दिलीप कुमारः जिन्हें सत्यजीत रे ने इंडिया का पहला मेथड एक्टर माना था

श्वेतांक

जैसे ही दिमाग में शब्द ‘ट्रैजेडी’ आता है अचानक से उसमें किंग जैसा विशेषण जुड़ जाता है. और सूरत उभरती है एक अधेड़ उम्र के आदमी की, जो आधी रात को सुनसान सड़क पर अपनी पत्नी के साथ जा रहा है. अचानक से पत्नी की तबीयत बिगड़ती है और ये आदमी बेतहाशा सड़क पर आ-जा रही गाड़ियों को रोकने लगता है. उसके मुंह से सिर्फ एक ही वाक्य निकलता है ‘ऐ भाई गाड़ी रोको’. और उस आदमी की वो त्रासदी समझ आती है, जो उसके साथ असल में हो भी नहीं रही. असलियत के इतने करीब जाकर भी वो आदमी अपना काम कर रहा था. अभिनय कर रहा था. उस आदमी का नाम है मोहम्मद यूसुफ खान जिसे दुनिया दिलीप कुमार कहती है और फिल्म इंडस्ट्री ‘ट्रैजेडी किंग’. दिलीप कुमार का जन्म 11 दिसम्बर, 1922 को वर्तमान पाकिस्तान के पेशावर शहर में हुआ था। उनके बचपन का नाम ‘मोहम्मद युसूफ़ ख़ान था। आज जानेंगे उनके जीवन की उन घटनाओं और किस्सों को जिन्हें पीछे छोड़कर वो उम्र के अगले पड़ाव पर पहुंचे हैं. 

इंडियन सिनेमा में पहला किसिंग सीन देने वाली एक्ट्रेस फिल्मों में लेकर आई

मोहम्मद यूसुफ खान के पापा फलों का बिजनेस करते थे. यूसुफ भी पढ़ाई-लिखाई छोड़कर अपना कुछ करने का सोचने लगे. काम मिला पुणे के एक आर्मी क्लब में सैंडविच का स्टॉल लगाने का. उसके लिए यूसुफ को 36 रुपए प्रतिमाह पगार मिलती थी. लेकिन इसी स्टॉल पर उन्होंने अपने घर से फल लाकर बेचने शुरू कर दिए. इससे आमदनी में अचानक उछाल आ गया. अभी चीज़ें बेहतर हो ही रही थी कि अचानक ऑर्डर आया कि इन इलाकों में अब वही स्टॉल लगा पाएगा, जिसे भारत सरकार परमिशन देगी. काम बंद हो गया था लेकिन तब तक यूसुफ ने तकरीबन पांच हज़ार रुपए कमा लिए थे. वो तब एक बड़ी रकम हुआ करती थी. इसके बाद उन्होंने पापा का बिजनेस जॉइन कर लिया. पापा की उम्र ढलने के कारण ट्रैवलिंग का सारा काम यूसुफ खुद करने लगे. एक बार वो अपने काम के सिलसिले में नैनीताल गए. वहां इन्हें मिलीं देविका रानी. भारतीय सिनेमा इतिहास की वो पहली हीरोइन थीं, जिन्होंने ऑन स्क्रीन किस किया था. ये सीन तकरीबन चार मिनट लंबा था और अब तक इंडियन सिनेमा का सबसे लंबा किसिंग सीन माना जाता है. ये सीन उन्होंने अपने पति हिमांशु रॉय के साथ किया था. देविका ने यूसुफ को सलाह दी कि उन्हें फिल्मों में जाना चाहिए. लेकिन अपने कारोबार में मगन यूसुफ ने बात अनसुनी कर दी.

कुछ समय बाद यूसुफ मुंबई की लोकल ट्रेन में सफर कर रहे थे. इस दौरान उन्हें डॉ. मसानी मिले. इन्होंने ट्रेन में इन्हें देखते ही इनका काम-धाम पूछा और सब जानने के बाद फिल्मों में जाने की सलाह दी. ये बात यूसुफ को अटक गई. उन्होंने सोचा कुछ तो होगा, जो अब तक दो लोग फिल्मों में ट्राय करने को कह चुके हैं. वो तैयार होकर बॉम्बे टॉकीज़ पहुंच गए. देविका रानी इस स्टूडियो की मालकिन थीं. उन्होंने यूसुफ को 1250 रुपए में अपने यहां नौकरी पर रख लिया.

और जब यूसुफ खान बन गए दिलीप कुमार

यहां से यूसुफ का फिल्मी सफर शुरू हुआ. हिंदी, अंग्रेज़ी और उर्दू की अच्छी समझ के चलते इन्हें पहले लिखने के काम में इंवॉल्व किया गया. धीरे-धीरे एक्टिंग की ओर कदम बढ़ने लगे. लेकिन एक झोल था, नाम था यूसुफ जो हीरो जैसा नहीं था. इसलिए देविका रानी ने अपने आसपास बैठे राइटरों से इस नए लड़के के लिए नाम सुझाने के लिए कहा. इसमें वासुदेव, जहांगीर और दिलीप कुमार जैसे नाम सामने आए. लेकिन देविका को दिलीप कुमार ठीक लगा क्योंकि तब बॉम्बे टॉकीज़ छोड़कर जा चुके एक्टर अशोक कुमार बड़े स्टार थे. और दिलीप कुमार उनके नाम से मेल खाता था. इसके बाद साल 1944 में यूसुफ से दिलीप में तब्दील हुए इस एक्टर की पहली फिल्म ‘ज्वार भाटा’ रिलीज़ हुई. मशहूर फिल्म मैगज़ीन ‘फिल्म इंडिया’ ने इस फिल्म और इसके लीड एक्टर दोनों को खारिज़ कर दिया. फिल्म नहीं चली.

काम की कमी से नहींकाम करने से डिप्रेशन में चले गए दिलीप कुमार

दिलीप कुमार की दूसरी फिल्म थी ‘प्रतिमा’ (1945). इस फिल्म का भी वही हश्र हुआ, जो पहली का हुआ था. 1946 में डायरेक्टर नितिन बोस की फिल्म ‘मिलन’ से दिलीप कुमार का परिचय सफलता से हुआ. इसके बाद उनकी झोली में कई सफल फिल्में आईं. ‘जुगनू’, ‘शहीद’, ‘अंदाज़’, ‘जोगन’, ‘दाग’, ‘आन’, ‘देवदास’, ‘नया दौर’ और ‘मुगल-ए-आज़म’ जैसी फिल्मों को दिलीप कुमार की हिट फिल्मों की लिस्ट में होने का गौरव प्राप्त है. इतने सारे कामों में एक चीज़ बहुत कॉमन रही. फिल्मों का त्रासद अंत या आखिर में दिलीप साहब की मौत. दिलीप कुमार को सत्यजीत रे ने इंडिया का पहला मेथड एक्टर माना था. मेथड एक्टर का मतलब किसी किरदार को निभाने के लिए मानसिक रूप से उसके स्पेस में चले जाने जैसा कुछ होता. इसमें किरदार निभाना नहीं, जीना होता है. किरदारों में इस कदर घुस जाने की आदत का असर दिलीप कुमार की सेहत पर पड़ने लगा. वो परेशान रहने लगे. डिप्रेशन में चले गए. इसका इलाज कराने वो लंदन गए. वहां कई डॉक्टरों ने उन्हें हल्की-फुल्की फिल्में करने की सलाह दी. इसके बाद दिलीप साहब ने ‘राम और श्याम’ और ‘कोहिनूर’ जैसी फिल्मों में काम किया .

जब प्रोड्यूसर ने एक्टिंग की फीस ईदी में दे दी

दिलीप कुमार महबूब खान के साथ फिल्म ‘आन’ (1952) में काम कर रहे थे. महबूब साहब ने दिलीप कुमार को बताया कि उनके एक दोस्त हैं, जो उनके साथ काम करना चाहते हैं. ये दोस्त थे रंजीत स्टूडियो के मालिक चंदू लाल शाह. तब उनका बड़ा नाम था. ये बात सुनकर दिलीप कुमार खुद उनसे मिलने उनके घर गए. कुछ देर बातचीत हुई और फिर फिल्म में काम करने के लिए कॉन्ट्रैक्ट साइन हो गया. साइन करते समय दिलीप कुमार की नज़र फीस पर पड़ी, जहां बीस हज़ार रुपए की रकम का ज़िक्र था. दिलीप कुमार एक पल को ठिठके क्योंकि अपनी पिछली फिल्म के लिए उन्होंने तीस हज़ार रुपए लिए थे. बावजूद इसके दिलीप साहब ने कॉन्ट्रैक्ट पर साइन कर दिया. वो फिल्म थी ‘फुटपाथ’ जो 1953 में रिलीज़ हुई थी.

कुछ समय बाद ईद के मौके पर चंदू लाल ने दिलीप कुमार को अपने घर बुलाया. खाना-पीना खत्म कर जब दिलीप कुमार अपने घर जाने लगे, तो चंदू शाह ने उन्हें रोका और कहा कि ईद के दिन बड़े छोटों को ईदी देते हैं. इसके बाद उन्होंने दिलीप कुमार को एक पतला सा लिफाफा पकड़ा दिया. लिफाफा अपनी जेब में धरकर दिलीप साहब अपनी गाड़ी में बैठकर निकल गए. थोड़ा आगे जाने के बाद उन्होंने एक्साइटमेंट में  वो लिफाफा फाड़ा, तो अंदर से एक चेक निकला, जिसपर दस हज़ार रुपए रकम लिखी हुई थी. दिलीप साहब चौंक गए. उन्होंने गाड़ी वापस मोड़ी और चंदू लाल शाह के घर पहुंचकर चेक दिखाया. उन्होंने कहा कि ये तो बहुत बड़ी रकम है. ईदी में लोग 100-200 या हज़ार रुपए देते हैं. लेकिन चंदू नहीं मानें और दिलीप कुमार को उस चेक के साथ ही भेजा. इस तरह से उन्होंने दिलीप कुमार की मार्केट फीस उन्हें दे दी.

क्यों टूट गया मधुबाला से 7 साल पुराना रिश्ता?

दिलीप कुमार और मधुबाला का रिश्ता फिल्म ‘तराना’ (1951) के सेट से शुरू हुआ था. गुज़रते समय के साथ ज़्यादा समय एक साथ बीतने लगा. दोस्ती हुई. प्यार हुआ. सब सही चल रहा था पर अब दिलीप कुमार मधुबाला से शादी करना चाहते थे. लेकिन मधुबाला के पापा अताउल्लाह खान इस रिश्ते के सख्त खिलाफ थे. इसी समय बी.आर चोपड़ा की फिल्म ‘नया दौर’ की शूटिंग शुरू होने को थी, जिसमें यही दोनों स्टार लीड रोल कर रहे थे. फिल्म का एक शेड्यूल मध्यप्रदेश में भी शूट होना था. अताउल्लाह खान ने मधुबाला को वहां नहीं जाने दिया. उनकी चिंता ये थी कि आउटडोर शूट पर इन दोनों की नज़दीकियां बढ़ेंगी. अगर प्रोड्यूसर और एक्टर के संदर्भ में देखें, तो ये अग्रीमेंट का ब्रीच था. इस बात से नाराज़ होकर बी.आर. चोपड़ा ने मधुबाला के खिलाफ कोर्ट केस कर दिया. इस केस में दिलीप कुमार ने मधुबाला के खिलाफ बयान दे दिया या यूं कहें कि जो हुआ था, वो बयां कर दिया. मधुबाला ये केस हारतीं, तो उन्हें जेल जाना पड़ता, इसलिए लास्ट मोमेंट में बी.आर. चोपड़ा ने केस ड्रॉप कर दिया. इस चीज़ ने इन दोनों के रिश्ते को बिलकुल खराब कर दिया. कई कोशिशों के बाद भी वो पहले की तरह नहीं हो पाया और दोनों का रिश्ता खत्म ही हो गया.

अपनी सबसे बड़ी फिल्म दिलीप कुमार ने रिलीज़ के 18-19 साल बाद देखी

दिलीप कुमार मैग्नम ओपस ‘मुगल-ए-आज़म’ में काम कर रहे थे. इसमें उनके साथ मधुबाला भी काम कर रही थीं. इस फिल्म की शूटिंग दोनों के ब्रेकअप के कुछ ही दिन बाद शुरू हुई थी. शूटिंग के दौरान दिलीप-मधुबाला में कोई बातचीत नहीं थी. इस फिल्म के दौरान सिर्फ इन दोनों के ही नहीं दिलीप कुमार और के.आसिफ (मुगल-ए-आज़म के डायरेक्टर) के संबंध भी खराब हो गए थे. आसिफ की पत्नी अख्तर साहिबा दिलीप कुमार को अपना भाई मानती थीं. एक बार आसिफ की उनकी पत्नी से लड़ाई हो गई. अपनी बहन की साइड से दिलीप कुमार के.आसिफ को समझाने गए. होते-होते बात बढ़ गई. गुस्साए आसिफ ने दिलीप कुमार से कहा कि अपना सुपरस्टारडम उनके घर के बाहर ही रखें. ये बात दिलीप कुमार को ज़ोर से लग गई. 1960 में ‘मुगल-ए-आज़म’ रिलीज़ हुई. इस भव्य फिल्म को दिखाने के लिए पूरी इंडस्ट्री को फिल्म के प्रीमियर पर बुलाया गया था. इस प्रीमियर पर फिल्म के हीरो को छोड़कर सभी लोग मौजूद थे. दिलीप कुमार ने ये फिल्म अगले 18-19 साल तक नहीं देखी. उन्होंने ये फिल्म पहली दफा साल 1979 में देखी थी.

अगर दिलीप कुमार मुगल-ए-आज़मके  प्रीमियर पर जाते, तो उनकी शादी थोड़ी और पहले हो सकती थी

दिलीप कुमार ने साल 1966 में 44 साल की उम्र में सायरा बानो से शादी की थी. लेकिन अगर वो ‘मुगल-ए-आज़म’ के प्रीमियर पर पहुंच जाते, तो उसी दिन सायरा से उनकी मुलाकात हो जाती. सायरा ने अपने एक इंटरव्यू में बताया था कि वो 12 साल की उम्र से दिलीप कुमार की फैन थीं. उनसे मिलने की आस लिए वो ‘मुगल-ए-आज़म’ के प्रीमियर पर पहुंची थीं लेकिन वहां दिलीप साहब आए ही नहीं. इसके बाद सायरा की एंट्री फिल्मों में बतौर हीरोइन हो गई. एक फिल्म में दिलीप कुमार के साथ उन्हें कास्ट किया गया लेकिन दिलीप साहब ने ये कहकर मना कर दिया कि इस हीरोइन की उम्र बहुत छोटी है. स्क्रीन पर ये उनके साथ अच्छी नहीं लगेंगी. उन दिनों सायरा एक्टर राजेंद्र कुमार के प्रेम में पागल थीं. लेकिन राजेंद्र कुमार शादीशुदा आदमी थे. इस बात से सायरा की मां बहुत परेशान रहती थीं. उन्होंने इस चीज़ में दिलीप कुमार से मदद मांगी. उन्होंने दिलीप साहब से सायरा को समझाने के लिए कहा. दिलीप कुमार ने सायरा को समझाते हुए कहा कि वो खूबसूरत हैं, जवान हैं उनसे कोई भी शादी कर लेगा. इसके जवाब में सायरा ने दिलीप कुमार से पूछ लिया कि क्या वो कर लेंगे शादी? इस बात से नाराज़ होकर दिलीप कुमार वहां से चले गए. इस इंसीडेंट के बाद भी हालांकि दोनों का मिलना-जुलना जारी रहा. बात बढ़ती ही चली गई. अचानक से एक दिन दिलीप कुमार ने सायरा से कहा-

सायरा तुम उस तरह की लड़की नहीं हो, जिसके साथ मैं ड्राइव पर जाना चाहूंगा या तुम्हारे साथ दिखना चाहूंगा. तुम वो लड़की हो जिससे मैं शादी करना चाहूंगा. क्या तुम मुझसे शादी करोगी?

इसके जवाब में सायरा ने दिलीप कुमार से सिर्फ एक सवाल किया. उन्होंने सिर्फ इतना पूछा कि कितनी लड़कियों को वो ये बात कह चुके हैं. हालांकि उन्होंने शादी के लिए हां कर दी. साल 1966 में इन दोनों ने शादी कर ली. तब दिलीप कुमार की उम्र थी 44 साल थी और सायरा बानो 22 साल की थीं.

जब सायरा से दिलीप कुमार ने दो बार शादी की

इन दोनों की शादीशुदा ज़िंदगी अच्छी चल रही थी. तभी ऐसी खबरें चलने लगीं कि दिलीप कुमार किसी और महिला के साथ प्यार की पींगे बढ़ा रहे हैं. ये महिला थीं आसमा रहमान, जिनसे दिलीप कुमार हैदराबाद में एक क्रिकेट मैच के दौरान मिले थे. इन दोनों के बीच सबकुछ बहुत तेजी से हुआ और 1981 में दोनों ने शादी कर ली. हालांकि इन दोनों के अफेयर की खबर सायरा को थी. लेकिन ये शादी ज़्यादा दिन चली नहीं. 1983 में दिलीप कुमार ने आसमा से तलाक ले लिया. और दोबारा सायरा से ही शादी कर ली. तब से लेकर अब तक दोनों साथ हैं.

सौज- लल्लनटाप

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