‘ हिंदू कॉलेज दिल्ली के हिंदी विभाग द्वारा राष्ट्रीय पुस्तक सप्ताह के अवसर पर आयोजित वेबिनार में ‘राष्ट्रीय पुस्तक न्यास’ के हिंदी संपादक पंकज चतुर्वेदी ने कहा कि यद्यपि लेखन का इतिहास बहुत पुराना है परंतु किताबें आमजन के लिए बहुत बाद में सुलभ हो सकीं। उन्होंने कहा कि पुस्तकों की महत्वपूर्ण बात यह है कि वे आर्थिक प्रगति एवं सांस्कृतिक मूल्यों के बीच संतुलन बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं।
नई दिल्ली। ‘डिजिटल माध्यम के इस दौर में जबकि हर व्यक्ति अपने हिसाब से किसी भी बात को कह सकता है, हमारे आसपास अनावश्यक एवं झूठी सूचनाएं इकट्ठी हो गई हैं। ऐसे में प्रिंट माध्यम एक बेहतर विकल्प के रूप में हमारे सामने आता है और इस दृष्टि से पुस्तक अभी भी हमारे लिए ज्ञान का महत्त्वपूर्ण स्रोत है।’ हिंदू कॉलेज दिल्ली के हिंदी विभाग द्वारा राष्ट्रीय पुस्तक सप्ताह के अवसर पर आयोजित वेबिनार में ‘राष्ट्रीय पुस्तक न्यास’ के हिंदी संपादक पंकज चतुर्वेदी ने कहा कि यद्यपि लेखन का इतिहास बहुत पुराना है परंतु किताबें आमजन के लिए बहुत बाद में सुलभ हो सकीं। उन्होंने कहा कि पुस्तकों की महत्वपूर्ण बात यह है कि वे आर्थिक प्रगति एवं सांस्कृतिक मूल्यों के बीच संतुलन बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। ‘किताब की जरूरत’ विषय पर व्याख्यान में चतुर्वेदी ने कहा कि पुस्तकें आज भी भारत जैसे बड़े और व्यापक फैले देश के लिए बहुपयोगी हैं। पुस्तकें जहां ज्ञान के लिए आवश्यक हैं वहीं मनोरंजन एवं खाली समय का सदुपयोग करने का साधन भी हैं। पुस्तकों की सहजता, सुलभता एवं लंबे समय तक प्रभाव बनाए रखने की क्षमता के मामले में उनका कोई सानी नहीं। पुस्तकें जहां बौद्धिक खूराक की पूर्ति के लिए जरूरी हैं वहीं भारत की आर्थिक प्रगति एवं रोजगार देने में भी पुस्तकों की महती भूमिका है। इस संबंध में उन्होंने बताया कि भारत पूरी दुनिया में अमेरिका और ब्रिटेन के बाद सबसे ज्यादा पुस्तकों की छपाई करने वाला देश है जहाँ 45 से ज्यादा भाषाओं में किताबों की छपाई होती है।
चतुर्वेदी ने नेशनल बुक ट्रस्ट की स्थापना के उद्देश्यों एवं उसकी कार्यप्रणाली के बारे में बताया तथा ट्रस्ट द्वारा प्रकाशित महत्वपूर्ण पुस्तकमालाओं की जानकारी भी विद्यार्थियों के साथ साझा की। इसके बाद एक सत्र में पंकज चतुर्वेदी ने विद्यार्थियों के सवालों के जवाब दिए। एक सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि डिजिटल क्रांति के बावजूद छपी हुई किताब का महत्त्व कभी काम नहीं होगा और पाठक से उसका आत्मीय सम्बन्ध भी हमेशा बना रहेगा। वहीं पुस्तकों के महँगा होने की शिकायत को उन्होंने जीवन की सभी आवश्यक वस्तुओं के के साथ तुलना कर समझने पर बल दिया। उन्होंने कहा कि महंगाई के साथ जब कागज़ और पुस्तक से जुड़े सभी कार्यों की लागत बढ़ रही है तो पुस्तक का दाम बढ़ना भी स्वाभाविक है। उन्होंने राष्ट्रीय पसुआतक न्यास द्वारा अल्पमोली किताबों के बारे में भी बताया जो बाज़ार की तुलना में अभी भी बहुत कम मूल्य पर सामान्य पाठकों के लिए उपलब्ध है।
वेबिनार की शुरुआत विभाग प्रभारी डॉ. पल्लव ने ‘हिंदी साहित्य सभा’ की गतिविधियों के बारे में जानकारी देकर की। डॉ पल्लव ने प्रथम वर्ष के नवागंतुक विद्यार्थियों का स्वागत किया और हिन्दू कालेज के शैक्षणिक-सह शैक्षिणिक परिदृश्य का परिचय दिया। विभाग के प्राध्यापक डॉ. धर्मेंद्र प्रताप सिंह ने पंकज चतुर्वेदी का परिचय दिया। व्याख्यान के पश्चात हुए सवाल-जवाब सत्र में प्रश्नों का संयोजन विभाग के प्राध्यापक श्री नौशाद अली ने किया। कार्यक्रम का संयोजन हिंदी साहित्य सभा के संयोजक हर्ष उरमलिया ने किया। अंत में साहित्य सभा के अध्यक्ष राहुल कसौधन ने धन्यवाद ज्ञापन कर कार्यक्रम का समापन किया। आयोजन में विभाग के वरिष्ठ आचार्य डॉ रामेश्वर राय, डॉ रचना सिंह सहित बड़ी संख्या में स्नातक एवं स्नातकोत्तर कक्षाओं के विद्यार्थी उपस्थित थे।