आर्थिक पैकेजः क्या मोदी सरकार शहरों की भीड़ कम करना चाहती है ?

By-इला पटनायक एवं राधिका पांडेय    
ऐसा लगता है कि सरकार शहरों की भीड़ कम करने की कोशिश कर रही है, क्योंकि शहरी क्षेत्रों के कल्याण और बेरोज़गारी सहायता के लिए कोई कार्यक्रम घोषित नहीं किए गए वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण के घोषित आर्थिक पैकेज में ग्रामीण क्षेत्रों के प्रति विशेष झुकाव, उद्योगों के लिए मुख्य रूप से लिक्विडिटी पैकेज, और शहरी ग़रीबों के लिए कुछ स्कीमें हैं. पैकेज में सामना करने की कई रणनीतियां, जैसे कि दिवालियापन क़ानूनों व कर अदाएगी में देरी, अनुपालन के उल्लंघन के वैधीकरण, और कई दीर्घ-कालीन आर्थिक सुधारों का प्रस्ताव दिया गया है. 

सामाजिक सुरक्षा में आगे बढ़कर, पैकेज में मान लिया गया है कि लोग अपने गांव लौट जाएंगे, और वहां काम तलाश करेंगे. अगर शहरों में रोज़गार कम हैं तो ग्रामीण भारत में आमदनी बढ़ाने की ज़रूरत है, जिसके लिए डेयरी, इंफ्रास्ट्रक्चर, मछली पालन, जड़ी-बूटियां, माइक्रो फूड यूनिट्स और फार्म्स के लिए बहुत सी स्कीमों की घोषणा की गई है. इसके अलावा किसानों की बाज़ारों तक सीधे पहुंच के लिए भी क़ानून प्रस्तावित किए गए हैं.

सरकार के इस आर्थिक पैकेज में मांग को बढ़ावा देने का सबसे बड़ा क़दम है, मनरेगा के लिए आवंटन राषि में वृद्धि, जो अब 40,000 करोड़ रुपए हो गई है.ऐसा लगता है कि सरकार शहरों की भीड़ कम करना चाह रही है, क्योंकि शहरी कल्याण, या शहरी बेरोज़गारी सहायता के लिए कोई बड़े कार्यक्रम शुरू नहीं किए गए.पहले ग़रीब कल्याण कार्यक्रम, या पहले स्टिमुलस पैकेज के बाद से ही, ग्रामीण क्षेत्रों की सहायता पर ध्यान दिया गया है, हालांकि उस समय भी प्रवासी मज़दूरों को, शहरों में वहीं बने रहने को कहा जा रहा था, जहां वो मौजूद थे.

आंशिक रूप से इसका एक कारण प्रशासनिक समस्या हो सकती है, क्योंकि शहरों में रह रहे श्रमिकों का कोई डेटाबेस नहीं था, जिससे उनके खातों में पैसा भेजा जा सकता. अब जब उनके गांव लौटने के बंदोबस्त किए जा रहे हैं, तो लगता है कि सरकार उन्हें वहीं पर रोज़गार मुहैया कराने के प्रयास तेज़ कर रही है.

भारतीय कृषि के उदारीकरण का समय

लेकिन ये भारतीय कृषि के लिए एक अवसर हो सकता है. अगर अगले दो-तीन साल में भारतीय कृषि में, परिवर्तन, आधुनिकीकरण और उदारीकरण के ज़रिए, ग्रामीण आय को बढ़ाने पर सही से ध्यान दिया जाए, तो ताज़ा कृषि उपज, जड़ी-बूटियां, ऑर्गेनिक फल व सब्ज़ियों के उत्पादन में, भारत दुनिया भर में अगुआ बन सकता है.

2 से 3 लाख के वित्तीय ख़र्च के अलावा, सीतारमण द्वारा घोषित पांच हिस्सों के आर्थिक पैकेज में, सॉवरेन गारंटी के ज़रिए क़र्ज़ों को बढ़ावा देने की कोशिश की गई है. अधिक पैसा देने के कुछ उपायों के वित्तीय उलझाव, आने वाले वर्षों में सामने आ सकते हैं. कृषि, खनन, बिजली वितरण, परमाणु ऊर्जा, स्पेस, डिफेंस आदि क्षेत्रों में कई आर्थिक सुधारों की घोषणा की गई है.

सरकार ने कृषि क्षेत्र में कुछ सुधारों पर अमल करने का वादा किया है- जैसे कि आवश्यक वस्तु अधिनियम में बदलाव, जिससे भंडारण में निवेश सहज होगा, एक क़ानूनी ढांचा जिससे अनुबंध खेती की अनुमति होगी, जो फसल बुवाई के समय किसान के लिए एक तय दाम सुनिश्चित करेगी, और एक केंद्रीय क़ानून जो अंतर-राज्यीय व्यापार व वाणिज्य के बीच की बाधाओं को हटाकर एक नेशनल फूड मार्केट तैयार करेगा. ये सब मिलकर तस्वीर बदल देंगे.

बहुत सी सरकारों ने इन कानूनों की बात की है, लेकिन किसी ने इन्हें अमल में लाने का राजनीतिक साहस नहीं दिखाया. अगर सरकार इस वादे को पूरा कर लेती है, तो फिर कृषि का उदारीकरण, 1991 के भारतीय उद्योग के उदारीकरण के समान होगा.

ग्रामीण भारत पर ख़र्च

सबसे पहले जिन उपायों की घोषणा की गई, उनमें किसानों को डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर्स, और मनरेगा मज़दूरी की दरों में इज़ाफ़ा शामिल थे.पिछले बृहस्पतिवार को सीतारमण द्वारा घोषित पैकेज के दूसरे हिस्से में, दो लाख करोड़ के रियायती क़र्ज़, और नाबार्ड के ज़रिए 30,000 करोड़ रुपए की वर्किंग कैपिटल फंडिंग भी जोड़ दी गई.

आर्थिक पैकेज के तीसरे हिस्से का फोकस पूरी तरह कृषि पर था. कोल्ड चेन्स और भंडारण इंफ्रास्ट्रक्चर जैसे फार्म गेट इंफ्रास्ट्रक्चर से जुड़े प्रोजेक्ट्स में पैसा लगाने के लिए, एक लाख करोड़ रुपए का एग्री इंफ्रास्ट्रक्चर फंड स्थापित किया गया. प्रधानमंत्री मत्स्य सम्पदा योजना बनाकर मछलीपालन की वैल्यू चेन को विस्तार दिया गया.तमाम फल सब्ज़ियों की सप्लाई चेन में आ रही बाधाओं को दूर करने के लिए 500 करोड़ रुपए, और जड़ी-बूटियों की खेती को बढ़ावा देने के लिए, अगले दो वर्षों में 4,000 करोड़ रुपए ख़र्च करने की घोषणा की गई.दूसरे क़दम भी घोषित किए गए जिनमें पशु रोगों पर नियंत्रण, पशु पालन ढांचे, और माइक्रो फूड निकायों का विकास शामिल है. अंत में, आख़िरी हिस्से में, मनरेगा के आवंटन में 40,000 करोड़ की बढ़ोतरी कर दी गई.

शहरी ग़रीबों के लिए उठाए गए क़दमों में ग़रीबों पर ध्यान दिया गया, जिनमें प्रवासी मज़दूर और सड़क विक्रेता शामिल हैं. प्रवासियों को अनाज की आपूर्ति पर सरकार 3,500 करोड़ रुपए ख़र्च करेगी, और 1500 करोड़ रुपए मुद्रा स्कीम के तहत दिए गए क़र्ज़ों के ब्याज में, सहायता के तौर पर दिए जाएंगे.

सड़क विक्रेताओं के लिए भी सरकार ने एक विशेष ऋण सुविधा के ज़रिए, 5,000 करोड़ रुपए की राहत का ऐलान किया. दूसरी घोषणाओं में, वन रोपण, वन प्रबंधन, और भू-संरक्षण, तथा वन्य-जीवन से संबंधित इंफ्रास्ट्रक्चर में रोज़गार पैदा करने के लिए, सरकार 6,000 करोड़ रुपए ख़र्च करेगी.

ऐसा लगता है कि ये पैकेज ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मज़बूती देने के उद्देश्य से तैयार किया गया है. भारी संख्या में उल्टे प्रवास को देखते हुए, यही रास्ता उचित प्रतीत होता है. क़ानूनी बदलावों के ज़रिए कृषि में तेज़ी से सुधार लाकर ही, भारत का आर्थिक विकास फिर से गति पकड़ सकता है.

सौ.-दप्रिंट-इस लेख को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए नीचे दी गई लिंक पर क्लिक करें-

https://theprint.in/ilanomics/is-modi-govt-trying-to-decongest-indian-cities-its-economic-package-gives-that-impression/424156/

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