ऐसा वक्त आता है जब खामोशी गद्दारी बन जाती है… इतिहास इस बात को दर्ज करेगा कि सामाजिक संक्रमण के इस दौर में सबसे बड़ी त्रासदी यह नहीं थी कि बुरे लोगों की आवाज़ बुलन्द थी बल्कि यह कि अच्छे लोग पूरी तौर पर मौन थे। वक्त की यह मांग है कि हम कमजोरों, बेजुबानों […]
Read Moreप्रदीप सिंह बंगाल में चुनावी जंग जीतने के लिए आरोप-प्रत्यारोप का दौर चल रहा है। और इस अखाड़े में स्वतंत्रता सेनानी और बंगाल में जन्में महापुरुषों को भी उतार दिया गया है। और उनके नाम और मान-अपमान को लेकर खींचतान तेज़ है। बंगाल विधानसभा चुनाव होने में अभी समय है। लेकिन केंद्र में सत्तारूढ़ बीजेपी […]
Read Moreहरजिंदर 2014 वह साल था जब इकाॅनमिस्ट ने यह मान लिया था कि भारत पूर्ण लोकतंत्र होने के काफ़ी क़रीब पहुँच गया है। यही वह साल था जब भारत में बड़ा सत्ता परिवर्तन हुआ और नरेंद्र मोदी की सरकार बनी। 2014 के बाद से भारत के अंक गिरने शुरू हो गए। 2019 में वे सात […]
Read MoreSri Ram Pandeya A union minister tweeted the following a few days back: “Playing 109 balls to score 7! That is atrocious, to say the least. Hanuma Bihari has not only killed any Chance for India to achieve a historic win but has also murdered Cricket.. not keeping win an option, even if remotely, is […]
Read Moreउत्तर प्रदेश का सियासी माहौल इन दिनों बेहद गर्म है। प्रियंका आज सहारनपुर के अलावा आगे भी पश्चिमी उत्तर प्रदेश में होने वाली कांग्रेस की इन किसान महापंचायतों में शामिल हो सकती हैं। निश्चित रूप से कृषि क़ानूनों के ख़िलाफ़ जिस तरह का माहौल पश्चिमी उत्तर प्रदेश में बन रहा है, उससे इस इलाक़े में […]
Read Moreआधी सदी पहले सुदामा पांडेय यानी धूमिल ने ‘पटकथा’ नाम की वह कविता लिखी थी जिसने तार-तार होते हिंदुस्तान को इस तरह देखा जैसे पहले किसी ने नहीं देखा था इन दिनों अराजकता, लोकतंत्र, उम्मीद और क्रांति जैसे ढेर सारे शब्द सुनने को मिलते रहते हैं. राजनीति की इस नई हलचल के बीच हिंदी के […]
Read Moreदीपक के मंडल बैंक कॉरपोरेट कंपनियों की ओर से लोन का हजारों करोड़ डकार लिए जाने के बावजूद बगैर आह किए इसे बट्टे खाते में डाल दे रहे हैं। लेकिन आपको निगेटिव इंटरेस्ट दे रहे हैं। यह तो वैसा ही हुआ, जैसे आपने किसी को क़र्ज़ दिया और उसने आपका पैसा हड़प लिया। दो जनवरी […]
Read Moreडॉ. अजय कुमार देश की कुछ मशहूर हस्तियों और खेल सितारों को अगर ‘आंतरिक मामले’ और ‘अंतरराष्ट्रीय शर्मिंदगी’ के बीच के बुनियादी अंतर को समझने की अच्छी क्षमता होती तो उनका स्टैंड इन कृषि क़ानूनों के ख़िलाफ़ कुछ और होता और वे आंतरिक मामले की आड़ में विश्व भर में उठ रही लोकतंत्र समर्थक आवाज़ों […]
Read Moreजयंत भट्टाचार्य “अगर सरकार के सामने कोई मजबूरी है तो मैं उसे समझ सकता हूं। लेकिन इसके लिए हमें एक साथ बैठने और उस मजबूरी पर चर्चा करने की जरूरत है।” दिल्ली ने ऐसा किसान आंदोलन इससे पहले अक्टूबर 1988 में देखा था। उसका नेतृत्व महेंद्र सिंह टिकैत कर रहे थे। विजय चौक से लेकर […]
Read Moreअनिल जैन उत्तराखंड समेत समूचे हिमालयी क्षेत्र में बरसात के मौसम में तो बादल फटने, ग्लेशियर टूटने, बाढ़ आने, ज़मीन दरकने और भूकंप के झटकों की वजह से जान-माल की तबाही होती ही रहती है। ऐसी आपदाओं का कहर कभी उत्तराखंड, कश्मीर और हिमाचल प्रदेश तो कभी पूर्वोत्तर के राज्य अक्सर झेलते रहते हैं। लेकिन यह […]
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