फिल्म अभिनेत्री स्वरा भास्कर के ख़िलाफ़ अदालत की अवमानना का मामला नहीं चलेगा

बाबरी मसजिद विवाद पर एक वकील ने अदालत के फ़ैसले पर फिल्म अभिनेत्री व सामाजिक कार्यकर्ता स्वरा भास्कर की टिप्पणी को अपमानजनक और संस्थान पर हमला क़रार देते हुए इसके ख़िलाफ़ मामला दर्ज कराने की अनुमति अटॉर्नी जनरल से माँगी थी। अटॉर्नी जनरल ने इसकी अनुमति नहीं दी है।

विदित हो कि अदालत की अवमानना के मामले में अटॉर्नी जनरल की पूर्व अनुमति ज़रूरी होती है।  अटॉर्नी जनरल के. के. वेणुगोपाल ने कहा कि स्वरा भास्कर की टिप्पणी ‘उनके निजी विचार’ हैं और ‘यह सुप्रीम कोर्ट पर टिप्पणी नहीं है जिससे अदालत के अधिकार पर कुछ कहा गया हो।’  अतः अब स्वरा भास्कर के ख़िलाफ़ अदालत की अवमानना का मामला नहीं चलेगा।

स्वरा भास्कर ने मुंबई में एक कार्यक्रम में कहा था, ‘हम ऐसे देश में रहते हैं जहाँ सुप्रीम कोर्ट कहता है कि बाबरी मसजिद का ढहाया जाना ग़ैरक़ानूनी था, और उसी फ़ैसले में उन्हीं लोगों को पुरस्कृत करता है जिन्होंने मसजिद ढहा दी थी।’ अटॉर्नी जनरल ने कहा कि स्वरा भास्कर के बयान का ‘पहला हिस्सा तथ्यामक रूप से सही’ था और यह ‘बोलने वाले की निजी धारणा है’।

स्वरा भास्कर का यह मामला दिलचस्प इसलिए है कि सुप्रीम कोर्ट ने प्रशांत भूषण को अदालत की अवमानना का दोषी क़रार दिया है। उन्हें सज़ा नहीं सुनाई गई है। अटॉर्नी जनरल ने उस मामले में भी अदालत से गुजारिश की थी कि प्रशांत भूषण को सज़ा न दी जाए। 

 गौरतलब है कि न्यायालय की अवमानना अधिनियम, 1971 के अनुसार, अदालत की अवमानना का अर्थ किसी न्यायालय की ‘गरिमा तथा उसके अधिकारों के प्रति अनादर’ प्रदर्शित करना है।इस अधिनियम के अनुसार न्यायालय की अवमानना दो तरह की हो सकती है, ‘सिविल’ और ‘आपराधिक’।  सिविल अवमानना के अंतर्गत  अदालत के किसी फ़ैसले, डिक्री, आदेश, रिट या किसी दूसरी प्रक्रिया की जान बूझकर की गई अवज्ञा या उल्लंघन आता है। आपराधिक अवमानना का मतलब  न्यायालय की आपराधिक अवमानना के तहत वे मामले आते हैं जिनमें  लिखित, मौखिक, चिह्नित , चित्रित या किसी अन्य तरीके से न्यायालय की अवमानना की गई हो।

एजेंसियां

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