
एन.के. सिंह
2025 का वर्ल्ड प्रेस फोटो अवार्ड 9 वर्षीय फिलिस्तीनी बच्चे महमूद आजौर की दिल दहला देने वाली तस्वीर को दिया गया, जिसने इज़रायली हमले में अपने दोनों हाथ खो दिए थे। वरिष्ठ पत्रकार एनके सिंह ने उस घटना को व्यापक संदर्भ में देखा हैः
इस साल का “वर्ल्ड प्रेस फोटो अवार्ड ऑफ़ द इयर” एक नौ साल (अब दस साल) के फिलस्तीनी बच्चे महमूद आजौर के उस फोटो को मिला है जिसमें इज़रायली हमले में उसने अपने दोनों हाथ गंवा दिए थे. भारत के एक अंग्रेजी अखबार में इस फोटो के ठीक बगल में एक और खबर और फोटो थी जिसमें रुसी राष्ट्रपति पुतिन हमास का आभार व्यक्त कर रहे हैं कि उसने रुसी बंधकों को रिहा कर दिया. फोटो में पुतिन एक रिहा देशवासी से गर्मजोशी से “हाथ” मिला रहे हैं. जिस दिन अवार्ड देने वाली डच संस्था न्यूयार्क टाइम्स की फोटोग्राफर समर अबू अलौफ की इस फोटो को वर्ष का सर्वश्रेष्ठ फोटो घोषित कर रही थी उसके एक दिन पहले इ़ज़रायल ने गज़ा पर फिर हमला कर 22 लोगों को मारा जिसमें एक साल की एक बच्ची थी जिसने मां के हाथ में दम तोड़ दिया.
उसकी नीली फ्रॉक और सफ़ेद पजामा सूर्ख लाल हो चुके थे. मां और बच्ची को एक साथ दफ़न किया गया. फिलस्तीनियों पर अमेरिका-समर्थित इज़रायल के हमले डेढ़ साल से जारी हैं. इस ताज़ा हमले में “घायल मां के हाथ में दम तोड़ती बच्ची” यह फोटो भी दुनिया के अख़बारों में छापा. मुमकिन है अगला अवार्ड इस फोटो को मिले. लेकिन कोई फर्क नहीं पड़ता क्योंकि उसी दिन खबर आयी कि इज़रायल ने अस्पताल पर अपने हमले में चुन-चुन कर फिलस्तीनी डॉक्टर्स को गोली मारी और वह भी पोस्टमार्टम के अनुसार सीधे सिर में.
लेकिन ठहरिये!! अभी यह दास्ताँ ख़त्म नहीं हुई है. इन सबसे बेखबर या ज्यादा हीं बाखबर अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रम्प इसी ग़ज़ा पट्टी को दुनिया का सबसे बेहतरीन सी रिसोर्ट बनायेंगें और इज़रायल उन्हें यह “जीती हुई” जमीन “उपहार” में देगा.
चौंकिए नहीं!! आगे आपको अपने पर तरस आयेगा कि हम सब इसी दुनिया में रह रहे हैं. इसी दिन की अगली खबर है पोप ने उन डॉक्टर्स को धन्यवाद दिया है जिन्होंने बकौल उनके उनकी जान बचाई. याने दुनिया में शांति का सन्देश देने वाले प्रभु जीसस के इन सबसे बड़े पवित्र नुमाइंदे को भी अपनी जान की अमानत के लिए डॉक्टर्स का सहारा लेना पड़ता है वहीँ ग़ज़ा के डॉक्टर्स जिन्हें यहूदी इज़रायली सेना मुस्लिम फिलस्तीनियों की जीवन रक्षा करने के जुर्म में सिर में गोली मारती है. और जो गोली चलती है वह उस अमेरिका की होती है जो प्रभु जीसस को मानता है.
उसी अमेरिका के नए शासक ट्रम्प यूनिवर्सिटीज में फिलस्तीनियों पर हो रहे जुल्म और इज़रायल के अमानवीय हमलों के खिलाफ आवाज उठाने वालों को छात्रों और अध्यापकों को देश से निकाल रहे हैं क्योंकि प्रभु जीसस के नाम पर शपथ के साथ हीं उसने “अमेरिका को फिर महान बनाने” (मागा) का वादा किया है और अमेरिकी जनता ने उन्हें सपोर्ट किया है. प्रभु जीसस कॉमन फैक्टर हैं अमेरिकी जनता, ट्रम्प और पोप के बीच लेकिन न तो पोप ने प्रभु का शांति का सन्देश इन दोनों को बताया, ना हीं पोप ने तन कर खड़े हो कर अमेरिका से हथियार न देने को कहा ना हीं डॉक्टर्स को गोली मारने वाले इज़रायल की निंदा की.
पोप को बचाने वाले डॉक्टर्स तो आभार (पोप तो आशीष देते हैं) के पात्र थे लेकिन फिलस्तीनियों की जीवन रक्षा में लगे डॉक्टर्स की यही नियति थी. हाँ आगे अगर सब कुछ ठीक रहा तो इन फिलस्तीनियों को जबरिया उस इलाके से मार-मार कर निकाल के ग़ज़ा पट्टी से सटे मेडिटेरेनियन समुद्र में ट्रम्प शांति की जगह “मौज-मस्ती” के प्रतीक रिसोर्ट को अपने बन्दों के लिए खोल देंगे.
क्या हो गया है इस दुनिया को? कोई कुछ बोल नहीं रहा है, कोई तन के खड़ा नहीं हो रहा है. ज्यादातर आबादी एक जड़ता की शिकार है जिसमें दोनों हाथों से महरूम बच्चा किस धर्म का है यह देख कर प्रतिक्रिया दी जा रही है. बांग्लादेश में हिन्दुओं पर अत्याचार पर किसी भी मौलवी को अल्लाह के शांति सन्देश की याद नहीं आयी.
फिर किसी अखलाक, पहलू खान, तवरेज और जुनैद को मारने वालों को क्यों समझ में नहीं आ रहा है कि यह लड़ाई धर्म के नाम पर नहीं धर्म के ठेकदारों से और और उन ठेकेदारों के जरिये उन्माद उभर कर सत्ता हासिल करने वालों से लड़नी है. उनसे, जिन्होंने हमारे बच्चों को दशकों से कुपोषित रखा (बढ़ता आईएमआर, जन्म के समय घटा वजन और नाटापन इसके इंडीकेटर्स हैं) ताकि किसी बड़े बाप के “वजनदार” बच्चे के विवाह में भी करोड़ों बहाए जा सकें.
न पोप बोल रहे हैं, न मुल्ला और ना हीं “वसुधैव कुटुम्बकम” की दुहाई दे कर मुसलमानों के घरों में गौमांस तलाशते हिन्दू धर्म के तथाकथित “रक्षक”. शायद यही नियति है – दोनों हाथ से वंचित किशोर ताउम्र रेंग कर चलने को मजबूर होगा लेकिन कोई पुतिन हाथ मिला कर ख़ुशी का इजहार करेगा और किसी हमास को धन्यवाद देगा और एक साल की बच्ची दुनिया समझने के पहले धर्मयुद्ध की मोहर वाली गोली से छलनी होगी अपनी मां की तथाकथित सबसे सुरक्षित गोद में और मां उसे बचाने में दुनिया को अलविदा कह चुकी होगी.
पोप अपनी जान बचने वाले डॉक्टर्स को तो धन्यवाद देंगें लेकिन फिलस्तीन के अस्पतालों में घायलों को बचाने वाले डॉक्टर्स एक खास धर्म का होने की कारण मारे जायेंगे. पोप के डॉक्टर और फिलस्तीनी डॉक्टर में यह फर्क बना रहेगा क्यों धर्म बौद्धिकता पर भारी पड़ता रहेगा.
(एन.के. सिंह
एनके सिंह वरिष्ठ पत्रकार हैं और ब्रॉडकास्ट एडिटर्स एसोसिएशन के पूर्व महासचिव हैं।) सत्य हिंदी से साभार