सुहैल ए शाह
‘कश्मीर फॉर कश्मीरीज़’ का नारा सबसे पहले कश्मीरी पंडितों ने ही लगाया था. लेकिन राज्य के नये भूमि कानून के बाद अब स्थिति बिलकुल बदल गई है जम्मू-कश्मीर में ज्यादातर लोग इस फैसले से खुश नहीं दिख रहे हैं, फिर चाहे वे कश्मीर के लोग हों या जम्मू के, अलगाववादी हों या मुख्यधारा के लोग. एक तरफ जम्मू में इस फैसले के खिलाफ प्रदर्शन हुए, दूसरी तरफ कश्मीर में कश्मीर में अनुच्छेद-370 लागू करवाने के पीछे भी काफी पंडित नेताओं और बुद्धिजीवियों का हाथ रहा और इसके बारे में मृदु राय और अन्य लेखकों ने विस्तार से लिखा है.
भारत सरकार ने बीते दिनों केंद्र प्रशासित राज्य, जम्मू-कश्मीर, के भूमि कानून बदलते हुए यह तय किया कि अब यहां देश का कोई भी नागरिक ज़मीन खरीद सकता है.
यह निर्णय अनुच्छेद-370, जो जम्मू-कश्मीर राज्य को भारत के संविधान में एक विशेष स्थिति दिया करता था, उसे अप्रभावी बनाये जाने के एक साल बाद लिया गया है. हालांकि पहले यह कहा गया था कि सिर्फ जम्मू-कश्मीर के लोग ही, जो पूर्ण रूप से स्पष्ट किया गया था कि कौन हैं, यहां ज़मीन खरीद सकते हैं.
लेकिन अब यहां कोई भी भारतीय गैर कृषि भूमि खरीद सकता है. साथ ही साथ भारतीय सेना को यह अधिकार भी दिया गया है कि वह किसी भी जगह को सामरिक महत्व की (स्ट्रैटेजिक) घोषित करके अपने कब्ज़े में ले सकती है. सरकार यह कह रही है कि ये निर्णय जम्मू-कश्मीर में प्रगति लाने के लिए लिए गए हैं, जैसा कि अनुच्छेद-370 हटाए जाने के समय कहा गया था.
लेकिन जम्मू-कश्मीर में ज्यादातर लोग इस फैसले से खुश नहीं दिख रहे हैं, फिर चाहे वे कश्मीर के लोग हों या जम्मू के, अलगाववादी हों या मुख्यधारा के लोग. एक तरफ जम्मू में इस फैसले के खिलाफ प्रदर्शन हुए, दूसरी तरफ कश्मीर में अलगाववादी नेता, मीरवाइज़ उमर फारूक के कहने पर एक दिन पूरा कश्मीर बंद रहा.
जम्मू-कश्मीर की मुख्य धारा की पार्टियां, जिन्होंने हाल ही में गुपकार अलायंस नाम का एक गठबंधन बनाया है, कहती हैं कि वे इस निर्णय का पुरज़ोर विरोध करेंगी. यहां तक कि उनके प्रतिनिधि कारगिल जाकर वहां के जनप्रतिनिधियों से भी मिले और इस मामले में बातचीत की.
“शायद पहली बार ऐसा हुआ होगा कि जम्मू और कश्मीर के लोग किसी एक बात के लिए साथ लड़ रहे हैं. हमेशा दोनों इलाकों के बीच किसी न किसी तरीके की अनबन ही देखने को मिलती थी” कश्मीर के एक राजनीतिक टिप्पणीकार और इंटरनेशनल रिलेशन्स के अध्यापक, उमेर गुल, ने सत्याग्रह से बात करते हुए कहा.
वैसे इस सब के बारे में तो काफी कुछ कहा और लिखा जा रहा है. लेकिन कश्मीर का एक और हिस्सा है – कश्मीरी पंडित. अब तक उनकी इस बारे में कोई भी प्रतिक्रिया देखने को नहीं मिली है. सत्याग्रह ने पिछले कुछ दिनों में कई कश्मीरी पंडितों से अनुच्छेद-370 हटाये जाने और इन नए क़ानूनों पर बात की.
लेकिन आपको विस्तार से इनके खयालात के बारे में बताया जाये इससे पहले यह बताना ज़रूरी है कि कश्मीरी पंडित कश्मीर के लिए क्या महत्व रखते हैं.
जब 1920 के दशक में कश्मीर में डोगरा राज चल रहा था तो यहां नौकरियां और ज़मीन बचाने के लिए एक नारा लगाया गया था – कश्मीर, कश्मीरियों के लिए (कश्मीर फॉर कश्मीरीज़). और सबसे पहले यह नारा लगाने वाले कश्मीरी पंडित ही थे.
“इसी नारे की वजह से 1927 का स्टेट सब्जेक्ट लॉ बना था और फिर आगे चल कर 1954 में यह अनुच्छेद 35-ए बन गया,” अमेरिका की यूनिवर्सिटी ऑफ पेनसिल्वेनिया में पॉलिटिकल साइन्स में अनुसंधान करने वाली, अपूर्वा बामज़ई कहती हैं.
कश्मीर में अनुच्छेद-370 लागू करवाने के पीछे भी काफी पंडित नेताओं और बुद्धिजीवियों का हाथ रहा और इसके बारे में मृदु राय और अन्य लेखकों ने विस्तार से लिखा है. ऐसे ही एक इंटलेक्चुअल, प्रेम नाथ बजाज, भी कश्मीरी लोगों के हितों की लड़ाई में आगे रहे थे.
वक़्त गुज़रता गया और 90 के दशक के शुरुआती सालों में कश्मीर घाटी में मिलिटेन्सी की शुरुआत हुई. 300 से ज़्यादा पंडितों की हत्या हुई और आखिरकार जनवरी 1990 में लगभग सारे कश्मीरी पंडित रातों-रात घाटी छोड़कर जम्मू चले गये.
कश्मीर घाटी में इस समय कुल मिलाकर कश्मीरी पंडितों के करीब 808 परिवार ही हैं जिनके करीब 3345 सदस्य यहां रहते हैं. पंडित समुदाय के ज़्यादातर लोग अभी भी जम्मू के प्रवासी कैंपों में रहते हैं और कुछ अब रोजगार के चलते देश के अन्य भागों में चले गए हैं.
लेकिन इनमें से कई लोगों ने खुद को कश्मीर से कभी अलग नहीं किया. 29 साल से ज़्यादा गुज़र जाने के बाद भी इनकी आशा और संघर्ष यही है कि ये लोग वापस घाटी आकर यहीं रहने लगें.
पिछले साल 5 अगस्त को अनुच्छेद-370 हटाये जाने के बाद से कश्मीर के हालात बदल गए हैं और ज़ाहिर हैं कश्मीरी पंडित इससे नावाकिफ नहीं हैं. यहां यह दिलचस्प है कि किसी भी और समुदाय की तरह कश्मीरी पंडितों की राय भी कश्मीर के इस समय के हालात पर बंटी हुई है, “क्यूंकि अपने खयालात और अपनी राय हम अपने हालात और इर्द-गिर्द के माहौल से ही बनाते हैं” दिल्ली में काम कर रहीं एक पत्रकार ने, जो खुद भी एक कश्मीरी पंडित हैं, सत्याग्रह से बात करते हुए कहा.
ऐसा ही कुछ सत्याग्रह को भी इन लोगों से बात करते हुए नज़र आया. अगर मोटे-मोटे हिस्सों में बांटा जाये तो पंडितों में अनुच्छेद-370 और जमीन से जुड़े नए क़ानूनों को लेकर इस समय तीन तरह की विचारधाराएं हैं.
पहले बात करते हैं उन लोगों की जिन्हें इस सब से कोई फर्क नहीं पड़ रहा है:
पहले इन लोगों की बात करना इसलिए ज़रूरी है क्यूंकि ये आम लोग हैं. इनका राजनीति से कोई लेना-देना नहीं है और ये सिर्फ अपनी रोज़ की भाग-दौड़ में ज़िंदगी गुज़ार रहे हैं. कुछ कश्मीर में, कुछ जम्मू में और कुछ देश के अन्य भागों में
दक्षिण कश्मीर के शोपियां ज़िले में रहने वाले अध्यापक, रवि भट, कहते हैं कि उनके लिए 370 और बाक़ी सारी विशेष स्थितियां 1990 में ही खत्म हो गयी थीं, हालांकि वे कश्मीर छोड़ कर कभी नहीं गए.
“आपको सच बात बताऊं तो क्या फर्क पड़ता है रोज़मर्रा की ज़िंदगी में. हमारी परेशानियां तो वही रहने वाली हैं न, बच्चों की पढ़ाई उनकी नौकरी, घर के काम. हां शायद इन निर्णयों से कुछ बदलाव होंगे आगे चल के लेकिन आम लोग कहां इतनी दूर की सोचते हैं” रवि ने सत्याग्रह से बात करते हुए कहा.
रवि कहते हैं कि कश्मीर से न जाने की वजह से उन्हें प्रवासी भी नहीं माना जाता है और ऐसे में उन्हें नौकरी मिलना और उनके बच्चों को अच्छे कॉलेज में दाखिला मिलना और मुश्किल हो गया है. “तो इन सब चीजों के बारे में सोचें या 370 और ये नए कानून, जो शायद बाद में हम लोगों के लिए परेशानी का कारण बनें” वे कहते हैं.
कुछ ऐसी ही बातें जम्मू के जगती प्रवासी कैंप में रहने वाले कई पंडितों से भी सुनने को मिलीं. रोहित नाम के एक सरकारी मुलाज़िम, जो खुद तो कश्मीर में काम करते हैं लेकिन उनका परिवार जम्मू में रहता है, सत्याग्रह को बताते हैं कि उनके यहां कोई इस बारे में बात भी नहीं कर रहा है.
“मैं जम्मू आया हुआ हूं, मेरी बहन की शादी थी. शादी में काफी मेहमान भी आते हैं. मैंने तो किसी के मुंह से इस बारे में कोई बात नहीं सुनी. न ही शादी के बाद, अपने किसी दोस्त-यार से” रोहित कहते हैं.
रोहित मानते हैं कि नुकसान उन जैसे मिडिल क्लास लोगों का ही होना है इस सब से. “क्यूंकि अब जब बाहर के लोग यहां ज़मीन खरीदेंगे तो ज़ाहिर है ज़मीन की कीमतें आसमान छुएंगी और हमारे-आपके जैसे लोगों का घर का सपना, सपना ही रह जाएगा” रोहित कहते हैं.
लेकिन साथ ही वे यह भी मानते हैं कि इस बारे में बात करने या सोचने का कोई फायदा नहीं है, क्यूंकि जो होना होगा वह होकर ही रहेगा.
फिर कुछ लोग ऐसे हैं जो कश्मीर से बाहर रह रहे हैं और अपने आप को कश्मीर में वापिस आता नहीं देखते, लेकिन वे यह ज़रूर चाहते हैं कि कश्मीर में तरक़्क़ी हो. ये लोग कहते हैं कि अब जब 370 हट ही गया है तो अब इसका कश्मीर के लोगों को फायदा भी होना चाहिए.
“देखें मुझे तो वापिस जाना नहीं है कश्मीर और सच बताऊं तो मैं नहीं चाहता था कि 370 हटे. लेकिन अब हट गया है तो इसका फायदा होना चाहिए,” नोएडा में अपना खुद का बिज़नेस कर रहे संजय धर ने सत्याग्रह से बात करते हुए कहा.
उधर कुछ पंडित ऐसे हैं जो खुले तौर पर भारत सरकार की, इस मुद्दे को लेकर,आलोचना करते हैं:
इन लोगों में आम लोग भी हैं, राजनीति से जुड़े लोग भी हैं और वे लोग भी जो पंडितों के वापिस घर लौटने के संघर्ष से जुड़े हुए हैं. ऐसे ही एक युवा राजनेता हैं मोहित भान, जो अमेरिका में अपनी नौकरी छोड़ कर कश्मीर आए हैं और यहां जम्मू एंड कश्मीर पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी यानी पीडीपी के साथ जुड़े हुए हैं.
भान कहते हैं कि इस सरकार से अभी तक पंडितों को कुछ नहीं मिला है, “हालांकि पिछली सरकारों ने भी हमारे लिए कुछ खास नहीं किया था, लेकिन कोई न कोई पैकेज मिलता रहता था चाहे वो वापसी का हो या नौकरियों का.”
भान कहते हैं कि उनकी सारी बिरादरी, कुछ लोगों को छोड़ कर इन नये कानूनों और अनुच्छेद-370 हटाये जाने के सख्त खिलाफ है. इन नए क़ानूनों के भी. “वे कुछ लोग जो ये कहते हैं कि अच्छा हुआ, वे लोग अपनी राजनीति चमकाने के चक्कर में ऐसा बोलते हैं.”
भान की ही तरह सोचने वाले, सतीश महलदार, जो रिकंसीलिएशन, रिटर्न एंड रिहैबिलिटेशन नाम की एक संस्था के अध्यक्ष हैं, कहते हैं कि इस सरकार ने कोई रास्ता नहीं छोड़ा है पंडितों के वापिस घर जाने का.
“सालों से हम कोशिश में थे अपने घर वापिस जाएं और शायद चले भी जाते, लेकिन अब माहौल इतना बिगड़ गया है कि अब जो जाना भी चाहता होगा सौ बार सोचेगा” महलदार ने सत्याग्रह से बात करते हुए कहा.
महलदार ने हाल ही में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, से अनुच्छेद-370 वापिस लागू करने की अपील भी की थी, जिसके लिए उन्हें काफी आलोचना भी झेलनी पड़ी थी.
महलदार कहते हैं कि टीवी पर छाती पीटने वाले कश्मीरी पंडित ऐसा इसलिए करते हैं क्यूंकि इन्हें वापिस जाना नहीं है “और हमें भी कहते हैं कि क्यूं जाओगे. ये लोग अब बाहर बैठ कर राजनीति कर रहे हैं. लेकिन कोई भी पंडित जो अपने घर वापिस जाकर रहना चाहता होगा वो ज़ाहिर है कि इन नए क़ानूनों की निंदा ही करेगा.”
वे मानते हैं कि सरकार का फर्ज़ है अपने नागरिकों के अधिकारों की रक्षा करे और ये अधिकार हमें संविधान देता है, “चाहे वो ज़ुबान के हों, ज़मीन के हों या हमारी कल्चर के. ऐसे में कैसे ठीक है ये सब जो भारत सरकार कर रही है.”
अगर आम लोगों की बात करें तो दिल्ली में रह रहीं पत्रकार, जिनका हम ऊपर ज़िक्र कर चुके हैं, उनके हिसाब से यह सब सिर्फ कश्मीर के लोगों को सज़ा देने जैसा है.
“वरना मुझे यह बताएं कि कौन सा वादा पूरा किया है इस सरकार ने. ये सिर्फ बांटना जानते हैं लोगों को मजहब के नाम पर. चाहे 370 का हटना हो या यह नए भूमि कानून, ये सब लोगों का ध्यान असल मुद्दों से हटाने के लिए किया जाता है” वे कहती हैं कि वो ये सब कश्मीरी होने के नाते नहीं बल्कि एक भारतीय होने के नाते बोल रही हैं.
“इन लोगों ने खूब हल्ला मचाया कि जम्मू-कश्मीर के एससी-एसटी पहली बार देश के नागरिक बने हैं. और फिर उनको अब पूरे देश के नौजवानों के साथ मुकाबला करना है, पढ़ाई के लिए, एड्मिशन के लिए. यह कहां का इंसाफ है कि आप उनको नागरिक तो बना देते हो लेकिन साथ ही उनकी विशेष स्थिति छीन लेते हो. ये लोग कैसे मुक़ाबला कारेंगे” वे पूछती हैं.
दिल्ली की इन पत्रकार को अपना नाम प्रकाशित करने की इजाज़त नहीं है. “लेकिन बिना नाम बताए भी सच तो बोला जा सकता है न?” वे कहती हैं “इन लोगों ने कहा था 370 हट जाने से कश्मीर में मिलिटेन्सी खत्म होगी, हुई ? कहा था नौकरियां आएंगी, आयीं ? इंटरनेट बंद है, किसी को बात करने की इजाज़त नहीं है और ऐसे में अब यह कानून!”
आइए अब उन लोगों की बात करते हैं जो डंके की चोट पर कहते हैं कि चाहेअनुच्छेद-370 का हटना हो या नए भूमि कानून, जो भी हो रहा है अच्छा होरहा है.
सत्याग्रह ने कश्मीरी पंडित संगठन पनुन कश्मीर के संयोजक, डॉ अग्निशेखर सुंबली, से इस बारे में बात की तो उनका कहना था कि इन नए क़ानूनों और 370 हटाये जाने पर पूरा का पूरा पंडित समुदाय बेहद खुश है.
“अगर कोई यह कहता है कि हम लोग खुश नहीं हैं तो समझ लें वो झूठ बोल रहा है” सुंबली ने सत्याग्रह से बात करते हुए कहा.
और वे इसकी पहली वजह यह बताते हैं कि “अगर आपके साथ कुछ गलत होता है और फिर आपके साथ गलत करने वाले व्यक्ति को उसकी सज़ा मिले तो अच्छा लगता है.”
“दूसरी चीज़ अगर 370 किसी चीज़ की सुरक्षा थी तो हम इस समय कश्मीर से बाहर क्यूं हैं?” सुंबली पूछते हैं, “और सिर्फ कश्मीरियत की बात क्यूं होती आई है, डोगरियत या लद्दाखियत की बात क्यूं नहीं होती थी. कब तक सिर्फ कश्मीर-कश्मीर होता रहता. असल में ये सब चीज़ें कश्मीर के कुछ लोगों के पास एक बहाना था अपनी जेबें भरने और सत्ता में रहने का. अब वो छिन गया है तो ज़ाहिर है ये लोग चिल्लाएंगे” सुंबली सत्याग्रह को बताते हैं.
सुंबली यह भी कहते हैं कि इन भूमि क़ानूनों को लेकर भी पंडितों में बात हो रही है और आगे देखा जाएगा कि लोग क्या सोच रहे हैं. हालांकि इस मामले में अनंतनाग की पंडित कॉलोनी में रहने वाले सन्नी रैना की सोच उनसे काफी अलग है. सन्नी रैना कहते हैं कि वे यह भूमि कानून और 370 जैसी चीजों के बारे में बात करने के योग्य तो हैं नहीं लेकिन एक बात ज़रूर पूछना चाहेंगे, “अगर भारत सरकार हमें वापिस अपने घर नहीं पहुंचा पायी है अभी तक तो किसी और के लिए कश्मीर के दरवाजे खोल देने का क्या अर्थ बनता है. हम तो यहीं के लोग हैं न, हमें पहले अपने घरों तक पहुंचाएं फिर सोचें किसी बिहारी, पजाबी या बंगाली को यहां लाने की.”
आए दिन रैना और उनके साथी पंडित कॉलोनी में सहूलतें न होने के खिलाफ प्रदर्शन करते रहते हैं और हाल ही में श्रीनगर में भी कुछ पंडित भूख हड़ताल पर बैठे थे, अपना हक मांगने के लिए.
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