‘पंचायत’: साफ सुथरी मनोरंजक वेब सीरीज़

अबीर

दीपक कुमार मिश्र के सशक्त निर्देशन और रघुवीर यादव, नीना गुप्ता, जितेंद्र कुमार जैसे अभिनेताओं की दमदार एक्टिंग से सजी वेब सीरीज पंचायत दर्शकों को काफी पसंद आई।  गुंडा गर्दी, मारपीट और फोकट के एक्शन से अगर आप ऊब गए हैं तो आपको ‘पंचायत’ पसंद आ सकती है। हल्की फुल्की कहानी और साफ सुधरे दृश्य कोरोना के माहलौ में सुकून देते हैं। दीपक कुमार मिश्र का सशक्त निर्देशन और शानदार एक्टिंग इस वेब सीरीज में दर्शकों को मोह लेता है। ‘इससे पहले हम सोनी पर ‘परमामेंट रूममेट’ देख चुके हैं। यही डायरेक्टर इस बार ‘पंचायत’ जैसी वेब सीरीज दर्शकों के लिए लेकर आए हैं।

पंचायत वेब सीरीज में उत्तर प्रदेश के बलिया जिले के फुलेरा ग्राम पंचायत की कहानी दर्शाई गई है। अभिषेक त्रिपाठी (जितेंद्र कुमार) पंचायत ऑफिस में सचिव पद पर भर्ती होकर नए नए हैं। शहर का पढ़ा लिखा लड़का जिसका एमबीए करने का ख्वाब है, वह गांव की छुट पुट किस्सों और समस्याओं में फंस जाता है। वह हैरान रह जाता है कि गांव में आज भी कैसी कैसी समयस्याओं का सामना किया जाता है। वेब सीरीज का मूल अंश है गांव की प्रधान, यानी मंजू देवी की कहानी। जिन्होंने पंचायत का चुनाव तो लड़ा लेकिन प्रधान वो नहीं उनके प्रधान पति ब्रृजभूषण दूबे (रघुबीर यादव) हैं। आधिकारिक तौर पर नहीं लेकिन गांव के लिए प्रधान ब्रृजभूषण ही हैं। वह ऑफिस से लेकर गांव के सभी कार्यों में हिस्सा लेता है। उनकी पत्नी मंजू देवी घर का चूल्हा चौका से लेकर तमाम घर के काम करती हैं लेकिन प्रधानगिरी से उन्हें कोई लेना देना नहीं है। ऐसे ही गांव में सचिव के पद पर बड़ी बड़ी आकाक्षाएं लेकर अभिषेक त्रिपाठी जी आए हैं। अभिषेक का गांव में और गांव के कामों में मन नहीं लगता, वह छोटी छोटी चीज़ों पर खूब खींज जाता है लेकिन गांव के समस्याओं को न चाहते हुए भी छोटी सी राह दिखा ही देता है। लेकिन अंत में कई सीख के साथ वेब सीरीज का अंत होता है। अंत में बड़ा ही प्यारा सीन दिखाया गया है कि कैसे अभिषेक को पानी की ऊंची टंकी पर चढ़ इस गांव से प्यार हो जाता है।

‘पंचायत’ वेब सीरीज की तमाम खासियत में से एक ये है कि ये हमें निराश नहीं करती। हल्की फुल्की कहानी और साफ सुधरे दृश्य आपको बोर नहीं होने देंगे। युवाओं के बड़े बड़े सपने, गांव की समस्याएं खुले में शौच पति कैसे आज भी औरतों की जिंदगी व सामाजिक तौर पर प्रधान ही हैं मेहनत से डरकर सपनों को छोड़ न दें महिला जनप्रतिनिधियों को समाज ने वाकई अपनाया है? सपनों के बोझ तले बदे नहीं बल्कि उसका आनंद उठाए। गांव में आज भी बिजली बड़ी समस्या ऐसे तमाम बिंदुओं की सीख पंचायत जैसी खूबसूरत वेब सीरीज दर्शकों को देती है। 20-25 मिनट के छोटे छोटे एपिसोड बेहद हल्के और सुकून भरे हैं। जिनके हर एपिसोड में एक सीख छुपी है।

आजकल लगभग 55 फीसदी लोग ओवर द टॉप यानि ओटीटी प्लेटफॉर्म्स पर वीडियो देखना ज़्यादा पसंद कर रहे हैं। ऐसे प्लेटफॉर्म का भरपूर फायदा दीपक कुमार मिश्र जैसे डायरेक्टर ने उठाया है। दीपक कुमार मिश्र ने हर पात्र के साथ न्याय किया है। हर पात्र खुलकर अपने भावों को व्यक्त करने में सक्षम हुआ है। मज़ा तब आता है जब निर्देशक ने कॉमेडी के साथ साथ इमोशन के साथ विषय को दर्शाया है।

फिल्म का अहम पात्र अभिषेक त्रिपाठी है, पूरी फिल्म उनके इर्द गिर्द घूमती हैं। लेकिन फिल्म की पटकथा में कहीं न कहीं चूक रह जाती है। दरअसल अभिषेक त्रिपाठी को सिर्फ अपने ही काम में रूचि है, वह कही भी खुलकर नायक नहीं बनता दिखा, जबकि कुछ सीन में लगता है कि वह कुछ बड़ा करेगा और उसका कोई निर्णय होगा लेकिन ऐसा होता नहीं हैं। अभिषेक त्रिपाठी महत्वकांक्षी युवा है लेकिन वह गांव की समस्याओं पर काम नहीं करना चाहता। अंत में उसे इसी सीख से रूबरू होते दिखाया गया है।

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