ख़लील जिब्रान (6 जनवरी, 1883–10 जनवरी, 1931) अरबी और अंग्रेजी के लेबनानी-अमेरिकी कलाकार, कवि तथा न्यूयॉर्क पेन लीग के लेखक थे। उन्हें अपने चिंतन के कारण समकालीन पादरियों और अधिकारी वर्ग का कोपभाजन होना पड़ा और जाति से बहिष्कृत करके देश निकाला तक दे दिया गया था। जीवन की कठिनाइयों की छाप उनकी कृतियों में भी है जिनमें उन्होंने प्राय: अपने प्राकृतिक एवं सामाजिक वातावरण का चित्रण किया है। आधुनिक अरबी साहित्य में उन्हें प्रेम का संदेशवाहक माना जाता है। उनकी मुख्य कृतियाँ: द निम्फ्स ऑव द वैली, स्प्रिट्स रिबेलिअस, ब्रोकन विंग्स, अ टीअर एंड अ स्माइल, द प्रोसेशन्स, द टेम्पेस्ट्स, द स्टॉर्म, द मैडमैन, ट्वेंटी ड्रॉइंग्स, द फोररनर, द प्रोफेट, सैंड एंड फोम, किंगडम ऑव द इमेजिनेशन, जीसस : द सन ऑव मैन, द अर्थ, गॉड्स, द वाण्डरर, द गार्डन ऑव द प्रोफेट, लज़ारस एंड हिज़ बिलवेड । आज पढ़ें उनकी कहानी-
खोज
मेरी आत्मा और मैं विशाल समुद्र में स्नान करने के लिए गए। किनारे पहुँचकर हम किसी छिपे स्थान के लिए नज़रें दौड़ाने लगे। हमने देखा एक आदमी चट्टान पर बैठा अपने झोले से चुटकी–चुटकी नमक निकालकर समुद्र में फेंक रहा था।
मेरी आत्मा ने कहा, ‘‘यह निराशावादी है, आगे चलते हैं। हम यहाँ नहीं नहा सकते।’’
हम चलते हुए खाड़ी के पास पहुँच गए। वहाँ एक आदमी सफेद चट्टान पर खड़ा होकर जड़ाऊ बाक्स से चीनी निकाल–निकालकर समुद्र में फेंक रहा था।
मेरी आत्मा ने कहा, ‘‘यह आशावादी है, इसे भी हमारे नग्न शरीर नहीं देखने चाहिए।’’
हम आगे बढ़े। किनारे पर एक आदमी मरी मछलियाँ उठाकर उन्हें वापस समुद्र में फेंक रहा था।
आत्मा ने कहा,‘‘हम इसके सामने नहीं नहा सकते, यह एक दयालु–प्रेमी है।’’
हम आगे बढ़ गए। यहाँ एक आदमी अपनी छाया को रेत पर अंकित कर रहा था। लहरों ने उसे मिटा दिया पर वह बार–बार इस क्रिया को दोहराए जा रहा था।
‘‘यह रहस्यवादी है,’’ मेरी आत्मा बोली,‘‘आगे चलें।’’
हम चलते गए, शान्त छोटी–सी खाड़ी में एक आदमी समुद्र के फेन को प्याले में एकत्र कर रहा था।
आत्मा ने मुझसे कहा,‘‘यह आदर्शवादी है, इसे तो हमारी नग्नता कदापि नहीं देखनी चाहिए।’’
चलते–चलते अचानक किसी के चिल्लाने की आवाज आई,‘‘यही है समुद्र… गहरा अतल समुद्र। यही है विशाल और शक्तिशाली समुद्र।’’ नज़दीक पहुँचने पर हमने देखा कि एक आदमी समुद्र की ओर पीठ किए खड़ा है और सीप को कान से लगाए उसकी आवाज़ सुन रहा है।
मेरी आत्मा बोली,‘‘आगे चलें। यह यथार्थवादी है,जो किसी बात को न समझने पर उससे मुँह मोड़ लेता है और किसी अंश पर ध्यान केंदित कर लेता है।’’
हम आगे बढ़ते गए। चट्टानों के बीच एक आदमी रेत में मुँह छिपाए दिखा।
मैंने अपनी आत्मा से कहा,‘‘हम यहाँ स्नान कर सकते हैं, यह हमें नहीं देख पाएगा।’’
आत्मा ने कहा,‘‘नहीं, यह तो उन सबसे खतरनाक है क्योंकि यह उपेक्षा करता है।’’
मेरी आत्मा के चेहरे पर गहरी उदासी छा गई और उसने दुखी आवाज में कहा,‘‘हमें यहाँ से चलना चाहिए क्योंकि यहाँ कहीं भी निर्जन और छिपा हुआ स्थान नहीं है जहाँ हम स्नान कर सकें। मैं यहाँ की हवा को अपनी जुल्फों से नहीं खेलने दूंगा न ही यहाँ की हवा में अपना वक्षस्थल खोलूंगा और न ही इस प्रकाश को अपनी पवित्र नग्नता की हवा लगने दूंगा।’’
फिर हम उस बड़े समुद्र को छोड़कर किसी दूसरे महासागर की खोज में निकल पड़े।