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Year: 2021

क्या इस देश के लोकतंत्र को अल्जाइमर रोग हो गया है?

आशुतोष कुमार सिंह राष्ट्र और इंसान की जीवन अवधि अमूमन अलग-अलग होती है। बावजूद इसके आज़ादी के 75 वर्ष के पास पहुँचे भारत राष्ट्र में अल्जाइमर रोग के लक्षण दिखने शुरू हो गए हैं जो 75 वर्ष के इंसान में भी नहीं दिखता। उम्र से पहले बूढ़े होते भारतीय राष्ट्र में दिखते इस जनतांत्रिक रोग…

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इस बार हापुस आम पर भी कोरोना की मार! उत्पादक किसानों को भारी नुक़सान

शिरीष खरे पहले मौसम की मार और अब कोरोना संक्रमण पर नियंत्रण रखने की कोशिशों के चलते निर्यात प्रभावित होने से हापुस उत्पादक किसानों को इस साल काफी नुक़सान उठाना पड़ रहा है।कोंकण के हापुस आमों की सबसे पहले बाजारों में आवक होती है और यहां के इन आमों की सबसे अधिक मांग सिंगापुर, मलेशिया…

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बातचीत कैसे हो सफल जब ‘दबाव’ झटक चुका है चीन?

प्रेम कुमार भारत-चीन के बीच 11वें दौर की बातचीत कोर कमांडर स्तर पर 10 अप्रैल को खत्म हुई। द्विपक्षीय बातचीत को कभी बेनतीजा कहना सही नहीं होता क्योंकि बातचीत का जारी रहना भी फलदायी होता है। मगर, फरवरी महीने में दोनों देशों की सेनाओं को पीछे हटाने की जो ‘उपलब्धि’ हासिल की गयी थी उससे…

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ऐतिहासिक ख़ुदाबख़्श खां लाइब्रेरी को तोड़ने के फ़ैसले के ख़िलाफ़ बढ़ता विरोध!

अनिल अंशुमन इस पुस्तकालय में अरबी, फ़ारसी व अंग्रेजी की 21 हज़ार से भी अधिक दुर्लभ प्राच्य पांडुलिपियाँ और 25 लाख से भी अधिक मुद्रित पुस्तकों का अद्भुत संग्रह मौजूद हैं।   “वर्षों पूर्व अपने समय के चर्चित अध्ययन व ज्ञान–संस्कृति के केंद्र नालंदा विश्वविद्यालय में रखी ऐतिहासिक धरोहर पुस्तकों–पांडुलिपियों को सत्ता साजिश के तहत आग…

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‘अन्ना आंदोलन’ के जनतंत्र विरोधी नुस्खे से ही आज बन रहे क़ानून! – अपूर्वानंद

मुझे करण थापर की अरविन्द केजरीवाल और प्रशांत भूषण के साथ एक चर्चा याद है। इस चर्चा में दोनों ही काफ़ी यक़ीन के साथ और उसमें अहंकार कम न था, कह रहे थे कि संसद सिर्फ़ 5 मिनट में उनके प्रस्ताव को क़ानून का दर्जा दे सकती है, बहस-मुबाहसे में वक़्त क्यों जाया करना! उनका…

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ममता बैनर्जी का संयुक्त मोर्चा गठन का आव्हान भाजपा के विकल्प के लिए कितना असरकारी होगा – राम पुनियानी

पश्चिम बंगाल में विधानसभा चुनाव चल रहे हैं. सत्ताधारी तृणमूल कांग्रेस और भाजपा के बीच कड़ा मुकाबला है. भाजपा ने इन चुनावों में अपना सब कुछ दांव पर लगा दिया है. उसके अनुषांगिक संगठन तो चुनाव प्रचार में जुटे ही हैं, ऐसे संगठन और व्यक्ति जो भाजपा की विचारधारा से इत्तिफाक रखते हैं भी अपना…

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महामारी की दूसरी लहर को संभालो, जनता के स्वास्थ्य और आजीविकाओं को बचाओ!

प्रकाश करात 2021-22 के बजट में स्वास्थ्य के क्षेत्र में 137 फीसद बढ़ोतरी का बहुत लंबा-चौड़ा दावा किया गया है। जबकि वास्तव में 2021-22 के बजट में स्वास्थ्य तथा परिवार कल्याण विभाग के लिए बजट प्रावधान में, 2020-21 के वास्तविक खर्च के मुकाबले, 9.6 फीसद की कटौती ही हुई है। कोविड-19 के संक्रमणों की दूसरी…

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देश को पुलिस स्टेट में बदल रहा है सत्ता और पुलिस का गठजोड़

अनिल जैन आज से क़रीब छह दशक पहले इलाहाबाद हाई कोर्ट के ही न्यायाधीश आनंद नारायण ने अपने एक फ़ैसले में लिखा था कि भारतीय पुलिस अपराधियों का एक संगठित गिरोह है। उत्तर प्रदेश में तमाम तरह के संगीन अपराधों में लगातार हो रही बढ़ोतरी के बावजूद सूबे के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ अक्सर दावा करते…

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पंचायत चुनाव : क्यों वीभत्स हो गयी है पूरी व्यवस्था!

रविकान्त पंचायती राज व्यवस्था को राजनीति के विकेंद्रीकरण के लिए ज़रूरी माना गया। लेकिन पंचायत चुनाव के कारण गाँवों में गुटबंदी बढ़ी है। प्रतिद्वंद्वी और उसके समर्थकों पर हमले चुनाव और उसके बाद भी होते रहते हैं। गाँवों में वैमनस्यता बढ़ी है। चुनाव में शराब के कारण लड़ाई झगड़े भी बढ़ जाते हैं… देश के…

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दिल्ली विधेयकः चुनी हुई सरकार को नियंत्रित करने केंद्र की कोशिश में दम तोड़ता लोकतंत्र

दिनेळ द्विवेदी हर विधायिका के पास ख़ुद को नियंत्रित करने की शक्ति होती है, लेकिन दिल्ली में इस शक्ति का दमन लेफ़्टिनेंट गवर्नर की सहूलियत के लिए किया जा रहा है। एक पूर्ण केंद्रीयकृत सरकार में लोकतांत्रिक प्रतिगमन लगातार बढ़ता हुआ दिखाई देता है। हम सत्ता द्वारा असहमति के लिए बढ़ती असहिष्णुता के गवाह बन…

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