बस्तर: ‘मानवाधिकार कार्यकर्ताओं’ को छह लाख मुआवजा,पेश नहीं हुए पूर्व आईजी कल्लूरी

राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के निर्देशानुसार छत्तीसगढ़ सरकार ने नंदिनी सुंदर, अर्चना प्रसाद और संजय पराते सहित छह मानवाधिकार कार्यकर्ताओं के खिलाफ पुलिस द्वारा झूठा मुकदमा दर्ज कर उन्हें प्रताड़ित किए जाने के खिलाफ एक-एक लाख रुपये मुआवजा देने का आदेश जारी कर दिया है। इस संबंध में सुकमा प्रशासन ने पीड़ितों से संपर्क किया है।

माकपा राज्य सचिव संजय पराते ने मीडिया के लिए इस आदेश की प्रति जारी करते हुए कहा है मुआवजा भुगतान का आदेश जारी करके राज्य सरकार ने प्रत्यक्ष रूप से यह मान लिया है कि बस्तर में राज्य के संरक्षण में मानवाधिकारों का हनन किया जा रहा है। मानवाधिकार आयोग के इस फैसले से स्पष्ट था कि पिछली भाजपा राज में बर्बर तरीके से आदिवासियों के मानवाधिकारों को कुचला गया था और जिन मानवाधिकार और राजनीतिक कार्यकर्ताओं व बुद्धिजीवियों ने बस्तर की सच्चाई को सामने लाने की कोशिश की थी, उन्हें राजनीतिक निशाने पर रखकर प्रताड़ित किया गया था और उन पर ‘देशद्रोही’ होने का ठप्पा लगाया गया था। 

विदित हो कि बस्तर के तत्कालीन आइजी एस आर पी कल्लूरी की अगुवाई में ही बस्तर पुलिस द्वारा उनके पुतले जलाए गए थे और कल्लूरी द्वारा “अबकी बार बस्तर में घुसने पर पत्थरों से मारे जाने” की धमकी दी गयी थी। उल्लेखनीय है कि मानवाधिकार हनन के इस मामले में राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग द्वारा समन किये जाने के बावजूद कल्लूरी आयोग के समक्ष उपस्थित नहीं हुए थे।

अप्रैल 2016 में दिल्ली विश्वविद्यालय की प्रो. नंदिनी सुंदर, जेएनयू की प्रो. अर्चना प्रसाद, माकपा नेता संजय पराते और संस्कृतिकर्मी विनीत तिवारी के नेतृत्व में 6 सदस्यीय शोध दल ने बस्तर के अंदरूनी आदिवासी इलाकों का दौरा किया था और भाजपा प्रायोजित सलवा जुडूम में आदिवासियों पर हो रहे दमन और उनके मानवाधिकारों के हनन की सच्चाई को सामने लाने का काम किया था।

5 नवम्बर 2016 को सुकमा जिले के नामा गांव के शामनाथ बघेल नामक किसी व्यक्ति की हत्या के आरोप में इस शोध दल के सभी छह सदस्यों के खिलाफ आइपीसी की विभिन्न धाराओं, आर्म्स एक्ट और यूएपीए के तहत फर्जी मुकदमा गढ़ा गया था। तब सुप्रीम कोर्ट के संरक्षण से ही इस दल के सदस्यों की गिरफ्तारी पर रोक लग पायी थी। सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर ही वर्ष 2019 में एक एसआइटी जांच में इन्हें निर्दोष पाया गया था और मुकदमा वापस लिया गया था।

इधर माकपा ने अपनी इस मांग को दुहराया है कि आदिवासी अत्याचारों के लिए विभिन्न आयोगों द्वारा जिम्मेदार ठहराये गये पुलिस अधिकारियों तथा विशेषकर वर्ष 2011 में ताड़मेटला, तिमापुरम और मोरपल्ली गांवों में आगजनी और जन संहार करने और स्वामी अग्निवेश पर जानलेवा हमले में सीबीआइ द्वारा दोषी पाये जाने वाले कल्लूरी पर मुकदमा कायम कर उल्लेखनीय सजा दी जाये।

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