पब्लिक सेक्टर बैंकों के मर्जर या कंसोलिडेशन का औचित्य-अश्विनी राणा

अश्विनी राणा

अप्रैल 2020 से 6 बैंक सिंडीकेट बैंक, ओरिएंटल बैंक ऑफ कॉमर्स, यूनाइटेड बैंक ऑफ इंडिया, इलाहाबाद बैंक, कारपोरेशन बैंक और आंध्रा बैंक का अस्तित्व समाप्त हो गया है। इन बैंकों को 4 बैंकों में मर्जर कर दिया गया है। जो 4 बैंक होंगे. उनमे  केनरा बैंक, पंजाब नेशनल बैंक, इंडियन बैंक और यूनियन बैंक ऑफ इंडिया हैं।

बैंक मर्ज हुए बैंक
केनरा बैंक सिंडिकेट बैंक
पंजाब नेशनल बैंक ओरिएण्टल बैंक ऑफ़ कॉमर्स यूनाइटेड बैंक ऑफ़ इंडिया
युनियन बैंक ऑफ़ इंडिया कारपोरेशन बैंक आन्ध्रा बैंक
इंडियन बैंक इलाहबाद बैंक

1991 के आर्थिक संकट के उपरान्त बैंकिंग क्षेत्र के सुधार के दृष्टि से जून 1991 में एम. नरसिंहम की अध्यक्षता में नरसिंहम् समिति अथवा वित्तीय क्षेत्रीय सुधार समिति की स्थापना की गई जिसने अपनी संस्तुतियां दिसंबर 1991 में प्रस्तुत की। नरसिंहम समिति द्वितीय की स्थापना 1998 में हुई।

नरसिंहम् समिति की सिफारिशों ने भारत में बैंकिंग क्षमता को बढ़ने में मदद की है। इसमें सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के लिये व्यापक स्वायत्तता प्रस्तावित की गई थी। समिति ने बड़े भारतीय बैंकों के विलय के लिये भी सिफारिश की थी। इसी समिति ने नए निजी बैंकों को खोलने का सुझाव दिया जिसके आधार पर 1993 में सरकार ने इसकी अनुमति प्रदान की। भारतीय रिजर्व बैंक  की देखरेख में बैंक के बोर्ड को राजनीतिक हस्तक्षेप से मुक्त रखने की सलाह भी नरसिंहम् समिति ने दी थी। केन्द्र सरकार ने सबसे पहले 2008 में स्टेट बैंक ऑफ़ सौराष्ट्र, 2010 में स्टेट बैंक ऑफ़ इंदौर और 2017 में बाकी पांच एसोसिएट बैंकों का स्टेट बैंक ऑफ़ इण्डिया में विलय के बाद 2019 में तीन बैंकों, बैंक ऑफ़ बड़ौदा, विजया बैंक और देना बैंक का विलय करने के बाद एक और बड़े सरकारी बैंकों के विलय की घोषणा की है। इसके मुताबिक, सरकारी क्षेत्र के 12 बैंक रह जायेंगे । सरकार का कहना है की आज के समय में छोटे छोटे बैंकों की आवश्यकता नहीं है बल्कि 6 से 7 बड़े बैंकों की आवश्यकता है क्योंकि ज्यादा बैंक होने से आपस में ही पर्तिस्पर्धा के कारण टिक नहीं पा रहे हैं और एन.पी.ए. से निपटने में भी नाकाम हो रहे हैं। सरकार के लिए भी इन बैंकों को पूंजी जुटाने में भी दिक्कत हो रही है।

लेकिन दूसरी और सरकार के इस फैसले से बैंकों की यूनियन सहमत नहीं हैं। यूनियंस का कहना है की विलय की इस प्रक्रिया से  एन.पी.ए. जैसी समस्याओं से निजात पाना संभव नहीं होगा। जहाँ स्टेट बैंक में एसोसिएट बैंकों के विलय के बाद भी स्टेट बैंक का एन.पी.ए बड़ा और घाटे में भी वृद्धि हुई वैसी ही कुछ स्थिति बैंक ऑफ़ बडोदा की भी हुई ।

मर्ज होने वाले बैंकों की वर्तमान एवं बाद की स्थिति

   बैंक का नाम कुल कारोबार (लाख करोड़) एन.पी.ए. शाखाएँ कर्मचारी
पंजाब नेशनल बैंक 11.82 6.55%  6992  65116
ओरिएंटल बैंक ऑफ़ कॉमर्स  4.04 5.93%  2390  21729
यूनाइटेड बैंक ऑफ़ इंडिया  2.08 8.67%  2055  13804
  17.94 6.61% 11437 100649
केनरा बैंक 10.43 5.37%  6310  58350
सिंडिकेट बैंक  4.77 6.16%  4032  31535
  15.20 5.62% 10342  89885
यूनियन बैंक ऑफ़ इंडिया  7.41 6.85%  4292  37262
आंध्रा बैंक  3.98 5.73%  2885  20346
कॉर्पोरशन बैंक  3.19 5.71%  2432  17776
  14.59 6.30%  9609  75384
इंडियन बैंक  4.29 3.75%  2875  19604
इलाहाबाद बैंक  3.77 5.22%  3229  23210
   8.07 4.39%  6104  42814

इन बैंकों के विलय के बाद एक ही सड़क पर यदि मर्ज होने वाले बैंकों की शाखाएं हैं तो निश्चित रूप से एक शाखा को बंद किया जायेगा। एक ही प्रदेश में तीनों बैंकों के प्रशासनिक कार्यालयों में से एक या दो कार्यालय भी बंद करने पड़ेंगे। जिससे उन शाखाओं और प्रशासनिक कार्यालयों   में काम करने वाले कर्मचारियों की दूर दूर ट्रांन्सफर और छंटनी होगी।  इन बैंकों में कर्मचारियों की प्रमोशन, ट्रान्सफर और अन्य सुविधाओं के अलग अलग नियम होंगे,ऐसे में विलय के बाद किस बैंक के नियम लागु होंगे यह कहना भी मुश्किल है। जो लोग अपनी प्रमोशन का इंतजार कर रहे होंगे, विलय के बाद सिनिओरिटी की समस्या भी आएगी। यानि कुल मिलकार पेपर पर तो बैंकों का विलय हो जायेगा लेकिन अलग अलग संस्कृति, प्रौद्योगिक प्लेटफार्म  एवं मानव संसाधन का एकीकरण कैसे संभव होगा एक बड़ा प्रश्न है क्योंकि सभी बैंकों का अपना अपना सांस्कृतिक वातावरण होता है। सभी बैंकों का अपना अपना प्रौद्योगिक प्लेटफार्म होता है और कर्मचारियों की सेवा शर्तें और नियम भी अलग अलग होते हैं । सभी बैंकों के द्वारा अपने ग्राहकों को अलग अलग तरह के उत्पाद उपलब्ध कराये जाते हैं। ग्राहकों का भी लम्बे समय से एक बैंक से रिश्ता होने के कारण एक भावनात्मक जुड़ाव हो जाता है, जिसका असर भी  विलय के पश्चात् देखने को मिल सकता है।

सरकार भले ही कहे की किसी भी कर्मचारी  को निकाला  नहीं जायेगा लेकिन स्टेट बैंक, बैंक ऑफ़ बडोदा और उससे पहले हुए सभी बैंकों के विलय में देखने में आया है कि विलय होने वाले बैंक कर्मचारियों को दूसरे नागरिक की नजर से देखा जाता है और उनसे सही तरह का व्यवहार भी नहीं होता है जिससे ना चाहते हुए भी कर्मचारी नौकरी छोड़ने को मजबूर हो जाते हैं। 

सरकार ने जबसे यह फैसला लिया है कि सरकारी क्षेत्र के बैंकों का विलय करके इनकी संख्या कम की जाएगी, बैंकों में हो रही भर्ती पर भी इसका असर शुरू हो गया है। जहाँ अस्सी के दशक में बैंकों में भर्ती होने वाले ज्यादार कर्मचारी  2020-21 तक रिटायर्ड हो जायेंगे लेकिन इस विलय के निर्णय को देखते हुए बैंकों ने नई भर्ती में भी कमी करनी शुरू कर दी है। सरकारी क्षेत्र के इन बैंकों में अच्छी खासी संख्या में भर्तियां हो सकती थी और बेरोजगार युवकों को रोजगार की उम्मीद थी वह भी इस विलय से समाप्त हो जाएगी।  

ऐसे में क्या सरकार ऐसा भरोसा दिला सकती है कि विलय के पश्चात बैंकों की बंद होने वाली होने वाली शाखाओं को दूसरी जगह पर खोला जायेगा और नई भर्तियां जारी रखी जाएँगी। स्टेट बैंक में एसोसिएट बैंकों के विलय के पश्चात जिस  प्रकार से शाखाओं को बंद किया गया उससे ग्राहकों को भी असुविधा का सामना करना पड़ा है। उनकी पहले जो शाखा घर के पास थी वह दूर चली गई है और एक ही शाखा में 2 से 3 शाखाओं के विलय के पश्चात शाखा में रश बढ़ गया है।

सरकार के बैंकों की संख्या कम करने का फैसला बैंकों को किस और ले जायेगा ये कहना मुश्किल है। यदि  सरकार ने इस फैसले से पहले  बैंकों से सम्बंधित सभी हितधारकों (जैसे बैंक प्रबंधन, बैंकों की यूनियंस और बैंकों के शेयर होल्डर्स ) से बात की होती तो कोई और अच्छा निर्णेय हो सकता था। ये सही है कि सरकार इन बैंकों की मालिक है लेकिन अभी इन बैंकों में प्राइवेट शयेर होल्डर्स का भी एक बड़ा हिस्सा हे। बैंकों में काम कर रही ह्यूमन केपिटल (कर्मचारी वर्ग) का भी बड़ा रोल है। ऐसे में सभी पक्षों से बात किए बिना कोई निर्णेय कितना कारगर होगा. यह कहना मुश्किल है।

अश्वनी राणा – ( वॉयस ऑफ बैंकिंग के सचिव हैं ) सौ आउटलुक

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *