किसान आंदोलन से जुड़ी याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट ने आज लगातार दूसरे दिन सुनवाई करते हुए कुछ महत्वपूर्ण टिप्पणियाँ कीं। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि किसानों के प्रदर्शन के अधिकार पर वह रोक नहीं लगा सकता। लेकिन दूसरों के नागरिक अधिकारों का भी ध्यान रखना होगा। सर्वोच्च अदालत ने केंद्र सरकार को हिंसा भड़काने को लेकर चेताया और पूछा कि क्या मामले की सुनवाई तक क़ानून को स्थगित किया जा सकता है। कोर्ट ने कहा कि कोई बेहतर हो कि कोई निष्पक्ष कमेटी किसानों और सरकार के बीच बातचीत कराके मसला हल करे जिसमें पी.साईनाथ जैसे लोग हों। ग़ौरतलब है कि पी.साईनाथ कृषि विशेषज्ञ हैं और किसानों की समस्याओं के बारे में लगातार लिखते रहे है।
दिल्ली बार्डर पर चल रहे धरना-प्रदर्शन से लोगों को हो रही परेशानियों को लेकर सुप्रीम कोर्ट में याचिकाएँ दायर हुई हैं। इसके अलावा भारतीय किसान यूनियन का भानु गुट की भी याचिका लगी है।
सीजेआई एसए बोबड़े ने कहा, ‘ किसानों को विरोध करने का आधिकार है जिसपर हम हस्तक्षेप नहीं कर रहे हैं। आप अपना विरोध जारी रखिये लेकिन इसका उद्देश्य बातचीत होना चाहिए। आप सालों-साल तक धरना प्रदर्शन नहीं कर सकते।
हालाँकि यह गुट 32 संगठनों की संयुक्त संघर्ष समिति में शामिल नहीं है। कोर्ट ने किसान संगठनों को नोटिस जारी किया है। कोर्ट ने कहा कि किसान संगठनों की बात सुने बिना कोई आदेश पारित नहीं हो सकता। कोर्ट ने मामले की सुनवाई तक क़ानून लागू नहीं किए जाने को लेकर केन्द्र का जवाब माँगा जिस पर अटॉर्नी जनरल के.के.वेणुगोपाल ने कहा कि इस संबंध में वे केंद्र की राय जानकर की कुछ कह पायेंगे। इस मुद्दे पर वे सरकार से निर्देश लेंगे।
कोर्ट में भारतीय किसान यूनियन (भानु) के वकील ने कहा कि तालाबंदी के दौरान, सिर्फ किसानों ने ही देश में भुखमरी रोकने में मदद की न कि मल्टिनेशनल कंपनियों ने। भानु गुट के वकील ने कहा कि हम ‘कृषि प्रधान’ देश में रह रहे हैं न कि ‘मल्टीनेशनल प्रधान’ देश में। इसपर सीजेआई ने कहा, ‘शिकायत यह है कि अगर आप रोड को ब्लॉक करेंगे तो दिल्ली के लोग भूखे रह जाएंगे।’ सीजेआई ने कहा, ‘हम किसानों की दुर्दशा जानते हैं। हम भारतीय हैं। हम किसानों के हमदर्द हैं।’
कोर्ट में पंजाब सरकार की तरफ से वकील पी. चिदंबरम पेश हुए। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट की कमिटी बनाने की पेशकश पर सहमति जताई और कहा कि पंजाब सरकार को इस पर आपत्ति नहीं है कि लोगों का एक समूंह किसानों और केन्द्र में बातचीत करवाए। उन्होंने पुलिस पर किसानों को रोकने का आरोप लगाया। उन्होंने कहा कि किसान दिल्ली आना चहते हैं लेकिन पुलिस ने उन्हें रोक रखा है। बैरिकेड्स और कंटेनरों की तस्वीरें देखी जा सकती हैं।
सुनवाई के दौरान सीजेआई एसए बोबडे ने ‘मॉब’ शब्द का इस्तेमाल किया जिसपर चिदंबरम ने आपत्ति जताई और कहा कि वो ‘मॉब’ नहीं है बल्कि किसानों का एक समूंह है। पुलिस ने किसानों को रोका हुआ है और पुलिस रोड ब्लॉक कर, इसका आरोप किसानों पर नहीं लगा सकती। उन्होंने कोर्ट में दोहराया कि वो संसद सत्र बुलाने की मांग कर रहे हैं जहां इस पर चर्चा हो सके।
आंदोलन के ख़िलाफ़ याचिका दायर करने वालों के वकील हरीश साल्वे ने कहा कि आंदोलन की वजह से दिल्ली में खाने-पीने के सामान की कीमतें बढ़ रही है। सभी फल और सब्ज़ी पड़ोसी राज्यों से आते हैं। ऐसे में दिल्लीवासियों को परेशानी हो रही है। उन्होंने कहा कि विरोध करना एक मौलिक अधिकार है लेकिन उसे अन्य मौलिक अधिकारों से बैलेंस करना होगा। इसपर सीजेआई ने कहा कि यह स्पष्ट है कि क़ानून के ख़िलाफ़ विरोध एक मौलिक अधिकार ज़रूर है लेकिन यह अन्य मौलिक अधिकारों को प्रभावित नहीं कर सकता।
हरीश साल्वे ने कोर्ट से किसान यूनियनों को केन्द्र के साथ को-ऑपरेट करने के लिए एक आदेश जारी करने की मांग की। इसपर सीजेआई ने कहा कि ऐसा एक स्वतंत्र कमेटी द्वारा किया जा सकता है जिसमें पी. साइनाथ जैसे लोग शामिल होते। सीजेआई ने यह भी कहा कि अहिंसक प्रदर्शन जारी रह सकता है और साथ ही सीजेआई ने केन्द्र सरकार से कहा कि ‘आप हिंसा नहीं भड़कायेंगे।’ सुप्रीम कोर्ट ने सभी पक्षों को अवकाशकालीन बेंच के सामने अपना पक्ष रखने का निर्देश दिया है।
मीडिया विजिल से साभार