केंद्र सरकार के तीन नए कृषि कानूनों के खिलाफ पिछले 50 से अधिक दिनों से दिल्ली की सीमाओं पर किसान प्रदर्शन कर रहे हैं. किसानों ने नए कृषि कानूनों की प्रतियां जलाईं. साथ ही गणतंत्र दिवस के मौके पर 26 जनवरी को ट्रैक्टर परेड करने का ऐलान किया है. किसानों की मांग है कि तीनों कृषि कानूनों को निरस्त किया जाना चाहिए. उन्होंने कोरोना वायरस महामारी के दौरान इन कानूनों को पारित करने का केंद्र सरकार के फैसले पर सवाल उठाया है.
किसान डटे हुए हैं और केंद्र सरकार द्वारा लाए गए तीन विवादित कृषि कानूनों को वापस लेने की मांग कर रहे हैं. इन कानूनों के जरिये सरकार एपीएमसी मंडियां और न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) खत्म करना चाह रही है, जिसके चलते उन्हें ट्रेडर्स और बड़े कॉरपोरेट के रहम पर जीना पड़ेगा. ये कानून किसानों को कोई कानूनी सुरक्षा नहीं प्रदान करते हैं. किसान संगठन अपनी इस मांग को लेकर प्रतिबद्ध हैं कि सरकार को हर हालत में इन कानूनों को वापस लेना होगा. इस संबंध में सरकार और किसानों के बीच बातचीत के कई दौर चले, लेकिन अभी तक कोई नतीजा नहीं निकला है.
कृषि बाजार कानूनों को लेकर देश के किसानों के अप्रत्याशित व्यापक जुटान के सन्दर्भ में पटना में जाने माने कृषि विशेषज्ञ एवं मेग्सेसे पुरस्कार विजेता पी साईनाथ के साथ चर्चा का आयोजन हुआ। ज्ञात हो कि साईनाथ पीपुल्स अरकाईव ऑफ रूरल इंडिया (PARI) के संस्थापक हैं और द हिन्दू अखबार के ग्रामीण मामलों के संपादक रहे हैं.
पी साईनाथ ने कहा कि:भारतीय संविधान के तहत कृषि राज्य का विषय है. केंद्र द्वारा इन कानूनों को बनाना असंवैधानिक है. इससे मौजूदा कृषि संकट को और गहरा देगा. इन कानूनों को रद्द किया जाना चाहिए. सरकार आग से खेल रही है”.
साईनाथ ने कहा- कृषि उत्पाद बाजार समिति, कृषि के लिए लगभग वही है जो सरकारी स्कूल शिक्षा के क्षेत्र के लिए है या फिर जो सरकारी अस्पताल स्वास्थ्य क्षेत्र के लिए है. कृषि कानूनों में नीतिगत सुधार निश्चित तौर पर किसानों के हित को ध्यान में रखते हुए किया जाना चाहिए, न कि निजी कंपनियों के हित में. इन कानूनों के जरिये सरकार एपीएमसी मंडियां और न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) खत्म करना चाह रही है, जिसके चलते उन्हें ट्रेडर्स और बड़े कॉरपोरेट के रहम पर जीना पड़ेगा। ये कानून किसानों को कोई कानूनी सुरक्षा नहीं प्रदान करते हैं. किसान संगठन अपनी इस मांग को लेकर प्रतिबद्ध हैं कि सरकार को हर हालत में इन कानूनों को वापस लेना होगा. इस संबंध में सरकार और किसानों के बीच बातचीत के कई दौर चले, लेकिन अभी तक कोई नतीजा नहीं निकला है.
नेशन फॉर फार्मर्स के डा. गोपाल कृष्ण ने चर्चा के विषय का परिचय दिया. उन्होंने यह भी बताया कि कैसे बिहार के सन्दर्भ में APMC एक्ट को गैर वाजिब वजह से निरस्त किया गया और इस एक्ट को फिर से बहाल करने के महत्व पर जोर दिया. निवेदिता झा ने महिला किसानों के हकों पर जोर दिया और महिला किसान दिवस के मौके पर 18 जनवरी को पटना में होने वाली महिला किसान रैली के बारे में भी बताया. डा. अनामिका प्रियदर्शिनी ने महिला किसान मामलों पर बोलते हुए कहा कि नए कानूनों में महिला किसानों के हितों का ध्यान रखा जाना चाहिए.
मालूम हो कि केंद्र सरकार की ओर से कृषि से संबंधित तीन विधेयक– किसान उपज व्यापार एवं वाणिज्य (संवर्धन एवं सुविधा) विधेयक, 2020, किसान (सशक्तिकरण एवं संरक्षण) मूल्य आश्वासन अनुबंध एवं कृषि सेवाएं विधेयक, 2020 और आवश्यक वस्तु (संशोधन) विधेयक, 2020 को बीते 27 सितंबर को राष्ट्रपति ने मंजूरी दे दी थी, जिसके विरोध में किसान प्रदर्शन कर रहे हैं. सरकार समझ रही थी कि यदि वो इस समय ये क़ानून लाती है तो मज़दूर और किसान संगठित नहीं हो पाएंगे और विरोध भी नहीं कर पाएंगे, लेकिन उनका यह आकलन ग़लत साबित हुआ है. किसानों को इस बात का भय है कि सरकार न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) दिलाने की स्थापित व्यवस्था को खत्म कर रही है और यदि इसे लागू किया जाता है तो किसानों को व्यापारियों के रहम पर जीना पड़ेगा. किसानों का व्यापक जुटान कोई मामूली जुटान नहीं है.
(इस संवाद को नेशन फॉर फार्मर (किसानों के साथ देश समूह) बिहार महिला समाज और तत्पर फाउंडेशन द्वारा आयोजित किया गया।) सौज- जनपथ