प्रदेश के सुपरिचित पत्रकार तथा साहित्यकार स्व. प्रभाकर चौबे की जयंती के अवसर पर उन की स्मृति में अग्रसेन महाविद्यालय (पुरानी बस्ती) के नवनिर्मित ऑडियो विजुअल स्टुडियो में रेडियो अग्रवाणी की ओर से आज “मीडिया का बदलता स्वरूप” – विषय पर एक परिचर्चा आयोजित की गई. अग्रसेन महाविद्यालय के पत्रकारिता विभाग तथा प्रभाकर चौबे फाउन्डेशन द्वारा संयुक्त रूप से आयोजित इस परिचर्चा में कुशाभाऊ ठाकरे पत्रकारिता विश्वविद्यालय के कुलसचिव डॉ आनंद शंकर बहादुर ने कहा कि “किसी भी सूचना पर विश्वास से पहले उसे परखना ज़रूरी” है।
प्रदेश के सुपरिचित पत्रकार तथा साहित्यकार स्व. प्रभाकर चौबे की जयंती के अवसर पर उन की स्मृति में अग्रसेन महाविद्यालय (पुरानी बस्ती) के नवनिर्मित ऑडियो विजुअल स्टुडियो में रेडियो अग्रवाणी की ओर से आज “मीडिया का बदलता स्वरूप” – विषय पर एक परिचर्चा आयोजित की गई. अग्रसेन महाविद्यालय के पत्रकारिता विभाग तथा प्रभाकर चौबे फाउन्डेशन द्वारा संयुक्त रूप से आयोजित इस परिचर्चा में कुशाभाऊ ठाकरे पत्रकारिता विश्वविद्यालय के कुलसचिव डॉ आनंद शंकर बहादुर ने कहा कि “किसी भी सूचना पर विश्वास से पहले उसे परखना ज़रूरी” है। उन्होंने कहा जैसे सूर्योदय और सूर्यास्त के समय क्षितिज का चित्र देखने में भले ही वह एक जैसा दिखाई दे, लेकिन विवेक और अंतरदृष्टि होने पर दोनों चित्रों में मौजूद फर्क को भी महसूस किया जा सकता है. उन्होंने कहा कि जैसे हमारा समाज अभी संक्रमण से गुजर रहा है, वैसे ही मीडिया में भी अभी संक्रमण-काल चल रहा है. इस स्थिति में सभी तरफ एक अनिर्णय और भ्रम की स्थिति दिखाई देती है. इस भ्रम को अपनी समझ और विवेक से ही दूर किया जा सकता है. इस विषय पर वरिष्ठ पत्रकार जीवेश प्रभाकर ने कहा कि मीडिया में अभी खबरों को सबसे पहले ब्रेक करने या उजागर करने की होड़ मची हुई है. इसलिए प्रायः तथ्यों को परखे बिना ही, पत्रकार बहुत सी ख़बरों को दर्शकों और पाठकों तक पहुंचा देते हैं. इसी वजह से खबरों की विश्वसनीयता कम होती जा रही है. हालाँकि प्रिंट मीडिया में अभी भी अन्य माध्यमों की अपेक्षा विश्वसनीयता अधिक है. इस अवसर पर पत्रकारिता संकाय के विभागाध्यक्ष प्रो. विभाष कुमार झा ने कहा कि स्व प्रभाकर चौबे अपने जीवन के संध्याकाल में भी आश्चर्यजनक रूप से जिज्ञासु बने रहे. मीडिया में होने वाले हर एक बदलाव पर उनकी पैनी नजर रहती थी. तमाम बदलावों को स्वीकार करने साथ-साथ वे सामाजिक मूल्यों को बचाए रखने के प्रति भी विशेष रूप से आग्रही रहे.
इस परिचर्चा के बाद पत्रकारिता विभाग में विद्यार्थियों के साथ एक प्रश्नोत्तरी कार्यक्रम का आयोजन भी किया गया. इसमें विद्यार्थियों ने आमंत्रित वक्ताओं से मीडिया के विभिन्न पहलुओं पर सवाल किये. एक सवाल के जवाब में डॉ आनंद बहादुर ने कहा कि मीडिया में अब पूंजीवादी ताकतों का प्रभाव बढ़ गया है. ऐसे माहौल में किसी भी पत्रकार के लिए समाज के प्रति दायित्व रखते हुए कार्य करना पहले से ज्यादा कठिन हो गया है. फिर भी पत्रकार को अपने परिवार और आजीविका की विवशताओं के बावजूद अपना जमीर बचाकर रखने का हर-संभव प्रयास करना चाहिए. यही उसकी बड़ी सफलता होगी. एक ने प्रश्न के उत्तर में पत्रकार जीवेश चौबे ने कहा कि आज पत्रकारिता के पारंपरिक ममाध्यमों का एकाधिकार ख़त्म हो गया है. अब सोशल मीडिया एक ही क्षण में किसी सूचना को दुनिया भर में फैला देता है. लेकिन इस माध्यम पर कोई नियंत्रण नहीं होने के कारण यहाँ अराजकता की स्थिति भी बन सकती है. ऐसे में पत्रकार के पास किसी भी खबर या सूचना को परखने की क्षमता होना जरुरी है. अंत में महाविद्यालय के पर प्राचार्य डॉ युलेंद्र कुमार राजपूत ने आभार व्यक्त करते हुए कहा कि स्व प्रभाकर चौबे कि स्मृति में परिचर्चा के आयोजन से पत्रकारिता के विद्यार्थियों को उनके कार्यों के विषय में जानने का अवसर मिला. उन्होंने दोनों वक्ताओं के विचारों को युवाओं के लिए उपयोगी और मार्गदर्शक बताया. इस मौके पर महाविद्यालय के डायरेक्टर डॉ वी के अग्रवाल तथा एडमिनिस्ट्रेटर प्रो. अमित अग्रवाल ने आमंत्रित वक्ताओं के विचारों के लिए उन्हें साधुवाद दिया. पत्रकारिता संकाय के विभागाध्यक्ष प्रो. विभाष कुमार झा ने इस परिचर्चा का संचालन किया. कार्यक्रम में पत्रकारिता विभाग के प्राध्यापक प्रो राहुल तिवारी तथा प्रो. हेमंत सहगल भी विशेष रूप से उपस्थित रहे.