हमेशा तोड़फोड़ में आगे रहने वाली भाजपा के विरूद्ध मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने फिलहाल आगामी चुनाव के मद्देनजर भाजपा के वरिष्ठ आदिवासी नेता नंद कुमार साय को अपने पाले में लाकर पहली बाजी तो अपने पक्ष में कर ली है? बहरहाल छत्तीसगढ़ में यह देखना दिलचस्प होगा कि भूपेश बघेल का यह दांव क्या आगामी चुनाव में मास्टर सट्रोक साबित होगा?
भाजपा के वरिष्ठ आदिवासी नेता, विधान सभा में विपक्ष के पूर्व नेता और पूर्व पार्टी अध्यक्ष नंदकुमार साय ने मुख्यमंत्री भूपेश बघेल, प्रदेश अध्यक्ष मोहन मरकाम एवं अन्य वरिष्ठ नेताओं के समक्ष कांग्रेस प्रवेश कर लिया है । आदिवासियों के बीच अपनी प्रतिष्ठा, लोकप्रियता और पैठ के लिए जूझ रही भाजपा के लिए निश्चित रूप से यह एक बड़े आघात से कम नहीं है। भाजपा के सामने दूसरी परेशानी यह भी है कि पिछले विधानसभा चुनाव में राज्य की 90 सीटों में भाजपा 14 सीटों पर सिमट कर रह गई थी। साथ ही राज्य की कुल 29 आदिवासी सीटों में से भाजपा के पास फिलहाल एक भी सीट नहीं है। हालांकि यह कहा जाता है कि नंद कुमार साय की राज्य की राजनीति में वैसी पकड़ अब नहीं रही, जैसी 2003 में थी मगर चुनावी वर्ष में नंद कुमार साय के कांग्रेस में जाने से भाजपा के लिए राह और कठिन तो हो ही गई है।
हमेशा तोड़फोड़ में आगे रहने वाली भाजपा के विरूद्ध मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने फिलहाल आगामी चुनाव के मद्देनजर भाजपा के वरिष्ठ आदिवासी नेता नंद कुमार साय को अपने पाले में लाकर पहली बाजी तो अपने पक्ष में कर ली है मगर सवाल यह उठता है कि आदिवासियों में फिलहाल अच्छी पैठ और लोकप्रियता कायम रखने वाली कांग्रेस के लिए नंद कुमार साय का कांग्रेस प्रवेश कितना जरूरी और कितना लाभदायक सिद्ध होगा।
कॉंग्रेस में पहले ही कदद्दावर आदिवासी नेताओं की लम्बी सूची है और उनमें भी आपसी प्रतिस्पर्धा और महत्वाकांक्षा कम नहीं है । ऐसे में यह सवाल भी उठता है कि नंद कुमार साय को कांग्रेस में लाकर क्या कांग्रेस अपनी मुसीबत बढ़ा रही है ? रणनीतिक तौर पर देखा जाय तो चुनावी वर्ष में भाजपा के आदिवासी दिग्गजों के धड़े में सेंध लगाने में कामयाबी हासिल करना कांग्रेस के लिए एक बड़ी उपलब्धि कही जा सकती है जिसने भाजपा की बेचैनी बढ़ा दी है।
एक समय भाजपा के कद्दावर आदिवासी नेता माने जाने वाले नंद कुमार साय दो बार सांसद , राज्य सभा सदस्य पूर्व मध्य प्रदेश भजपा के अध्यक्ष भी रहे और छत्तीसगढ़ राज्य बनने के पश्चात पहली विधान सभा में 2000 से 2003 तक छत्तीसगढ़ विधानसभा में विधायक दल के नेता चुने गए और नेता प्रतिपक्ष रहे । हालांकि भाजपा के 15 साल के शासन के दौरान आहिस्ता आहिस्ता वे अप्रासंगिक होते चले गए और जमीनी पकड़ खोते चले गए। ऐसे में आज वे कांग्रेस के लिए कितने उपयोगी सिद्ध होंगे यह आने वाला समय ही बतायेगा।
तहसीलदार के पद पर कार्य कर रहे नंद कुमार साय नौकरी से त्यागपत्र देकर 1977 में पहली बार छत्तीसगढ़ के तपकरा, जो वर्तमान में जशपुर जिला का हिस्सा है, से विधानसभा सदस्य बने। इसके पश्चात भाजपा के कद्दावर नेता रहे लखीराम अग्रवाल और मध्य प्रदेश भाजपा के कुछ बड़े नेताओं के अनुरोध पर भाजपा की सदस्यता ग्रहण की और फिर1985 मे तपकरा विधानसभा सीट से भाजपा के विधायक बने। नेता प्रतिपक्ष के रूप में 2000 से 2003 के दौरान अजीत प्रमोद कुमार जोगी की कांग्रेस सरकार के खिलाफ बहुत संघर्ष किया यहां तक कि एक धरना प्रदर्शन के दौरान लाठी चार्ज में उनका पैर तक फ्रैक्चर हो गया था।
2003 के विधान सभा चुनाव में उन्हें मरवाही विधानसभा क्षेत्र से तात्कालीन मुख्य मंत्री अजीत जोगी के विरुद्ध टिकिट दिया गया। उन्होंने पार्टी को सुझाव दिया कि मुझे और दूसरे स्थान से भी चुनाव लड़वाया जाए मगर उनकी नहीं सुनी गई। उनका मानना है कि पार्टी में ताकतवर बन चुकी सत्तालोलुप लॉबी ने उन्हें षडयंत्रपूर्वक मरवाही से चुनाव लड़वाया और वह चुनाव हार गए। छत्तीसगढ़ में भाजपा की सरकार बन गई और वह किनारे होते गए।
नंद कुमार साय का कहना है कि वे पिछले कुछ वर्षों से, विशेष रूप से 2003 के पश्चात से ही, उनके विरुद्ध लगातार षड्यंत्र किया जाता रहा और उन्हें अपमानित किया जाता रहा। वे लम्बे अरसे से खुद को उपेक्षित महसूस कर रहे थे। वे कहते हैं कि कि बार-बार प्रदेश नेतृत्व ,प्रदेश भाजपा प्रभारी और केंद्रीय नेतृत्व को अवगत कराने के बाद भी कोई सकारात्मक निराकरण नहीं किया गया इसी कारण आज उन्हें इतना बड़ा कदम उठाना पड़ रहा है।
नंद कुमार साय के कांग्रेस प्रवेश के साथ संदर्भ में गौरतलब है कि आदिवासियों की नाराजी के चलते ही 2018 में प्रदेश की तमाम आदिवासी सीटों पर भाजपा को बुरी तरह हार का मुंह देखना पड़ा था। इसके पश्चात भी इन चार वर्षों के दरम्यान हुए उपचुनावों में भी भाजपा कोई उपलब्धि हासिल नहीं कर सकी। हालात ये हैं कि एक ओर बस्तर में भाजपा लगातार अपना जनाधार खोती ही जा रही है वहीं अब जशपुर क्षेत्र के प्रमुख आदिवासी नेता माने जाने वाले नंद कुमार साय ने इस्तीफा देकर भाजपा की मुश्किलें और बढ़ा दी हैं।
इधर विगत कुछ अरसे से भाजपा हिन्दू मुस्लिम के साथ ही बस्तर में आदिवासियों के डी क्लास को लेकर भी मुद्दा बनाने की कोशिश में लगी हुई है। दूसरी ओर आदिवासी सर्व समाज जिसमें नंद कुमार साय की विशेष भूमिका होती रही है, पूरे आदिवासियों के लिए हिन्दू धर्म से अलग , जैन सिख की तरह, स्वतंत्र धर्म कोड की मांग को लेकर आंदोलन कर रहा है। हाल ही में इसी मांग को लेकर संयुक्त आदिवासी समाज द्वारा दिल्ली में प्रदर्शन किया गया और अपनी मांग रखी गई।
नंद कुमार साय आदिवासियों के हित के लिए इस आंदोलन में शामिल होते रहे। भाजपा हिन्दुत्ववादी नीतियों के चलते इस आंदोलन के प्रति शुरु से ही असमंजस में रही और खुलकर समर्थन में सामने नहीं आ सकी। भाजपा के रुख से नंदकुमार साय को काफी निराशा हुई और कहा जाता है कि आदिवासी एकता के नाम पर इसी दौरान उन्हें घेरने की कोशिशें भी तेज हुई।
छत्तीसगढ़ के आगामी विधान सभा चुनाव में बमुश्किल 6 माह का समय ही रह गया है और बड़े आदिवासी नेता नंद कुमार साय का कांग्रेस में शामिल हो गए हैं। नंद कुमार साय का भाजपा से इस्तीफा कोई छोटी मोटी मामूली घटना नहीं है । माना जा रहा है कि नंद कुमार साय के इस्तीफे और कांग्रेस प्रवेश के बाद छत्तीसगढ़ भाजपा में अब आगे भगदड़ तेज होगी। कई आदिवासी नेता भाजपा की नीति और आदिवासियों के प्रति अपनाए जा रहे रवैये से परेशान हैं ।संभव है चुनाव के पूर्व कुछ और दिग्गज भाजपा छोड़कर कांग्रेस में शामिल हों।
यहां इस बात पर भी गौर किया जाना जरूरी है कि हाल ही में कर्नाटक चुनाव के दौरान सत्तारूढ़ भाजपा के पूर्व मुख्य मंत्री और उप मुख्य मंत्री भाजपा से इस्तीफा देकर कांग्रेस में शामिल हो गए थे। तो क्या भाजपा से मोह भंग का सिलसिला शुरु हो गया है। यह विचारणीय प्रश्न है। भाजपा संगठन के केंद्रीय नेतृत्व को इस पर चिंतन मंथन करना होगा। बहरहाल छत्तीसगढ़ में यह देखना दिलचस्प होगा कि भूपेश बघेल का यह दांव क्या आगामी चुनाव में मास्टर सट्रोक साबित होगा ?