हाथरस: एक वेबसाइट बनने के ढाई घंटे में शव जलाने को मजबूर हो गयी योगी सरकार!

प्रेम कुमार 

हाथरस केस में जिस ‘जस्टिस फ़ॉर हाथरस विक्टिम.कॉर्र्ड.को’ के ज़रिए ‘दंगा फैलाने की साज़िश का पर्दाफाश’ हुआ वह 30 सितंबर को बनी थी। अगर वह ज़ीरो आवर में बनी हुई मान ली जाए, तब भी उसके बनने के ढाई घंटे बाद ही पीड़िता का हाथरस में अंतिम संस्कार कर दिया गया। महज ढाई घंटे में इस वेबसाइट ने ऐसी स्थिति पैदा कर दी कि यूपी सरकार को कुछ राजनीतिक दलों और संगठनों से दंगे का ख़तरा पैदा हो गया और उसने बगैर परिवार को लाश सौंपे उसका अंतिम संस्कार कर दिया। कम से कम सुप्रीम कोर्ट में योगी सरकार के दिए बयान के मतलब यही हैं।

हाथरस केस में जस्टिस फॉर हाथरस विक्टिम.कार्र्ड.को (https://justiceforhathrasvictim.carrd.co/) नाम की वेबसाइट के बारे में एक खुलासा लेकर यूपी सरकार और उसके हवाले से मीडिया अचानक 5 अक्टूबर को सामने आ गये। जातीय दंगा फैलाने, पीएम मोदी और सीएम योगी की प्रतिष्ठा को धूमिल करने, समरसता ख़त्म करने जैसी अंतरराष्ट्रीय साज़िश के खुलासे का दावा किया गया। पीएफ़आई जैसे संगठन का हाथ होने, विदेशी फ़ंडिंग जैसी थ्योरी भी जोड़ दी गयी। हालाँकि तब तक बताने के लिए पुलिस के पास तथ्य नहीं थे सिर्फ़ थ्योरी थी।

किसने वेबसाइट बनायी नहीं पता है पुलिस को

पुलिस यह कहते हुए तथ्य देने में असमर्थता जता रही थी कि छानबीन की ख़बर पाकर उक्त विवादास्पद वेबसाइट को ख़त्म कर दिया गया है। मतलब यह कि पुलिस को नहीं पता कि किसने वेबसाइट बनायी, कहाँ यह वेबसाइट बनी और कौन लोग इसके पीछे थे? अगर इस वेबसाइट ने पुलिस के हिसाब से ‘भड़काऊ’ सामग्री वितरित की या वितरण का यह माध्यम बना तो यह उस दिन तक ऐसा माध्यम रहा होगा जिस दिन यह वेबसाइट छानबीन की ख़बर पाकर बंद कर दी गयी। वह कौन सा दिन था?- पुलिस ने नहीं बताया है।

4 अक्टूबर को मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने हाथरस में षड्यंत्र की थ्योरी दी थी और उसी दिन हाथरस केस की जाँच सीबीआई को सौंपने का फ़ैसला हुआ था। 5 अक्टूबर की सुबह साज़िश वाली थ्योरी लेकर यूपी पुलिस हाजिर हो चुकी थी। मीडिया इस थ्योरी का डंका पीटने को तैयार थी। पीएफ़आई, विदेशी फ़ंडिंग, अंतरराष्ट्रीय साज़िश जैसे भारी-भरकम शब्द उछाल दिए गये।

‘ब्लैक लाइव्स मैटर’ की तर्ज पर वेबसाइट

अब ‘जस्टिस फॉर हाथरस विक्टिम.कार्र्ड्.को’ नामक वेबसाइट अस्तित्व में नहीं है। मगर, जो इसके स्क्रीन शॉट सरकार समर्थक ओपइंडिया.कॉम पर मौजूद हैं उसे देखा जा सकता है। वेबसाइट का सिर्फ़ नाम भारतीय है। सामग्री अमेरिकी है। ‘ब्लैक लाइव्स मैटर’ आंदोलन के दौरान इस्तेमाल हुई वेबसाइट से यह सामग्री कट-पेस्ट हुई है। मतलब यह कि वहाँ की चीज उठाकर यहाँ रखी गयी है। इस सामग्री की प्रमुख बातों पर ग़ौर करें-

  • श्वेत लोगों के वर्चस्व वाले न्यूयॉर्क पुलिस डिपार्टमेंट की ओर से हर रैली और प्रदर्शन की फ़िल्म बनाने और प्रदर्शन में जाने से पहले पूरा रिसर्च करने की सलाह है। 
  • प्रदर्शन के दौरान रासायनिक हथियारों के इस्तेमाल होने पर (उदाहरण के लिए आँसू गैस) बचने के उपाय इसमें बताए गये हैं। 
  • एन-95 मास्क और चश्मा पहनने के साथ-साथ वेसलीन, मेकअप, क्रीम, सनस्क्रीन आदि का उपयोग नहीं करने की सलाह दी गयी क्योंकि ऐसा करके ही नुक़सान से ख़ुद को बचाया जा सकता है। 
  • पानी-सोडा मिक्स कर मुँह धोने जैसी सलाह भी है।
  • एक जगह यह भी लिखा दिख रहा है कि अगर आप दंगा कर रहे हैं तो अपने मित्रों के संपर्क में रहें। इस बात का पता हो कि जरूरत पड़ने पर कहाँ शरण लेनी है। 
  • आँसू गैस छोड़े जाने की स्थिति में दूध नहीं पीना है क्योंकि यह हानिकारक होता है। अगर पुलिस को गैसमास्क लगाए देखें तो समझ लें कि आँसू गैस छोड़े जा सकते हैं। 
  • अश्वेत लोग भागते नज़र आएँ तो उनके पीछे भागना है। किसी भी पुलिस बर्बरता की फ़िल्म, दस्तावेज़ तैयार करना है।

इस पूरी सामग्री को आपत्तिजनक बताकर यूपी पुलिस, सरकार, बीजेपी और मीडिया ने इस तरह से परोसा है कि इसके ज़रिए भारत भर में दंगा करने-कराने के तौर-तरीक़े बताए गये हैं। ख़बर ऐसे पेश की गयी जैसे देश को दंगों की आग से बचा लिया गया हो। मगर, यही सामग्री तो पहले से वेबसाइट पर मौजूद थी और ‘ब्लैक लाइव्स मैटर’ आंदोलन का वह हिस्सा थी!

5 अक्टूबर को घोषणा, 7 को मिला पीएफ़आई कनेक्शन!

5 अक्टूबर को ही इन संभावित दंगों के लिए विदेशी फ़ंडिंग की बात मीडिया कह चुका था। अब पुलिस को सबूत खोजना था। 7 अप्रैल को पुलिस ने चार लोगों को मथुरा हाईवे पर धर दबोचा और ‘बड़ी सफलता’ का दावा किया। इन्हें पीएफ़आई का सदस्य क़रार दिया गया। इनमें से एक दिल्ली के वरिष्ठ पत्रकार सिद्दीक कप्पन हैं जो दक्षिण के मलयालम अख़बारों के लिए लिखते हैं। प्रेस काउंसिल ऑफ़ इंडिया और केरल की जर्नलिस्ट यूनियन ने इस गिरफ्तारी को ग़लत बताया है। वे रिपोर्टिंग के लिए हाथरस जा रहे थे। ज़ाहिर है ‘थ्योरी पहले सबूत बाद में’ के सिद्धांत पर आगे बढ़ा जा रहा है।

पीड़ित परिवार के लिए नहीं है सीबीआई जाँच! 

हाथरस घटना की सीबीआई जाँच की घोषणा 4 अक्टूबर को कर दी गयी थी। मगर, एसआईटी जाँच भी रुकी नहीं। ऐसा इसलिए कि सीबीआई जाँच से पीड़िता को न्याय मिले- ऐसी सोच ही योगी सरकार ने नहीं दिखलायी। अब कहा जा रहा है कि वह हाथरस केस से जुड़े पूरे मामले की जाँच करेगी। मतलब यह कि सीबीआई की प्राथमिकता गैंगरेप के मामले को दबाने, पीड़ित परिवार को कमरे में बंद कर लाश जलाने, परिवार के साथ अन्याय जैसी बातों की जाँच नहीं होगी। उसकी प्राथमिकता में होगी कि पीड़िता ने झूठ तो नहीं बोला, पीड़ित परिवार झूठ बोल रहा है या नहीं, किसने पीड़ित परिवार को ‘भड़काया’, दंगा की साज़िश करने वाले कौन थे, क्या थी अंतरराष्ट्रीय साज़िश, विदेशी फ़ंड कहाँ से आया, पीएफ़आई की भूमिका वगैरह-वगैरह। अंतरराष्ट्रीय साज़िश का पर्दाफाश करने के नाम पर अब ईडी को भी इसमें लगा दिया गया है।

‘जस्टिस फॉर हाथरस.कार्र्ड.को’ वेबसाइट पर खामोशी है जो समूची थ्योरी का आधार बतायी गयी थी। https://carrd.co/ एक ऐसी वेबसाइट है जहाँ कोई भी अपनी वेबसाइट बना सकता है। बस आपके पास ईमेल होना चाहिए। ‘जस्टिस फॉर हाथरस.कार्र्ड.को’ ऐसी ही एक वेबसाइट थी जिसे किसी अज्ञात ने बनाया। किसने बनाया, इसका पता पुलिस अब तक नहीं लगा सकी है। ताज्जुब है कि पूरी सामग्री अंग्रेज़ी में है। हाथरस मामले में संभावित प्रदर्शनकारी या सरकारी और गोदी मीडिया की भाषा में कहें तो दंगा फैला सकने वाले लोगों को अंग्रेजी में बताने की ज़रूरत क्या थी? कथित अंतरराष्ट्रीय षड्यंत्र के लिए अंग्रेज़ी का सहारा क्यों लिया गया?

प्रेम कुमार समसामयिक विषयों पर लिखते रहते हैं। ये उनके निजि विचार हैंः सैज- सत्यहिन्दीः लिंक नीचे दी गई है-

https://www.satyahindi.com/opinion/justice-for-hathras-victim-carrd-co-website-a-conspiracy-yogi-government-alleges-113847.html

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