नफरत के दौर में सौहार्द्र की बातें -राम पुनियानी

पिछले माह मन को विचलित करने वाली अनेक घटनाएं हुई. ये घटनाएं हिंसा और स्त्रियों के प्रति द्वेष को बढ़ावा देने वाली, मुस्लिम महिलाओं को निशाना बनाने वाली और राष्ट्रपिता का अपमान करने वाली थीं. इसके साथ ही, ‘द वायर’ की शानदार खोजी पत्रकारिता से हमें ‘टेक फ्रॉग’ नामक खतरनाक मोबाइल एप के बारे में जानकारी मिली, जो समाज के विशिष्ट तबकों के खिलाफ नफरत की बवंडर खड़ा करने में सक्षम है.

हरिद्वार (उत्तराखंड) में यति नरसिंहानंद व अन्यों द्वारा आयोजित धर्म संसद में कई भगवाधारियों ने मुसलमानों के खिलाफ जम कर ज़हर उगला. यहाँ तक कि उन्होंने मुसलमानों के कत्लेआम की बात तक कह डाली. यति, जो अब जेल में है, ने कहा, “…अगर कोई हिन्दुओं का प्रभाकरण बनने की ज़िम्मेदारी लेता है तो मैं उसे एक करोड़ रुपये दूंगा और अगर वह एक साल तक इस रूप में काम करता रहता है तो मैं धन इकठ्ठा कर उसे कम से 100 करोड़ रुपये दूंगा.” साध्वी अन्नपूर्णा दूसरों से पीछे नहीं थीं. उन्होंने 20 लाख लोगों (मुसलमानों) की हत्या की बात कही और इस आधार पर इसे उचित ठहराया कि यह धर्म की खातिर किया जाएगा. “यह हमारा कर्त्तव्य है,” उन्होंने कहा. उन्होंने यह भी कहा कि “जो भी हमारे धर्म के खिलाफ है, हम उसे जान से मार देंगे.”   

साध्वी अन्नपूर्णा का मूल नाम पूनम शकुन पाण्डेय है. कुछ साल पहले इन्होंने गांधीजी के पुतले में तीन गोलियां दागीं थीं. इसी सभा में जितेन्द्र त्यागी, जिन्होंने इस्लाम छोड़कर कुछ समय पहले हिन्दू धर्म अपनाया है, ने भी अपने पूर्व धर्म की जम के खबर ली. गिरफ्तार होने वालों में वे सबसे पहले थे.

इस सभा के अतिरिक्त, सुदर्शन चैनल के सुरेश चाव्हानके ने युवाओं को ‘हमारे धर्म के लिए मारने और मरने’ की शपथ दिलवाई. हिन्दू युवा वाहिनी द्वारा दिल्ली में आयोजित कार्यक्रम में उन्होंने करीब 250 युवाओं को शपथ दिलवाई: “हम सब शपथ लेते हैं, अपना वचन देते हैं, संकल्प करते हैं कि हम भारत को एक हिन्दू राष्ट्र बनाएंगे, अपनी अंतिम सांस तक इसे एक हिन्दू राष्ट्र रखेंगे. हम लड़ेगें और मरेंगे. अगर ज़रुरत पड़ी तो हम मार भी डालेंगे.”

एक अन्य डरावनी खबर बुल्ली बाई एप के बारे में थी. कुछ महीने पूर्व, सुल्ली डील्स एप सामने आया था. बुल्ली एप में उन मुस्लिम महिलाओं को नीलामी पर चढ़ाया गया जो अल्पसंख्यकों के अधिकारों, गरिमा और सुरक्षा के हक़ में आवाज़ उठा रहीं हैं. यही नहीं, ‘द वायर’ ने एक लम्बी पड़ताल, जो कई सालों तक चली, के आधार पर पता लगाया कि भाजपा के पास टेक फ्रॉग नामक एक एप है जो बहुत कम समय में बड़े पैमाने पर दुष्प्रचार करने में सक्षम है. इस एप का इस्तेमाल ट्विटर व अन्य सोशल मीडिया मंचों पर भाजपा और हिंदुत्व की हिमायत करने के लिए किया जाता रहा है.

नफरत फैलाने वाली भाषणों और गतिविधियों के खिलाफ कोई कार्यवाही नहीं हुई. बुल्ली बाई एप के निर्माताओं को गिरफ्तार कर लिया गया है. हरिद्वार धर्म संसद के मामले में शुरुआत में पुलिस ने कोई कार्यवाही नहीं की. केवल जितेन्द्र त्यागी को गिरफ्तार किया गया. सुप्रीम कोर्ट के हस्तक्षेप के बाद, पुलिस ने यति को पकड़ा. सेना के अनेक पूर्व शीर्ष अधिकारियों ने राष्ट्रपति को संबोधित पत्र में नफरत-जनित अपराधों के मामले में कड़ी कार्यवाही की मांग की है. आईआईएम एवं आईआईटी के पूर्व एवं वर्तमान विद्यार्थियों एवं शिक्षकों ने देश की फिजा में घुलते ज़हर की ओर सरकार का ध्यान आकृष्ट करते हुए इस दिशा में अपेक्षित कदम उठाये जाने की मांग की है.

हिन्दू सांप्रदायिक राष्ट्रवादी विचारधारा से जुड़े कुछ छितरे हुए समूह जिस ढंग से बेलगाम हो गए हैं और खुले आम ज़हर फैला रह रहे हैं, उससे ऐसा लगता है कि यह सब समाज को ध्रुवीकृत करने की सुनियोजित योजना का हिस्सा है. देश में जो कुछ हो रहा है, उससे विश्व समुदाय भी चिंतित हैं. अमरीका में एमनेस्टी इंटरनेशनल, यूएसए, जेनोसाइड वाच व 17 अन्य मानवाधिकार संगठनों ने भारत में मुसलमानों की  स्थिति पर चिंता व्यक्त की है. कांग्रेशनल ब्रीफिंग में बोलते हुए विशेषज्ञों ने कहा कि अगर हालात और बिगड़ते हैं तो देश में मुसलमानों के खिलाफ बड़े पैमाने पर हिंसा या उनका कत्लेआम हो सकता है. 

इन सभी मामलों में सत्ताधारी दल की चुप्पी आश्चर्यजनक नहीं है. हम जानते हैं कि हमारे अत्यंत मुखर प्रधानमंत्री तब चुप्पी साध लेते हैं जब किसी रोहित वेम्युला की संस्थागत हत्या होती है या किसी मोहम्मद अखलाक की केवल इसलिए हत्या कर दी जाती है क्योंकि उसके घर पर को मांस रखा था उसके बारे में शक है कि वह गाय का था. यह चुप्पी साशय होती और कार्यवाही में देरी सुनियोजित होती है ताकि ज़हर बुझे भाषण, नफरत में डूबे वक्तव्य और हिंसा और हत्या की बातें ज्यादा से ज्यादा समय तक वातावरण में उतराती रहें और अपना काम कर पाएं.

धर्म संसद की परिकल्पना आरएसएस के अनुषांगिक संगठन विहिप की है. राममंदिर का मुद्दा, जिसके नतीजे में बाबरी मस्जिद का ध्वंस हुआ और उसके बाद भयावह हिंसा हुई, को भी पहली बार धर्म संसद में ही उठाया गया था. ‘दूसरों से नफरत करो’ के दुष्प्रचार के जडें बहुत गहरे तक फैल गईं हैं. आरएसएस के बौद्धिकों में मुस्लिम शासकों के दानवीकरण और मनुस्मृति के मूल्यों के महिमामंडन का सिलसिला बहुत लम्बे समय से चल रहा है. पिछले नौ दशकों में इस एजेंडा को आगे बढ़ाने के लिए कई संगठनों का गठन किया गया है.  

इस प्रचार से प्रभावित किशोरों और युवाओं ने सोशल मीडिया और संवाद की नयी तकनीकों का उपयोग भी इसके लिए करना शुरू कर दिया है. हमें याद है कि शम्भूलाल रैगर, जो सोशल मीडिया पर काफी सक्रिय था, ने लव जिहाद के नाम पर अफ्राजुल की अत्यंत क्रूरतापूर्वक हत्या कर दी थी. बुल्ली बाई एप के सिलसिले में गिरफ्तार चार युवक इसी वर्ग के भाग हैं. टेक फ्रॉग एप, दुष्प्रचार का नया उपकरण है, जो समाज को बुरी तरह विभाजित कर सकता है. 

पुलिस भगवाधारियों को छूने में हिचकिचाती है और यदि मजबूर होकर उसे उन्हें गिरफ्तार करना भी पड़ता है तो उन पर मामूली धाराओं में प्रकरण दर्ज किये जाते हैं और उनके बच निकलने की रास्ते खाली छोड़ दिया जाता है. नफरत की राजनीति पर सत्ताधारियों की सुनियोजित चुप्पी से जो वातावरण हमारे देश में बन रहा है क्या सुप्रीम कोर्ट में दाखिल जनहित याचिकाएं उससे हमारी रक्षा कर सकतीं हैं?

यद्यपि नफरत और कत्लेआम के आह्वानों का स्त्रोत हमें पता है परन्तु यह दुःख की बात है कि ज़मीनी स्तर पर बंधुत्व के भाव को बढ़ावा देने के लिए कोई संगठन सक्रिय नहीं है – बंधुत्व के उस भाव को जिसका विकास स्वाधीनता संग्राम के दौरान हुआ था. देश में ऐसा कोई आन्दोलन, कोई अभियान नहीं है जो भक्ति-सूफी संतों की मानवता के सन्देश को देश के सभी समुदायों तक पहुंचा सके.

बहुत अच्छा होता कि दिल्ली में ऐसी सरकार होती जो अल्पसंख्यकों को सुरक्षा देने के प्रति प्रतिबद्ध होती और यति जैसे लोगों, बुल्ली एप बनाने वाले युवाओं और टेक फ्रॉग के उपयोगकर्ताओं के खिलाफ कड़ी कार्यवाही करती. परन्तु चूँकि ऐसा नहीं है इसलिए हमें ऐसे सामाजिक आंदोलनों की ज़रुरत है जो सांस्कृतिक-शैक्षणिक तरीकों से विभिन्न समुदायों के बीच शांति और सौहार्द को बढ़ावा दें. एक व्यापक सामाजिक आन्दोलन ही देश में शांति और सौहार्द की स्थापना में सहायक हो सकता है. शांति और सौहार्द के बिना देश का न तो सामाजिक विकास हो सकता है, न आर्थिक और ना ही राजनैतिक. 

लेखक आईआईटी मुंबई में पढ़ाते थे और सन्  2007 के नेशनल कम्यूनल हार्मोनी एवार्ड से सम्मानित हैं (अंग्रेजी से रूपांतरण अमरीश हरदेनिया)

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