गालिब सबके हैं, लेकिन सोशल मीडिया वालों के शायर तो जॉन एलिया ही हैं

अंजलि मिश्रा

एलिया की आशिक-माशूक वाली शायरी में बेचारगी के बजाय एक किस्म की बेफिक्री दिखती है जो सोशल मीडिया पर मौजूद आशिकों को खूब भाती है जॉन एलिया के लोकप्रिय होने की कई वजहें हैं. जॉन एलिया कई भाषाओं जैसे हिंदी, उर्दू, इंग्लिश, हिब्रू और संस्कृत के जानकार थे. एलिया का यह भाषाई ज्ञान ही उनके लेखन में संतुलन पैदा कर देता है. यह संतुलन उन्हें किसी भी तरह के दिखावे से दूर रखता है और क्लिष्ट होने से बचा लेता है. सरल भाषा में लिखने के कारण उनकी कही बातें लोगों को आसानी से समझ आती हैं.

जॉन एलिया ने अपने बारे में लिखा है, ‘अपना खाका लगता हूं, एक तमाशा लगता हूं.’ यह एक परिचय भले जॉन एलिया ने सिर्फ एक बार लिखा लेकिन आज की तारीख में यह सैकड़ों फेसबुक और ट्विटर यूजर्स के इंट्रो/बायो में बार-बार लिखा मिलेगा. शायद इसलिए कि सोशल मीडिया पर जॉन एलिया सरीखी लोकप्रियता उर्दू और हिंदी अदब के किसी नाम ने अब तक हासिल नहीं की है. यहां पर एक बड़ा तबका ऐसा भी है जिसने जॉन एलिया का नाम भी नहीं सुना होगा लेकिन जाने-अनजाने उन्हें पढ़ा जरूर है. सैकड़ों फेसबुक पेज, हजारों स्टेटस अपडेट, यहां तक कि एसएमएस वाली शायरी में भी जॉन एलिया की दो लाइनों के सहारे जाने कितने इश्क आगे बढ़ते हैं.

सोशल मीडिया पर कोई बंदिश वैसे भी नहीं है लेकिन एलिया के लिए जमीन पर खिंची सरहदें भी मायने नहीं रखतीं. एलिया अपने अशआर की तरह ही भारत-पाक के हिस्से में बराबर-बराबर आते हैं. वे 14 दिसंबर, 1931 को उत्तर प्रदेश के अमरोहा में पैदा हुए थे. शायर दिल इंसान होने के चलते बंटवारे से उन्हें खासी तकलीफ हुई और उन्होंने इसका भरसक विरोध भी किया. यहां तक कि बंटवारे के बाद सालों तक उन्होंने अपनी जन्मभूमि नहीं छोड़ी लेकिन बाद में परिवार से दूर हो जाने की मजबूरी के चलते उन्हें 1956 में पाकिस्तान जाकर बसना पड़ा. फिर अपनी जन्मभूमि से दूर ही 8 नवंबर, 2002 को कराची में उन्होंने अपनी आखिरी सांसें लीं. हिंदुस्तानी मिट्टी की परवरिश और पाकिस्तान में अपने लिखे की पैठ बनाने के बाद एलिया वह हो गए जिसके लिए उन्हें आज भी याद किया जाता है.

मृत्यु के बाद उनकी चार और किताबें यानी’, ‘गुमान’, ‘लेकिनऔर गोयाप्रकाशित हुईं. सोशल मीडिया के चलते इन किताबों ने वह लोकप्रियता पाई है जो जॉन एलिया के अशआर उनके जीते जी कभी न पा सके थे

अमरोहा से कराची तक के इस सफ़र में जॉन एलिया ने ऐसा कुछ रचा जिसके लिए वे आज भी जब-तब ट्विटर पर ट्रेंडिंग टॉपिक हो जाते हैं. एलिया की पैदाइश के वक्त उनका परिवार शहर के संपन्न घरानों में से एक था. वे परिवार की पांचवी और सबसे छोटी संतान थे. उनसे बड़े दो भाई रईस अमरोही और सैय्यद मोहम्मद तकी उस समय उर्दू अदब के प्रतिष्ठित नाम बन चुके थे. इस संगत और माहौल का एलिया पर भी खूब असर पड़ा होगा क्योंकि कहा जाता है कि उन्होंने अपना पहला शेर आठ साल की उम्र में ही कह दिया था.

आगे चलकर एलिया ने शायरी के साथ-साथ पाकिस्तानी अख़बार ‘जंग’ और फिर पत्रिका ‘इंशा’ का संपादन किया. इंशा के संपादन के दौरान ही उनकी मुलाकात मशहूर पत्रकार जाहिदा हिना से हुई. कुछ समय इश्क के बाद दोनों ने शादी कर ली लेकिन यह शादी 1984 में टूट गई. शादी के टूटने ने उन्हें कई मोर्चों पर तोड़ दिया. अवसाद ने उनकी सेहत और शायरी, दोनों को बुरी तरह प्रभावित किया.

एलिया को जानने वाले बताते हैं कि उन्हें जिंदगी की तरह लेखन में भी मक्कारी और नकलीपन सख्त नापसंद था इसलिए अपने लेखन में उन्होंने अपनी तरह के मूल्य और आदर्श स्थापित किए. उनका साहित्य की दुनिया के पेंचोखम से कोई वास्ता न था. यह एक बड़ी वजह है कि जीते जी उनकी सिर्फ एक ही किताब ‘शायद’ प्रकाशित हो पाई. हालांकि इसके पीछे उनके सीधेपन के साथ-साथ फक्कड़ तबीयत और समझौता न करने की आदत भी है. अपनी पहली पुस्तक के लिए रचनाओं के चयन और उसकी एडिटिंग में जॉन एलिया ने 15 साल लगा दिए थे. हालांकि मृत्यु के बाद उनकी चार और किताबें ‘यानी’, ‘गुमान’, ‘लेकिन’ और ‘गोया’ प्रकाशित हुईं. सोशल मीडिया के चलते इन किताबों ने वह लोकप्रियता पाई है जो जॉन एलिया और उनके अशआर उनके जीते जी कभी न पा सके थे. संभव है किस्मत ने उनके लिखे को ऐसे ही मशहूर होना लिखा था इसलिए सालों तक वह किताबों की शक्ल में न ढल सका.

उनकी छवि एक मनमौजी, सिरफिरे और शराबी शायर की रही है. सोशल मीडिया पर एक विशेष तबका जो खुद को क्रांतिकारी दिखाना चाहता है या वह जमात जो नए लिक्खाड़ों की है, उन्हें एलिया का यह रूप बहुत आकर्षित करता है

सोशल मीडिया पर जॉन एलिया के लोकप्रिय होने की कई वजहें हैं. जॉन एलिया कई भाषाओं जैसे हिंदी, उर्दू, इंग्लिश, हिब्रू और संस्कृत के जानकार थे. एलिया का यह भाषाई ज्ञान ही उनके लेखन में संतुलन पैदा कर देता है. यह संतुलन उन्हें किसी भी तरह के दिखावे से दूर रखता है और क्लिष्ट होने से बचा लेता है. सरल भाषा में लिखने के कारण उनकी कही बातें लोगों को आसानी से समझ आती हैं. यही वजह है कि सोशल मीडिया और वाट्सएप के जमाने में एलिया की रचनाएं उन्हें न जानने वाले लोगों तक भी पहुंची, पसंद की गईं और मुंह-जबानी याद रखी गईं.

जॉन एलिया शायर हैं और आशिक मिजाज शायर हैं लेकिन, यह आशिक दबा-कुचला-हताश-परेशान नहीं है. एलिया आशिक-माशूक वाली शायरी लिखते हुए भी टशन में रहने वाले शायर हैं. सोशल मीडिया पर भी ज्यादातर आशिक ऐसे ही होते हैं और ये आशिक हमेशा एक एटीट्यूड में रहते हैं. सोशल मीडिया के ऐटीट्यूडी आशिकों को एलिया का टशन सूट करता है. इसलिए भी एलिया, ग़ालिब या दाग की तुलना में उनके ज्यादा प्रिय हो जाते हैं.

शायरी के लिहाज से वक्त ने भले एलिया का साथ न दिया हो लेकिन तकनीक के लिहाज से दिया है. उनके समय तक मुशायरों की वीडियोग्राफी होनी शुरू हो गई थी इसलिए उनके वीडियो यूट्यूब पर बड़ी आसानी से उपलब्ध हैं. इसके साथ ही उनकी छवि एक मनमौजी, सिरफिरे और शराबी शायर की रही है. सोशल मीडिया पर एक विशेष तबका जो खुद को क्रांतिकारी दिखाना चाहता है या वह जमात जो नए लिक्खाड़ों की है, उन्हें एलिया का यह रूप बहुत आकर्षित करता है और वे उनके आदर्श बन जाते हैं. बहुत हद तक इसी तबके की पसंद बन जाने के कारण ही यूट्यूब पर उनके वीडियोज सबसे ज्यादा देखे जाने वाले मुशायरों में शामिल हैं.

सौज- सत्याग्रहः लिंक नीचे दी गई है-

https://satyagrah.scroll.in/article/103174/john-elia-is-ghalib-of-social-media

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *