायक है। इसका उपयोग किया जा सकता है।
मंत्री ने पूछा- कैसे?
विदूषक ने कहा- इसे हम अपने संस्कृति विभाग में भर्ती कर लेते हैं। यह अपने राज्य के पर्यटन स्थलों के प्रचार में काम आएगा। इसे नाच- गवाकर वीडियो फिल्म बनाएंगे और पर्यटन विकास के लिए जगह- जगह प्रदर्शित करेंगे। महाराज, हमने नदियों, जंगलों, तालाबों, झरनों के जो बत्रडे- बत्रडे अन्य पोस्टर बनवाए हैं और प्रचारित किया है कि लोग इसका आनंद लेने राज्य की सैर पर आएं। इन प्राकृतिक दृश्यों वाले पोस्टरों के सामने इस कलाकार और उसकी पत्नी को नचाकर फोटो लगेंगे। लगेगा कि ये सही में झरनों में खत्रडे होकर नाच रहे हैं और पर्यटक हमारे राज्य की ओर आकर्षित होंगे। महाराज, उस प्रायवेट नदी में पानी है, उसमें नाव चलाते हुए ये कलाकार नाचेंगे।
दीवान ने पूछा- राज्य की नदियों की क्या हालत है?
विदूषक ने कहा- सुना नहीं कि सूखी हैं। लेकिन राज्य की नदियों को जल से भरी हुई दिखाना है, इसलिए नदियों के चित्र काम में लाएं। चित्र की नदियाँ वास्तविक नदियों से ज्यादा सुंदर लगेंगी।
महाराज ने कहा- तो इस आरोपित को पर्यटन विकास के प्रचार में भर्ती कर लें।
विदूषक ने कहा- हाँ महाराज, यह बत्रडे काम का है। बेची गई नदियों को वापस तो ले नहीं सकते, लेकिन लोग नदी बेचने पर हल्ला न करे इसका उपाय तो कर ही सकते हैं। इसका उपाय यही है कि राज्य के लोगों को फोटो की नदियाँ दिखाएं उसके सामने नृत्य गान होता दिखाएं। जनता मनोरंजन में मस्त रहेगी। नदियाँ बिकीं इस पर सोचना छोत्रड देगी।
महाराज ने कहा- वाह! विदूषक वाह!
मंत्री ने कहा- जिस राजा का सलाहकार विदूषक हो, उस राजा पर आया संकट हंसते- गाते निकल जाता है।
अगली 7 वीं कड़ी में- महँगाई पर विदूषक की राय