देश में सेना का सम्मान किसी और नौकरी की अपेक्षा अधिक है, युवा मानते हैं कि मेहनत कर के अगर उन्हें एक बार सेना में नौकरी मिल गई तो उनका जीवन पूरी तरह संभल जाएगा. युवा मानते हैं कि ये उन्हें केवल जीवन बिताने का आर्थिक साधन ही नहीं है ये उन्हें समाज में भी सम्मान और स्थान भी देता है. इसलिए इसे लेकर युवाओं की नाराज़गी समझ आती है
‘अग्निपथ योजना’की घोषणा के बाद से एक तरफ जहाँ युवाओं का विरोध नज़र आया, वहीं दूसरी तरफ़ सरकार ने उन्हें भरोसा देते हुए नए एलान करती नज़र आ रही है.
सरकार ने उन्हें ये भरोसा दिला रही है कि चार साल की सेवा ख़त्म होने के बाद भी उन्हें अर्धसैनिक बलों जैसी कई दूसरी सरकारी नौकरियों में प्रथमिकता मिलेगी और उनके लिए ख़ास आरक्षण भी होगा.
यहाँ ये सवाल उठता है कि अगर अग्निवीरों के लिए दूसरी नौकरियों में 10 फ़ीसदी तक का लिए रिज़र्व करना ही था तो इसके बारे में योजना की घोषणा करते वक्त ही क्यों नहीं बताया गया? कहीं ऐसा तो नहीं कि सरकार ने जल्दबाज़ी में इसका एलान कर दिया और फिर विरोध को देखने के बाद थोड़ा नरम रुख़ अख्तियार किया है.
वरिष्ठ पत्रकार अदिति फडनिस कहती हैं, “मुझे नहीं लगता कि सरकार ने इस योजना की घोषणा को लेकर कोई हड़बड़ी की, लेकिन ऐसा लगता है कि सरकार को ये उम्मीद नहीं थी कि इसकी इतनी भीषण विरोध होगा. आश्चर्य ये है कि सरकार ने पहले इसके बारे में क्यों नहीं सोचा.”
वो कहती हैं, ” देश में सेना का सम्मान किसी और नौकरी की अपेक्षा अधिक है, युवा मानते हैं कि मेहनत कर के अगर उन्हें एक बार सेना में नौकरी मिल गई तो उनका जीवन पूरी तरह संभल जाएगा. युवा मानते हैं कि ये उन्हें केवल जीवन बिताने का आर्थिक साधन ही नहीं है ये उन्हें समाज में भी सम्मान और स्थान भी देता है. इसलिए इसे लेकर युवाओं की नाराज़गी समझ आती है.”
योजना की घोषणा के बाद किश्तों में पहले आयु सीमा बढ़ाने की बात और फिर अलग-अलग सेवाओं में भर्तियों में 10 फीसदी आरक्षण का एलान करने से युवाओं को मनाने की कोशिश कामयाब हो सकेगी.
अदिति फडनिस कहती हैं, ” मुझे नहीं लगता कि इन चीज़ों से लोग मानेंगे क्योंकि ये स्थिति संभालने की कोशिश लगती है. युवाओं को जो अपेक्षा है, ऐसा नहीं लगती कि वो इन घोषणाओं से संतुष्ट होंगे.”
वो कहती हैं, “दूसरी बात ये कि सरकार ये इसलिए कर रही है क्योंकि वो पेंशन बिल और सैलरी बिल बचाना चाहती है. इसे लेकर लोगों में नाराज़गी है क्योंकि एक तरफ सरकार कहती है कि फौज देश की रक्षा करती है और दूसरी तरफ युवाओं को अल्पावधि की नौकरी दी जा रही तै ताकि सरकार पैसे बचा सके. इसमें कोई शक नहीं कि सरकार पैसा बचाने की केशिश कर रही है.”
लेकिन क्या विरोध प्रदर्शनों के तीव्र होने के बाद सरकार ने विभिन्न सरकारी सेवाओं में 10 फीसदी के आरक्षण की घोषणा की, क्या सरकार का रुख़ इस मामले में नरम पड़ने लगा. इसका जवाब मिला रविवार को सेना के तीनों अंगों ने आला अधिकारियों की प्रेस कॉन्फ्रेंस में.
प्रेस कॉन्फ्रेंस में लेफ़्टिनेंट जनरल अनिल पुरी ने कहा, “सेना में सुधारों की कवायद 1989 से ही चल रही थी, इस पर अलग-अलग वक्त में अमल किया जाता रहा है, लेकिन सेना की औसत उम्र कम करने के उद्देश्य से जवानों की भर्ती में बदलाव पहले नहीं किया जा सका. ये अब जाकर हो पाया है.”
उन्होंने कहा, “सरकार के विभिन्न विभागों में अग्निवीरों के लिए रिज़र्वेशन के बारे में पहले ही योजना बनाई गई थी, हिंसा की घटनाओं के बाद ऐसी घोषणाएं की गई हैं ऐसा नहीं है.”
सौज- बीबीसी