देश में कोरोना वैक्सीन के तीन चौथाई की खरीदी अब केंद्र सरकार करेगी, बाकी 25 प्रतिशत वैक्सीन प्राइवेट सेक्टर खरीद सकेगा. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश को संबोधित कर वैक्सीन नीति में बदलाव की जानकारी दी.भारत सरकार ने पिछले दो महीने में तीसरी बार अपनी वैक्सीन नीति में बदलाव किया है. सरकार ने 21 जून से 18 साल से ऊपर के सभी भारतीयों के लिए राज्यों को मुफ्त वैक्सीन मुहैया कराने की बात कही है. प्रधानमंत्री मोदी ने देश को संबोधित कर वैक्सीन नीति में किए गए इन बदलाव की जानकारी दी. उन्होंने बताया कि देश में निर्मित कुल वैक्सीन के 75 फीसदी हिस्से की खरीद अब केंद्र सरकार करेगी, बाकी 25 फीसदी वैक्सीन की खरीद प्राइवेट सेक्टर कर सकेगा.
विदित हो कि अप्रैल तक केंद्र सरकार ही सभी निर्माताओं से वैक्सीन लेकर राज्यों और प्राइवेट सेक्टर को मुहैया करा रही थी.अप्रैल के अंत में केंद्र ने नीति में बदलाव करते हुए केंद्र और राज्य के लिए आधे-आधे वैक्सीन खरीद की बात कही थी. लेकिन बाद में सुप्रीम कोर्ट में दिए सरकार के हलफनामे के मुताबिक वास्तव में यह फॉर्मूला केंद्र-राज्य और प्राइवेट सेक्टर के लिए क्रमश: 50-25-25 फीसदी खरीद का था. सोमवार को तीसरी बार नीति में बदलाव के बाद अब वैक्सीन खरीद का फॉर्मूला केंद्र सरकार और प्राइवेट सेक्टर के लिए 75-25 हो जाएगा.
उल्लेखनीय है कि पिछले हफ्ते वैक्सीन से जुड़े एक मामले की सुनवाई करते हुए कोर्ट ने केंद्र की टीकाकरण नीति को मनमाना और तर्कहीन कहा था. इससे पहले सुप्रीम कोर्ट देश भर में वैक्सीन की कीमत एक समान होने की बात भी कह चुका था. लेकिन पिछले हफ्ते केंद्र की टीकाकरण नीति की आलोचना करते हुए उसने कहा कि अदालतें मूक दर्शक नहीं बनी रह सकतीं.
सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र से टीकाकरण नीति पर विस्तृत रिपोर्ट भी मांगी थी और यह भी पूछा था कि वैक्सीन कब-कब खरीदी गई है. और इसके लिए साल 2021-22 के बजट में निर्धारित 35 हजार करोड़ रुपये में से अब तक हुए खर्च का हिसाब देने को भी कहा गया था. यह भी पूछा गया था कि 18-44 आयु के नागरिकों के लिए यह बजट क्यों इस्तेमाल नहीं किया जा सकता. इन सभी सवालों का जवाब देने के लिए केंद्र को 2 हफ्ते का समय दिया गया था.
इधर ओम थानवी सहित कई बुद्धिजीवी इस फैसले के लिए जहां सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी को जिम्मेदार मान रहे हैं, राजनीतिक विश्लेषक अभय कुमार दुबे इसका राजनीतिक महत्व भी देखते हैं. उनके मुताबिक, “बंगाल की हार के बाद उत्तर प्रदेश के चुनाव बीजेपी के लिए लिटमस टेस्ट हैं. इसी बीच कोरोना की दूसरी लहर के गांव में गंभीर असर के चलते सिर्फ उत्तर प्रदेश में लाखों मौतें हुई हैं. सरकार ने आंकड़ों का मैनेजमेंट करने की भरपूर कोशिश की है लेकिन वायरस की मार झेलने वाली जनता के अंदर तो दुख, क्षोभ और निराशा है. ऐसे में निश्चित रूप से फैसले का राजनीतिक महत्व है.”
अभय दुबे कहते हैं, “नरेंद्र मोदी की छवि अब तक ‘टेफ्लॉन कोटेड’ मानी जाती थी लेकिन यह भ्रम भी टूटा है. तमाम सर्वे यह बात साबित कर चुके हैं.” ऐसे में केंद्र सरकार के फैसले को राजनीतिक फैसला माना जा रहा है. सरकार पर टीके की खरीद को लेकर बहुत दबाव था. कई अंतरराष्ट्रीय कंपनियां राज्यों को सीधे टीका बेचने से मना कर चुकी थी
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