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Year: 2021

संयुक्त किसान मोर्चाः इस महीने होने वाली किसान महापंचायतों की लिस्ट जारी

संयुक्त किसान मोर्चा ने एक प्रेस विज्ञप्ति जारी कर प्रधानमंत्री के किसान विरोधी बयानों की निंदा की है। प्रधानमंत्री ने यह कहते हुए कि बिना मांग के इस देश में बहुत कानून बनाये गए हैं, साबित कर दिया है कि ये कानून किसानों की मांग नहीं रही है। किसानों की मांग कर्जा मुक्ति – पूरा…

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ग्यारह साल बाद शाहिद आज़मी की याद – सुभाष गाताडे

ऐसा वक्त आता है जब खामोशी गद्दारी बन जाती है… इतिहास इस बात को दर्ज करेगा कि सामाजिक संक्रमण के इस दौर में सबसे बड़ी त्रासदी यह नहीं थी कि बुरे लोगों की आवाज़ बुलन्द थी बल्कि यह कि अच्छे लोग पूरी तौर पर मौन थे। वक्त की यह मांग है कि हम कमजोरों, बेजुबानों…

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गांधी के ‘गुरुदेव’ और टैगोर के ‘महात्मा’

प्रदीप सिंह बंगाल में चुनावी जंग जीतने के लिए आरोप-प्रत्यारोप का दौर चल रहा है। और इस अखाड़े में स्वतंत्रता सेनानी और बंगाल में जन्में महापुरुषों को भी उतार दिया गया है। और उनके नाम और मान-अपमान को लेकर खींचतान तेज़ है। बंगाल विधानसभा चुनाव होने में अभी समय है। लेकिन केंद्र में सत्तारूढ़ बीजेपी…

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2014 के बाद से लोकतंत्र के सूचकांक पर लुढ़कता भारत

हरजिंदर 2014 वह साल था जब इकाॅनमिस्ट ने यह मान लिया था कि भारत पूर्ण लोकतंत्र होने के काफ़ी क़रीब पहुँच गया है। यही वह साल था जब भारत में बड़ा सत्ता परिवर्तन हुआ और नरेंद्र मोदी की सरकार बनी। 2014 के बाद से भारत के अंक गिरने शुरू हो गए। 2019 में वे सात…

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You don’t Know Anything About That Other ‘Religion’, Mr Minister!

Sri Ram Pandeya A union minister tweeted the following a few days back: “Playing 109 balls to score 7! That is atrocious, to say the least. Hanuma Bihari has not only killed any Chance for India to achieve a historic win but has also murdered Cricket.. not keeping win an option, even if remotely, is…

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किसान पंचायतों के जरिये कांग्रेस में जान फूंकने जुटीं प्रियंका

उत्तर प्रदेश का सियासी माहौल इन दिनों बेहद गर्म है।  प्रियंका आज सहारनपुर के अलावा आगे भी  पश्चिमी उत्तर प्रदेश में होने वाली कांग्रेस की इन किसान महापंचायतों में शामिल हो सकती हैं। निश्चित रूप से कृषि क़ानूनों के ख़िलाफ़ जिस तरह का माहौल पश्चिमी उत्तर प्रदेश में बन रहा है, उससे इस इलाक़े में…

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धूमिल की यह कविता अभी ठीक से पढ़ी जानी बाकी है – प्रियदर्शन

आधी सदी पहले सुदामा पांडेय यानी धूमिल ने ‘पटकथा’ नाम की वह कविता लिखी थी जिसने तार-तार होते हिंदुस्तान को इस तरह देखा जैसे पहले किसी ने नहीं देखा था इन दिनों अराजकता, लोकतंत्र, उम्मीद और क्रांति जैसे ढेर सारे शब्द सुनने को मिलते रहते हैं. राजनीति की इस नई हलचल के बीच हिंदी के…

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आरबीआई! टॉप डिफॉल्टरों का 62 हज़ार करोड़ का क़र्ज़ा बट्टे खाते में डालने का सबब क्या है?

दीपक के मंडल बैंक कॉरपोरेट कंपनियों की ओर से लोन का हजारों करोड़ डकार लिए जाने के बावजूद बगैर आह किए इसे बट्टे खाते में डाल दे रहे हैं। लेकिन आपको निगेटिव इंटरेस्ट दे रहे हैं। यह तो वैसा ही हुआ, जैसे आपने किसी को क़र्ज़ दिया और उसने आपका पैसा हड़प लिया। दो जनवरी…

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एक आंतरिक मामला या एक अंतरराष्ट्रीय शर्मिंदगी?

डॉ. अजय कुमार देश की कुछ मशहूर हस्तियों और खेल सितारों को अगर ‘आंतरिक मामले’ और ‘अंतरराष्ट्रीय शर्मिंदगी’ के बीच के बुनियादी अंतर को समझने की अच्छी क्षमता होती तो उनका स्टैंड इन कृषि क़ानूनों के ख़िलाफ़ कुछ और होता और वे आंतरिक मामले की आड़ में विश्व भर में उठ रही लोकतंत्र समर्थक आवाज़ों…

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इंटरव्यू- राकेश टिकैत: “कहीं कोई मतभेद नहीं, हमें कोई तोड़ नहीं सकता”

जयंत भट्टाचार्य  “अगर सरकार के सामने कोई मजबूरी है तो मैं उसे समझ सकता हूं। लेकिन इसके लिए हमें एक साथ बैठने और उस मजबूरी पर चर्चा करने की जरूरत है।” दिल्ली ने ऐसा किसान आंदोलन इससे पहले अक्टूबर 1988 में देखा था। उसका नेतृत्व महेंद्र सिंह टिकैत कर रहे थे। विजय चौक से लेकर…

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