सुप्रसिद्ध रंगकर्मी हबीब तनवीर की स्मृति में ‘ तरंगम 4 का आयोजन

फिल्म आर्ट कल्चर एंड थिएट्रिकल सोसायटी (FACT) रायपुर द्वारा   सुप्रसिद्ध रंगकर्मी हबीब तनवीर की स्मृति मे’ तरंगम 4 आयोजन के पहले दिन की शुरुवात सुप्रसिद्ध नाट्यकार पुणे निवासी सुषमा देशपांडे की प्रस्तुति ‘ जब गांधी मुझसे मिले’ से हुई।

 उल्लेखनीय है कि अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर रायपुर व छत्तीसगढ़ का नाम रोशन करने वाले हबीब तनवीर का जन्म रायपुर में हुआ था । उनकी उपलब्धियों और रंगकर्म मे उनके अद्वितीय व अविस्मरणीय योगदान को सदा स्मरण करते हुए उनकी स्मृति मे फिल्म आर्ट कल्चर एंड थिएट्रिकल सोसायटी(FACT) रायपुर द्वारा गत 4 वर्ष से तनवीर रंग महोत्सव ‘तरंगम’ का आयोजन किया जा रहा है।  इसी कड़ी में इस वर्ष तरंगम 4  महात्मा गांधी की 150 वीं जयंती वर्ष के उपलक्ष्य में  गांधी पर केंद्रित किया गया है । 

पहले दिन 23 फरवरी को शाम 7 बजे “मी सावित्रीबाई फुले ‘ जैसे चर्चित नाटक से प्रख्यात नाट्यकार सुषमा देशपांडे, पुणे  का नाटक *जब गांधी मुझसे मिले* एक सोलो प्ले है। आख्यान की तरह बापू से एक काल्पनिक मुलाकात के बहाने सुचमा जी दर्शकों के मुखातिब होकर बापू से काल्पनिक  वार्तालाप करते हुए उनकी जीवन की घटनाओं से शुरू होकर आज के हालात पर संवाद करती आ जाती हैं । सरल सहज शैली में एकल अभिनय की महारत हासिल पुणे की सुषमा देशपांडे ने पूरे देश में घूंमघूमकर महिला शिक्षण के क्षेत्र में सर्वप्रथम पहल करने वाली सावित्री बाई फुले की जीवनी पर केन्द्रित मी सावित्री बाई फुले का 2500 से ज्यादा मंचन कर ख्याति अर्जित की । सुषमा जी ने “जब गांधी मुझसे मिले “नाटक को मूल रूप से मराठी में लिखा जिसका हिंदी अनुवाद – विपुल महागावकर ने किया है।

 नाटक के दौरान हृदय स्पर्शी संवादों ने दर्शकों का मन मोह लिया।जैसे- बापू, यहाँ इस मिटटी का सत्य विलीन हो चूका है| रोज़ कोई मंत्री सत्ता के लिए एक नई बात सुनाता है, वहां पर कश्मीर ख़त्म हो चूका है, यहाँ पर चौराहों पर लड़कियों की विटंबना हो रही है, उन्हें जलाया जा रहा है| दिन के उजालें में खून हो रहें हैं बापू|  भ्रष्टाचार ने आतंक मचा रखा है| आपको सब कुछ पता है| सत्य का खून हुआ है और रोज़ हर पल हर समय खून हो रहे हैं  बापू| सत्य की खोज तुम्हें करनी होगी| सत्य तो फैलें हुएँ खून में सड रहा है बापू| बापू आप कहा हो? आप यहाँ इकठ्ठा हुएँ इन लोगों को मिलने आनेंवालें थें ना? अंत मे वो अपने वार्तालाप को इन समवादीन के साथ- बहुत ज़रूरी मुकाम पे लाकर नाट्यवाचन समाप्त करते हुए दर्शकों को अनेक प्रश्नो के बीच छोड़ जाती हैं।

बापू भी उनसे संवाद करते हुए कहते हैं-“यह देखो, मैं एक सामान्य इंसान हूँ| ग़लतियों पर ग़लतियाँ करनेवाला सामान्य इंसान| लेकिन ग़लतियाँ कबूल करने की नम्रता मुझ में है|” बापू एक क्षण रुकें और बहुत विश्वास के साथ कहनें लगें|“लोग क्या कहतें हैं, इसके बारे में मैं नहीं सोचता| मैंने अपनी ग़लतियों को कबूल किया क्योंकि मुझे मेरा जीवन पारदर्शक और सार्थक बनाना था| और मुझे मेरा जीवन पारदर्शक बनाना है इसीलिए कबूल ने के लिए ग़लतियाँ नहीं की मैंने| ग़लतियाँ होती है, उन्हें कबूल करना ज़रुरी होता है| इस कबूल करने में बुद्धि और हृदा का विकास है| चारित्र्य का गठन होता है और इसी में निरंतर प्रगति है|”

    धर्म के वार्तालाप में गांधी कहते हैं-मैं जो कुछ दिनों के लिए दक्षिण अफ्रिका में गया था वह दक्षिण अफ्रीका के हिंदी लोगों की ‘स्वाभिमान रक्षा की क्रांति’ को चलाने के लिए बीस साल रहा|

 “बीस साल आप वहां थें| वहा पर सभी जाती धर्म के लोग थें? वह आपकी सुनतें थें?” “हां| मुस्लिम, हिन्दू, क्रिश्चन, तमिल, सभी थें| दक्षिण अफ्रीका में इन समाजों के साथ, इन लोगों के साथ सत्याग्रह का, अहिंसक सत्याग्रह का पहला प्रयास हुआ| राजकीय अधिकार प्राप्त करने के लिए पहली बार जेल गया|”   एक कठिन शैली में जो सम्भवतः रायपुर में पहली बार प्रस्तुत की गई , दर्शकों ने धैर्यपूर्वक सुना और सराहा। 

    इसके पश्चात ग्राम पैरी बालोद जिला दुर्ग सेज्जि सरस्वति महाभारत  पार्टी की श्रीमती निर्मला बाई भट्ट का पंडवानी गायन हुआ। निर्मला जी ने महाभारत के आदिपर्व पर अपनी प्रस्तुति दी।

तरंगम 4 के दूसरे दिन भिलाई इप्टा की प्रस्तुति “गांधी ने कहा था” की प्रस्तुतु हुई। “गांधी ने कहा था ” प्रसिद्ध नाट्यकार राजेश कुमार द्वारा लिखा गया है। नाटक में इस अंतर्द्वंद को दर्शाया गया है कि क्या लड़ाई धर्म की है? या फिर राजनीती की या गाँधी और गोडसे की ।  नहीं लड़ाई सत्य और असत्य की है , विचार और अज्ञान की है , हिंसा और अहिंसा की है , लड़ाई इंसानियत और हैवानियत की है l नाटक ” गाँधी ने कहा था ” उसी जद्दोजहद का परिणाम है l दिलों को पास लाने का एक छोटा सा प्रयास है l एक तरफ ये नाटक अगर तोड़ने वाली ताकतों को बेनकाब करता है तो दूसरी तरफ यही जोड़ने वालो को शक्ति प्रदान करता है l ये कोई ऐतिहासिक नाटक नहीं है हालांकि इसका इतिहास से कोई परहेज नहीं है l सभी जानते हैं कि वर्तमान की तरह इतिहास का भी एक सच होता है और इतिहास का सच जब आज के सच से साम्य स्थापित करता है तो आज के साथ साथ इतिहास भी प्रासंगिक हो जाता है। नाटक की परिकल्पना व निर्देशन चित्रांश श्रीवास्तव का है। मंच परे संगीत : बी बी परगनिया, मणिमय मुख़र्जी , वेशभूषा : लेखा बंछोर, गौरी परांजपे,कविता पटेल   रूप सज्जा : चारु श्रीवास्तव , गौरी परांजपे, जे श्रीनु मंच सज्जा : शैलेश कोडापे ,चंद्र किशोर , अमिताभ शर्मा  प्रकाश : , शानिद अहमद,रोशन घड़े कर तकनीकी सहयोग: बी किशोर,रोशन घड़ेकर । गाँधी  की भूमिका चारु श्रीवास्तव ने बहुत संजीदगी से निभाही और दर्शकों की वाहवाही लूटी। मंच पर तारकेश्वर : चन्द्र किशोर/ नरेंद्र पटनारे ,आफताब (बालक) : तन्मय साहू, आफताब : सचिन तिवारी ,सुमित्रा : कविता पटेल आचार्य : सुमित सत्पती,कोरस : गौरी परांजपे , लेखा बंछोर, सोनाली गौतम, समीर शर्मा , रोहित पाली , प्रबल , बह्मा ,अमिताभ, यश , श्रेयांश पांडेय, उत्तम, श्रीनू , शानिद अहमद ,राजेश श्रीवास्तव,संदीप गोखले ने इन भुकाओं मे अपनी अदाकारी के साथ भरपूर न्याय किया।    इस अवसर पर बड़ी तादात में रसिकजन उपस्थित थे।

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