पंजाब विश्वविद्यालय के 35 छात्रों द्वारा सुप्रीम कोर्ट के समक्ष एक पत्र याचिका दायर की गई है जिसमें कथित तौर पर पुलिस की ज्यादती और दिल्ली सीमाओं के पास प्रदर्शनकारी किसानों की अवैध हिरासत की जांच की मांग की गई है। छात्रों द्वारा लिखे गए एक पत्र में, यह आरोप लगाया गया है कि भारत सरकार ने शांति से विरोध करने के किसानों के संवैधानिक अधिकारों को छीनने के लिए प्रतिशोधी, अत्याचार और सत्ता का असंवैधानिक दुरुपयोग किया है।
याचिका में कहा गया है कि मीडिया ने पूरे शांतिपूर्ण आंदोलन को अलगाववाद के साथ जोड़कर ध्रुवीकरण कर दिया है और दिल्ली पुलिस ने पानी की बौछारों, आंसू गैसों के गोले और लाठियों का नाजायज इस्तेमाल किया है, और यहां तक कि कुछ किसानों को अवैध हिरासत में जेल में डाल दिया है। इस बात पर ध्यान देना महत्वपूर्ण है कि उच्चतम न्यायालय ने दिल्ली की सीमाओं से किसानों को हटाने की मांग करने वाली याचिकाओं के एक बैच पर सुनवाई करते हुए स्पष्ट रूप से कहा था कि जब तक यह गैर-कानूनी नहीं है, और अन्य नागरिकों के जीवन और संपत्तियों को नुकसान नहीं पहुंचाता है, तब तक विरोध प्रदर्शन के अधिकार में कोई बाधा नहीं हो सकती है।
इस पृष्ठभूमि में, यह प्रस्तुत किया गया है कि किसान, इस लोकतांत्रिक राष्ट्र के किसी भी अन्य नागरिक की तरह, अपनी इच्छा और भावनाओं को व्यक्त करने के लिए स्वतंत्र हैं, हालांकि, केंद्र सरकार उनकी दुर्दशा पर गूंगी और उदासीन बन रही है। छात्रों ने कहा कि इस तरह की कार्रवाइयां न केवल प्रदर्शनकारियों के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन हैं, बल्कि अंतर्राष्ट्रीय कानूनों के तहत भारत के दायित्वों के विपरीत भी हैं जैसे, मानव अधिकारों की सार्वभौमिक घोषणा 1948; ICCPR, जिसे भारत ने 1979 में और ICESCR, जिसे 1979 में ही अनुमोदित किया गया।
छात्रों ने इस मामले में भारत के मुख्य न्यायाधीश से इस मामले का स्वत: संज्ञान लेने का आग्रह किया है और केंद्र और राज्य दोनों स्तरों पर सरकारों को निर्देश मांगा है कि वे सभी प्रदर्शनकारियों की सुरक्षा सुनिश्चित करें और निर्दोष किसानों की कथित अवैध हिरासत को देखें। यह प्रार्थना की गई है कि शांतिपूर्ण प्रदर्शन करने वाले किसानों पर वाटर कैनन, आंसू गैसों के गोले और लाठियों के नाजायज इस्तेमाल के बारे में हरियाणा पुलिस के खिलाफ जांच शुरू की जाए।
इसके अलावा, हरियाणा और दिल्ली पुलिस को निर्दोष किसानों के खिलाफ सभी मामलों को वापस लेने का निर्देश मांगा गया है जो कथित तौर पर राजनीतिक प्रतिशोध के तहत दर्ज किए गए थे। मीडिया के खिलाफ फर्जी खबरें फैलाने और पूरे मामले में गलत बयानी, ध्रुवीकरण और विराष्ट्रीकरण करने के लिए भी दिशानिर्देश मांगे गई हैं।
सौज- लाइव लॉ