प्रवासी मजदूरों के पलायन के बीच एक और चौंकाने वाली रिपोर्ट आई है कि देश में करोड़ों शिक्षित युवा बेरोजगार हो गए हैं जिनकी उम्र 20 से 30 साल के बीच हैं, सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमीकी रिपोर्ट के मुताबिक अप्रैल महीने में देश के 2.7 करोड़ युवाओं की नौकरी चली गई, ये युवा 20 से 30 वर्ष के आयु के बीच के हैं. उल्लेखनीय है कि अन्य देशों के मुकाबले भारत में युवाओं की संख्या भी अधिक है.
सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी सीएमआईई के आंकड़ों के मुताबिक अप्रैल में मासिक बेरोजगारी दर 24 प्रतिशत दर्ज की गई जबकि यह मार्च में 8.74 प्रतिशत थी. 3 मई को समाप्त हुए सप्ताह में बेरोजगारी दर 27 फीसदी थी. आंकड़े बताते हैं कि देश में फिलहाल 11 करोड़ से अधिक लोग बेरोजगार हैं. सर्वे के मुताबिक नौकरियां गंवाने वाले लोगों में 20 से 24 साल की उम्र के युवाओं की संख्या 11 फीसदी है. सीएमआईई के मुताबिक 2019-20 में देश में कुल 3.42 करोड़ युवा काम कर रहे थे जो अप्रैल में 2.9 करोड़ रह गए. इसी तरह से 25 से 29 साल की उम्र वाले 1.4 करोड़ लोगों की नौकरी चली गई. 2019-20 में इस वर्ग के पास कुल रोजगार का 11.1 फीसदी हिस्सा था लेकिन नौकरी जाने का प्रतिशत 11.5 फीसदी रहा. अप्रैल में 3.3 करोड़ पुरुष और महिलाओं की नौकरी चली गई. इसमें से 86 फीसदी नौकरियां पुरुषों की गईं.
बड़े शहरों में लॉकडाउन के कारण कई कंपनियों के दफ्तर बंद हो गए या फिर वहां वर्क फ्रॉम होम का नियम अपनाया जा रहा है. देश की कई कंपनी ने नौकरी से तो नहीं निकाला है लेकिन लीव विदआउट पे (बगैर वेतन छुट्टी) पर भेज दिया है. कंपनियों का कहना है कि हालात सामान्य होने के बाद ही लोगों को नौकरी पर आने के बारे में सूचित किया जाएगा.
लॉकडाउन के कारण कारखाने बंद हो गए, दफ्तरों का काम घर से होने लगा और व्यवसायिक केंद्र बंद हो गए. इतनी कम उम्र में नौकरी जाना ना केवल युवाओं के लिए चिंता की बात है बल्कि नई नौकरी तलाशना भी चुनौती भरा काम है. इस उम्र में ही लोग अपना करियर स्थापित करते हैं. 25 मार्च से लागू लॉकडाउन के कारण कई सेक्टर प्रभावित हुए हैं, इनमें दुकानें, फैक्ट्रियां, बाजार, रेस्तरां, होटल और पर्यटन शामिल हैं. कोरोना वायरस और लॉकडाउन के कारण लाखों लोग अपने गृह राज्य की तरफ लौट रहे हैं. रिपोर्ट के मुताबिक “अन्य सेक्टरों के मुकाबले ऐसे सेक्टर पर ज्यादा प्रभाव पड़ा है जो युवाओं को नौकरी पर रखते हैं. जैसे कि पर्यटन, रिटेल, हॉस्पिटैलिटी, एविएशन इत्यादि.”इन व्यवसायों को पूरी तरह से बहाल होने में लंबा वक्त लगेगा. इस अनिश्चितता के बीच नौकरियां भी अनिश्चित हैं. इस स्थिति में सरकार और कॉरपोरेट की भूमिका अहम हो गई है. उम्मीद कर सकते हैं कि इन सेक्टरों में भी एहतियात के साथ दोबारा काम शुरू हो ताकि जो श्रमशक्ति अभी खाली बैठी है उसका इस्तेमाल हो सके. इसी के साथ हमें इस बात के लिए भी तैयार रहना होगा कि कंपनियां सौ फीसदी लोगों को काम पर नहीं लगाने जा रही हैं. सोशल डिस्टेंसिंग नियम का पालन करने का मतलब है कि कर्मचारियों की संख्या कम होगी. कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है कि अगले 2-3 महीने स्थिति विकट हो सकती है.”
ऐसे युवाओं के लिए यह खराब समय साबित हो रहा है जो अपना भविष्य बनाने के लिए निकले थे. कुछ लोगों को दिए गए नौकरी के ऑफर भी वापस लिए जा चुके हैं. लॉकडाउन के नियमों ने जरूरी और गैर जरूरी चीजों को बहुत अच्छे तरीके से परिभाषित कर दिया. जो जरूरी सेक्टर के तहत आते हैं वे तो प्रभावित नहीं हुए हैं लेकिन उनको बहुत चुनौती का सामना करना पड़ा है जो गैर जरूरी सेक्टर में आते हैं. दूसरी ओर कोरोना और लॉकडाउन के कारण औद्योगिक उत्पादन दर भी काफी हद तक तक नीचे आ गई है. 2008 की मंदी के बाद कोविड-19 की वजह से पहली बार बाजार में इतना ज्यादा निराशाजनक माहौल है. लोग वायरस को लेकर तनाव में तो हैं ही साथ ही उन्हें नौकरी जाने के खतरे के बारे में भी सोचना पड़ रहा है. नौकरी जाने से कमजोर व वंचित तबके ज्यादा प्रभावित होंगे क्योंकि उन्हें घर चलाने के लिए कर्ज के चक्र में फंसना होगा. यह अभूतपूर्व संकट है और यह भी तल्ख हकीकत है कि कोरोना संकट के खत्म होने के बाद भी आर्थिक संकट से छुटकारा पाना इतना आसान नहीं होगा. जानकारों के मुताबिक इस स्थिति से उबरने में कई साल लग सकते हैं.
इधर हाल ही में सरकार ने कोरोना वायरस महामारी और लॉकडाउन से प्रभावित अर्थव्यवस्था को उबारने और किसानों, श्रमिकों, मध्यमवर्ग समेत समाज के सभी प्रभावित वर्गों और क्षेत्रों को राहत देने के लिए 20 लाख करोड़ रुपये के विशेष आर्थिक पैकेज की घोषणा है. ये कितनी कारगर साबित होगी यह आने वाला वक्त बताएगा मगर अभी युवा वर्ग भयंकर बेरोजगारी की समस्या से जूझ रहा है.
कबीर