2009 का जजों के भ्रष्टाचार का मामलाः प्रशांत भूषण के खेद को खारिज किया सुप्रीम कोर्ट ने

मशहूर वकील प्रशांत भूषण द्वारा 2009 में ‘तहलका’ को दिए इंटरव्यू में जजों पर की गई टिप्पणी पर उनके खेद प्रकट करने से सर्वोच्च अदालत संतुष्ट नहीं है। अदालत ने इसे खारिज करते हुए कहा कि वह इसकी जाँच करेगी कि क्या उनका वह बयान अदालत की अवमानना है।

विदित हो कि प्रशांत भूषण ने 2009 में ‘तहलका’ पत्रिका को दिए इंटरव्यू में कहा था कि ’16 में से आधे मुख्य न्यायाधीश भ्रष्ट हैं।’ इस पर उन्हें अदालत की अवमानना का नोटिस मिला है।मामले की सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा, हमें इसकी जाँच करनी होगी कि भ्रष्टाचार के मामले में प्रशांत भूषण का बयान अदालत की अवमानना है या नहीं।’

इस मामले की अगली सुनवाई अगले सोमवार को होगी। वरिष्ठ वकील व पूर्व क़ानून मंत्री शांति भूषण ने अदालत से गुजारिश की इस मामले की सुनवाई लॉकडाउन ख़त्म होने के बाद हो। पर अदालत ने इसे नहीं माना।

प्रशांत भूषण ने इस मामले में खेद प्रकट करते हुए कहा, ‘मैंने जो कुछ कहा, यदि किसी मुख्य न्यायाधीश या उनके परिजनों को ठेस पहुँची हो तो मैं इस पर खेद प्रकट करता हूं।’प्रशांत भूषण ने इसके आगे कहा, ‘भ्रष्ट शब्द का इस्तेमाल इसके वृहद अर्थ में किया गया था, इसका मतलब अनुचित काम था, मेरा मतलब सिर्फ़ आर्थिक फ़ायदा उठाने की बात कहना नहीं था।’

सर्वोच्च अदालत मुख्य न्यायाधीश एस. ए. बोबडे के ख़िलाफ़ प्रशांत भूषण की टिप्पणी के मामले में अदालत की अवमानना के एक दूसरे मामले की सुनवाई कर रही है।इस मामले में भूषण ने सीजेआई के मोटरसाइकिल पर बैठे हुए जिस फ़ोटो को ट्वीट किया था, ट्वीट में कही गई बातों के एक हिस्से के लिए उन्होंने पहले ही अफसोस जताया था। भूषण ने कहा था कि उन्होंने इस बात का ध्यान नहीं दिया कि वह बाइक स्टैंड मोड में थी।

अदालत ने कहा, ‘बोलने की आज़ादी और अवमानना के बीच एक रेखा है। बोलने की आज़ादी और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता है और उसके बाद अवमानना है।’

सुप्रीम कोर्ट ने भूषण के दो ट्वीट्स का स्वत: संज्ञान लिया था और उनके ख़िलाफ़ अवमानना का नोटिस जारी किया था। नोटिस में अदालत ने पूछा था कि न्यायपालिका के ख़िलाफ़ गंभीर आरोप लगाने वाले ट्वीट के लिए क्यों न उनके ख़िलाफ़ कार्रवाई की जाए।

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