एक तरफ तो अखबार अपना काम नहीं कर रहे हैं और दूसरी तरफ प्रचारक राम को नरेन्द्र मोदी से यह कहते हुए दिखा रहे हैं, 2022 तक तुम सभी को घर देने वाले थे, मुझे नहीं पता था मेरा भी घर हो जाएगा। पर मुद्दा यह है कि भगवान को भी घर देने की ज़िम्मेदारी सरकार की है? क्या भगवान अभी तक बेघर थे? और थे तो क्या भगवान राम ही बेघर हैं? हिन्दुओं के 34 करोड़ देवी-देवताओं में और कितनों को सरकार घर देगी? और अगर सरकार यही सब करेगी तो जनता के लिए काम कब करेगी और भले ही समर्थकों को सरकार से कोई अपेक्षा न हो पर देश के लिए, बाकी लोगों के लिए भी तो काम सरकार को ही करना है। अगर मंदिर बनवाना प्रधानमंत्री का काम नहीं है तो चंदा इकट्ठा करना और उससे जनता की सेवा करना भी प्रधानमंत्री का काम नहीं है। पर महामारी में पीएम केयर्स शुरू करने वाले प्रधानसेवक महामारी में मंदिर बनवा रहे हैं इसकी खबर देश के अखबारों में भले प्रशंसा के अंदाज में छपे विदेशों में तो मजाक ही उड़ेगा। क्या यह देश से मजाक नहीं है। राजद्रोह नहीं है?
नरेन्द्र मोदी के दो चेहरे हैं। एक जो वे लोगों को दिखाते हैं। मीडिया और उनके प्रचारक भी जो दिखाने-बताने की कोशिश करते हैं। इस क्रम में ट्वीटर पर पीएमओ इंडिया (@PMOIndia) की उनकी यह प्रोफाइल फोटो भारतीय संविधान के प्रति उनका समर्पण बताती है। 5 अगस्त को कल अयोध्या में राम मंदिर के शिलान्यास की खबर देने वाला ‘द टेलीग्राफ’ का पहला पन्ना उनका दूसरा चेहरा दिखा रहा है। शायद एक तीसरा चेहरा भी है जो पार्टी के प्रचारक बनाने-दिखाने की कोशिश करते रहे हैं। कायदे से आज सभी अखबारों और मीडिया चैनल का काम था यह बताना कि भारत सरकार अपने संविधान के खिलाफ जा रही है। या प्रधानमंत्री ने जो किया वह उनके शपथ के अनुकूल नहीं है।
प्रधानमंत्री का चुनाव राजनेताओं में से होता है और राजनीति ही यहां तक पहुंचने की सीढ़ी है। पर प्रधानमंत्री बन जाने के बाद उनसे एक अपेक्षा रहती है कि उन्हें वोट बटोरने वाली टुच्ची हरकतों से बचना चाहिए। वैसे भी मंदिर का शिलान्यास और सार्वजनिक रूप से पूजा करके वे वह नहीं कर रहे हैं जो करने की शपथ उन्होंने ली है। अखबार ने साथ में 30 मई 2019 को ली गई उनकी शपथ की याद दिलाई है। वह इस प्रकार है, “मैं, नरेन्द्र दामोदरदास मोदी ईश्वर की शपथ लेता हूं कि मैं विधि द्वारा स्थापित भारत के संविधान के प्रति सच्ची श्रद्धा और निष्ठा रखूंगा। मैं भारत की प्रभुता और अखंडता अक्षुण्ण रखूंगा। मैं संघ के प्रधानमंत्री के रूप में अपने कर्तव्यों का श्रद्धापूर्वक और शुद्ध अंतकरण से निर्वहन करूंगा तथा मैं भय या पक्षपात अनुराग या द्वेष के बिना सभी प्रकार के लोगों के प्रति संविधान और विधि के अनुसार न्याय करूंगा …..।“
कहने की जरूरत नहीं है कि उपरोक्त शपथ के बाद मंदिर का शिलन्यास करना वही है जो द टेलीग्राफ ने अपने शीर्षक में कहा है, “हमारा संविधान जो एक ग्रंथ है और जिसकी शुरुआत ‘हम भारत के लोग’ से होती है वह अब एक ऐसा ईश्वर है जिसके आगे हम नाकाम रहे हैं।” अखबार का दूसरा शीर्षक है, “राजा और ऋषि अब गणराज्य में अलग नहीं रहे।” प्रधानमंत्री राजनीति करें यह चाहे जितना गलत है, अखबार वाले और समझने वाले इसे उजागर न करें, यह उससे भी बड़ी गलती है। टेलीग्राफ ने उनके कल के भाषण का यह अंश उनके शपथ के साथ प्रकाशित किया है। इसके अनुसार, “(गुलामी के कालखंड में कोई ऐसा समय नहीं था जब आजादी के लिए आंदोलन न चला हो), देश का कोई भू-भाग ऐसा नहीं था जहां आजादी के लिए बलिदान न दिया गया हो ….. । इसी तरह कई पीढ़ियों ने सदियों तक समर्पण के साथ राम मंदिर के लिए प्रयास किए। आज का दिन उस बलिदान और प्रतिबद्धता का प्रतीक है ….। आज का ये दिन सत्य, अहिंसा, आस्था और बलिदान को न्यायप्रिय भारत की एक अनुपम भेंट है ….।“
एक तरफ तो अखबार अपना काम नहीं कर रहे हैं और दूसरी तरफ प्रचारक राम को नरेन्द्र मोदी से यह कहते हुए दिखा रहे हैं, 2022 तक तुम सभी को घर देने वाले थे, मुझे नहीं पता था मेरा भी घर हो जाएगा। पर मुद्दा यह है कि भगवान को भी घर देने की ज़िम्मेदारी सरकार की है? क्या भगवान अभी तक बेघर थे? और थे तो क्या भगवान राम ही बेघर हैं? हिन्दुओं के 34 करोड़ देवी-देवताओं में और कितनों को सरकार घर देगी? और अगर सरकार यही सब करेगी तो जनता के लिए काम कब करेगी और भले ही समर्थकों को सरकार से कोई अपेक्षा न हो पर देश के लिए, बाकी लोगों के लिए भी तो काम सरकार को ही करना है। अगर मंदिर बनवाना प्रधानमंत्री का काम नहीं है तो चंदा इकट्ठा करना और उससे जनता की सेवा करना भी प्रधानमंत्री का काम नहीं है। पर महामारी में पीएम केयर्स शुरू करने वाले प्रधानसेवक महामारी में मंदिर बनवा रहे हैं इसकी खबर देश के अखबारों में भले प्रशंसा के अंदाज में छपे विदेशों में तो मजाक ही उड़ेगा। क्या यह देश से मजाक नहीं है। राजद्रोह नहीं है?
कहने की जरूरत नहीं है कि प्रधानमंत्री ऐसे काम प्रचार के लिए ही करते हैं और मीडिया चूंकि बाजा बजाने की भूमिका में ही रहता है इसलिए उन्हें इससे राजनीतिक लाभ ही लाभ नजर आता है और बाकी काम सरकार के प्रचारक करते हैं और सब बढ़िया चल रहा है। देश की धर्मभीरू, अशिक्षित जनता को भी अपना नुकसान नहीं दिखता है। और ऐसे लोगों की परवाह करने वाला लगता है कोई नहीं है। आइए देखें दूसरे अखबारों में यह खबर कैसे कितनी बड़ी और किस शीर्षक से छपी है।
अंग्रेजी अखबारों में जो मैं देख पाया है उनका विवरण इस प्रकार है।
- द हिन्दू
पांच कॉलम में लीड तीन कॉलम में भक्तिमय फोटो के साथ। मुख्य शीर्षक का अनुवाद होगा – भारतीय संस्कृति का आधुनिक प्रतीक : मोदी। उपशीर्षक है, ‘प्रधानमंत्री ने अयोध्या में राम मंदिर के निर्माण की शुरुआत की कहा, यह एक स्वर्ण अध्याय की शुरुआत है।’ इसके साथ अमित शाह, राहुल गांधी और पाकिस्तान की टिप्पणी तीन अलग अलग बराबर के कॉलम में छपी है। पाकिस्तान के बारे में यह कहा बताया गया है कि इससे पता चल रहा है कि भारत में मुसलमानों को कैसे हाशिए पर किया जा रहा है। कायदे से यह भारत का अंदरुनी मामला है और पाकिस्तान को इसपर टिप्पणी नहीं करनी चाहिए लेकिन …. घुस कर मारने की बात चुनाव के समय होती है।
- टाइम्स ऑफ इंडिया
मुख्य शीर्षक है – ‘भूमि पूजन के मौके पर प्रधानमंत्री ने मंदिर अभियान की तुलना आजादी के आंदोलन से की।’ इसके साथ पौने दो कॉलम की फोटो में प्रधानमंत्री षाष्टांग लेटकर प्रणाम करते दिखाए गए हैं और बताया गया है कि पहली बार जब जीत कर संसद पहुंचे थे तो 2014 में संसद की सीढ़िय़ों पर माथा सटाया था और यह भी कि इस बार यानी कल राम लल्ला को प्रणाम किया। अखबार ने यह नहीं बताया है कि इस बार संविधान पर माथा टेका था। खबर में कहीं अंदर लिखा हो तो मैं नहीं कह सकता पर प्रमुखता से नहीं है। अखबार ने प्रधानमंत्री का यह कहा भी लाल रंग के शीर्षक से छापा है कि, ‘राम मुस्लिम देशों में भी लोकप्रिय हैं’।
- हिन्दुस्तान टाइम्स
मैंने जो अंग्रेजी अखबार देखे उनमें हिन्दुस्तान टाइम्स अकेला है, जिसने इस खबर को बैनर बनाया है। आठ कॉलम का इसका शीर्षक एकदम दंडवत हुआ लगता है। ‘अयोध्याज ट्रायस्ट विद डेस्टिनी।’ मोटे तौर पर इसका मतलब हुआ अयोध्या में जो होना था वह हो गया (या शुरू हुआ)।
- इंडियन एक्सप्रेस
इंडियन एक्सप्रेस में यह खबर छह कॉलम में है। और शीर्षक में कोई जर्नलिज्म ऑफ करेज नहीं दिखाई देता है अगर हो तो संभव है मुझे समझ में नहीं आया। ‘मोदी मार्क्स द मंदिर’ – का मोटा अर्थ मैं एक पाठक के रूप में (खबर पढ़ने के बाद) यही समझता हूं कि मोदी ने अपना एक और वादा पूरा किया। जाहिर है, यह ताली थाली बजाने से ज्यादा कुछ नहीं है। अखबार ने एक सिंगल कॉलम की खबर छापी है जिसके शीर्षक का अर्थ है, विपक्ष ने राम और एकता की चर्चा कर प्रतिक्रिया जताई, भाजपा की चर्चा करने से बचा। इस खबर में अंदर ममता बनर्जी के ट्वीट की चर्चा है जो इस प्रकार है, हिन्दू मुस्लिम सिख इसाई, आपस में हैं भाई-भाई। मेरा भारत महान, महान हमारा हिन्दुस्तान।
संजय कुमार सिंह, वरिष्ठ पत्रकार हैं । सौज- मीडिया विजिल