‘पाताल लोक’: ‘जिसे हमने मुसलमान नहीं बनने दिया, उसे आप लोगों ने जिहादी बना दिया’

अमिताभ

वेब सीरीज ‘पाताल लोक’ में इंस्पेक्टर हाथीराम चौधरी और उनके जूनियर इमरान अंसारी ने शानदार अभिनय किया है। ‘पाताल लोक’ में हम अल्पसंख्यकों के मसले पर समाज की सोच की परतें भी उघड़ती देखते हैं कि कैसे एक व्यक्ति पर टिप्पणी करते हुए पूरे समुदाय को निशाना बनाया जाता है। इसमें मुसलमानों पर हमले की घटनाएं भी हैं, जो दरअसल आजकल समाज में मुसलिम समुदाय के प्रति बढ़ रही नफ़रत और हिंसा की ही झलक हैं।

वेब सीरीज ‘पाताल लोक’ के इंस्पेक्टर हाथीराम चौधरी की सब तरफ ख़ूब तारीफ़ हो रही है लेकिन हम यह न भूलें कि हाथीराम की दास्तान इमरान अंसारी के ज़िक्र के बिना अधूरी है। ‘पाताल लोक’ की चुस्त पटकथा की एक बड़ी ख़ूबी दो अलग-अलग धर्मों, माहौल और मिज़ाज के पुलिस वालों हाथीराम चौधरी और इमरान अंसारी के किरदारों के रिश्ते का बहुत खूबसूरत ट्रैक भी है। कुछ-कुछ अमिताभ बच्चन-धर्मेंद्र या अमिताभ बच्चन-शशि कपूर की बड़े परदे वाली जोड़ियों की याद दिलाता हुआ। 

सीनियर-जूनियर की दफ़्तरी औपचारिकता से शुरू होकर बड़े-छोटे भाई जैसी आत्मीयता और फिर दोस्ती तक दोनों के बीच की कैमिस्ट्री बहुत अच्छी तरह से कहानी का ग्राफ़ लगातार ऊपर ले जाती है। हाथीराम की भूमिका में जयदीप अहलावत का काम बहुत शानदार है और उन्हें इसमें बेहतरीन साथ मिला है, इमरान अंसारी के किरदार में इश्वाक सिंह का। 

बेतहाशा गाली-गलौज करने वाले सख़्त मिज़ाज हाथीराम का एकदम उल्टा है नफ़ीस, शालीन और नर्म इमरान, जो ऊँची आवाज़ में बोलते तक नहीं दिखता। 

यूपीएससी इम्तिहान पास करके आईएएस या आईपीएस बनने की तैयारी में लगे इमरान अंसारी और मामूली शैक्षिक योग्यता वाले हाथीराम चौधरी का सतह पर कोई मेल नहीं है लेकिन दोनों फ़र्ज़, कानून, ईमानदारी और जुनून के मामले में एक जैसे हैं।

इमरान की मौजूदगी में पूछताछ के दौरान हाथीराम चौधरी एक मुसलमान अभियुक्त के लिए एक ऐसा शब्द इस्तेमाल करता है जो हमारे समाज में पूरे मुसलिम समुदाय के प्रति हिक़ारत दर्शाने के लिए इस्तेमाल होता है। यह शब्द बोलते ही हाथीराम को यह अहसास होता है कि उसने कुछ ग़लत बोल दिया। इमरान के चेहरे के हावभाव बहुत महीन ढंग से उसका असहज होना दिखाते हैं लेकिन वह कोई मुखर प्रतिक्रिया नहीं देता। हाथीराम गलियारे में आकर लगभग माफ़ी वाले अंदाज़ में इमरान से कहता है कि ज़्यादा हो गया। लेकिन इमरान सिर्फ़ इतना कहता है – It works। 

यानि उसे यह अहसास है कि पूछताछ के दौरान इस तरह के हथकंडे अपनाना आम बात है और यह कारगर साबित होता है। 

हाथीराम के अंदर सीनियर वाला रौब भी है लेकिन इमरान को लेकर मन में स्नेह भी है। हाथीराम का बेटा अपने अभिजातीय अंग्रेजी स्कूल में पिस्तौल लहराने के जुर्म में निकाला जाने वाला है। प्रिंसिपल उसे बुलाती है। हाथीराम का हाथ अंग्रेजी में तंग है। वह प्रिंसिपल से ठीक से बात भी नहीं कर पाता। तब अंसारी अपनी नफीस अंग्रेजी से प्रिंसिपल को प्रभावित करके हाथीराम के बच्चे को बचा लेता है। उस वक्त हाथीराम की लाचारी, राहत और कृतज्ञता के मिले-जुले भाव को जयदीप अहलावत ने बहुत अच्छे तरीके से अभिव्यक्त किया है।  

जहाँ यह सीरीज़ ख़त्म होती है, वहां पर हम देखते हैं कि हाथीराम यूपीएससी के इंटरव्यू के लिए इमरान को पुलिस की गाड़ी में लिफ़्ट देता है ताकि उसे देर न हो। हाथीराम का यह कहना कि ‘ मैं न बन सका न सही, कम से कम दोस्त तो बड़ा अफ़सर बने’ बहुत मार्मिकता लिए हुए है। इस संवाद में अपनी नाकामी की उदासी भी है और एक युवा साथी के बेहतर भविष्य की शुभकामना भी। 

समाज की सोच का सामने आना 

‘पाताल लोक’ में हम अल्पसंख्यकों के मसले पर समाज की सोच की परतें भी उघड़ती देखते हैं कि कैसे एक व्यक्ति पर टिप्पणी करते हुए पूरे समुदाय को निशाना बनाया जाता है। इमरान एक केस के एक संदिग्ध ताहिर को पकड़ने में नाकाम रहता है तो उसके थाने का एक हिंदू पुलिस वाला कहता है, ‘एक मुसलमान को दूसरे मुसलमान को पकड़ने भेजोगे तो यही होगा।’

सीबीआई की एक अफ़सर इमरान के आईएएस बनने की बात पर कहती है – आजकल इनकी कम्युनिटी से काफी आ रहे हैं। इमरान अंसारी के आईएएस के इंटरव्यू की तैयारी के सिलसिले में अल्पसंख्यकों की स्थिति से जुड़े सवाल पर उसका प्रशिक्षक कहता है – पाॅलिटिकली लोडेड सवाल के जवाब में पाॅज़िटिव, प्रोग्रेसिव रहना ज़रूरी है। 

सीरीज़ में ‘बड़े’ के गोश्त के शक में भीड़ के हाथों पीट-पीट कर मार डालने और जेल में मुसलमान अभियुक्त को ‘पाकिस्तानी’ कह कर उस पर एक दूसरे क़ैदी के हमले की उपकथाएं भी हैं, जो दरअसल आजकल समाज में मुसलिम समुदाय के प्रति बढ़ रही नफ़रत और हिंसा की ही झलक हैं।
सबसे मार्मिक टिप्पणी लेकिन एक अभियुक्त कबीर के पिता के माध्यम से आती है जब वह हाथीराम और इमरान से कहता है – “जिसे मैंने मुसलमान तक नहीं बनने दिया, उसे आप लोगों ने जिहादी बना दिया?”

(अमिताभ श्रीवास्तव वरिष्ठ पत्रकार हैं। ये उनके निजि विचार हैं। ) सौ सत्यहिन्दी

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