वरिष्ठ कथाकार और अकार के संपादक प्रियंवद की दो विशेष किताबें आएंगी ।पुस्तक का नाम ‘भारतीय लोकतंत्र का कोरस: कुछ बिसरी बिखरी ध्वनियां’ होगा और यह वर्ष 2021 में प्रकाशित होगी. इस पुस्तक के दो खंड होंगे. पहला खंड 26 जनवरी, 1950 से लेकर 12 जून, 1975 तक की घटनाओं को समेटेगा और दूसरा खंड 12 जून, 1975 से लेकर 14 जनवरी, 1980 की तक घटनाओं को जगह देगा.
पेंगुइन रैंडम हाउस इंडिया के हिंदी इम्प्रिंट, हिंद पॉकेट बुक्स ने कथाकार प्रियंवद से उनकी नई किताब प्रकाशित करने का अनुबंध किया है. खास बात यह कि यह कथा पुस्तक न होकर आज़ादी के बाद के भारत की राजनीतिक यात्रा का एक सिंहावलोकन होगी. पुस्तक का नाम ‘भारतीय लोकतंत्र का कोरस: कुछ बिसरी बिखरी ध्वनियां’ होगा और यह वर्ष 2021 में प्रकाशित होगी. इस पुस्तक के दो खंड होंगे. पहला खंड 26 जनवरी, 1950 से लेकर 12 जून, 1975 तक की घटनाओं को समेटेगा और दूसरा खंड 12 जून, 1975 से लेकर 14 जनवरी, 1980 की तक घटनाओं को जगह देगा. पुस्तक के दूसरे खंड का प्रकाशन पहले खंड के बाद जल्द ही किया जाएगा. प्रियंवद की नई किताब उनकी पूर्ववर्ती दो रचनाओं भारत विभाजन की अंत:कथा और भारतीय राजनीति के दो आख्यान की कड़ी में एक तरह से अगला पड़ाव है.
उनकी पहले की भी दोनों पुस्तकें हिंद पॉकेट बुक्स से ही प्रकाशित हैं. इस नई पुस्तक में देश को गणतंत्र घोषित किए जाने से लेकर आपातकाल के बाद इंदिरा गांधी की सत्ता में पुनर्वापसी तक का विशद वर्णन होगा, साथ ही यह पुस्तक उस दौर की अहम राजनीतिक घटनाओं, उनकी पृष्ठभूमियों, अंत:क्रियाओं और उनके नतीजों का भी विश्लेषण करेगी. कई मायनों में यह किताब वर्तमान लोकतंत्र की पृष्ठभूमि होगी और आईऩा भी. अपनी इस किताब के बारे प्रियंवद का कहना है, ‘अपनी 73 वर्ष की यात्रा में भारतीय लोकतंत्र ने बहुत से पड़ाव और मोड़ देखे हैं. अपने समय की राजनीति और सरकार में गूंजने वाले बहुत से स्वर और चेहरे समय की धारा में बिखर गए. बिसरा दिए गए. लेकिन उन्होंने हमारे लोकतंत्र को दिशा और स्वरूप देने में बड़ी भूमिका निभाई है. यह पुस्तक उन स्वरों, व्यक्तियों और घटनाओं का लेखाजोखा है.’