आलेख

आपको किस बात से दिक्कत है, विज्ञापन से या उसके प्रेम के संदेश से!

October 14, 2020

अजय कुमार अपर क्लास एलीट कल्चर से सजे धजे तनिष्क एड के प्रेम संदेश पर ट्विटर ने नहीं बल्कि भारत के कड़वी हक़ीक़त ने हमला बोला है! टाटा ग्रुप ने वही किया जो नहीं करना चाहिए था। असल सवाल यही है कि अगर करोड़ों और अरबों की संपत्ति से जुड़े टाटा ग्रुप के लोग ऐसे […]

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शैलेश मटियानी की विलक्षण प्रतिभा भी उन पर चस्पा ‘बूचड़ की औलाद’ का लेबल नहीं हटा सकी

October 14, 2020

कविता छोटी सी उम्र में ही बूचड़खाने में काम कर चुके शैलेश मटियानी के लिए संघर्ष जीवन में कभी कम नहीं हुए लेकिन इनके साथ ही उनकी विलक्षण लेखकीय यात्रा चलती रही. राजेंद्र यादव अक्सर कहते थे, ‘मटियानी हमारे बीच वह अकेला लेखक है जिसके पास दस से भी अधिक नायाब और बेहतरीन ही नहीं, […]

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इस्लाम में लैंगिक समता और समान नागरिक संहिता

October 13, 2020

मोइन क़ाज़ी शरिया, मुस्लिमों के लिए धार्मिक संहिता है, जिसमें उनकी ज़िंदगी के हर पहलू, उनकी रोज़ की दिनचर्या, धार्मिक और पारिवारिक कर्तव्य, शादी और तलाक़ जैसे विवाह संबंधी प्रावधान के साथ-साथ वित्तीय लेन-देन पर निर्देश दिए गए हैं। लैंगिक स्तर पर निष्पक्ष सुधार किए जाने की जरूरत है, ताकि लैंगिक भेदभाव को ठीक किया […]

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हाथरस: अन्याय के ख़िलाफ़ हर मोर्चे पर लड़ रहे ये लोग कौन हैं?- अपूर्वानंद

October 12, 2020

वे ही चेहरे! बार बार! जगह-जगह! क्यों? क्या लेना-देना है इनका उन सबके साथ जो ये सब कुछ छोड़-छाड़कर उन सबके करीब जा खड़े होते हैं? एक सीधा सा जवाब है। ये वे लोग हैं जो नाइंसाफी को पहचानते हैं। जो यह जानते हैं कि दुनिया में कहीं भी, कभी भी अन्याय हो रहा हो, […]

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टीआरपी घोटाला : मीडिया ख़ून पीने वाला ड्रैकुला बन गया है!

October 10, 2020

अमिताभ इस हालत के लिए मुख्य रूप से चैनलों के मालिकान और संपादकगण कसूरवार हैं। मालिकों का ज़्यादा फोकस हमेशा रेवेन्यू पर रहा, कंटेंट पर नहीं, वर्ना किसी भी कीमत पर टीआरपी हासिल करने का दबाव नहीं होता और समूचे इलेक्ट्रॉनिक मीडिया का यह हाल नहीं होता। पत्रकारिता की साख और सम्मान को गिराने में […]

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अदालत का फैसला अगर ‘न्याय’ से चूक जाए, तो आदमी क्या करे? कहां जाए?

October 8, 2020

नित्यानंद गायेन किसी भी लोकतंत्र में अदालतें शोषित और पीड़ितों के लिए न्याय की अंतिम उम्मीद होती हैं। जब वही अदालतें दमनकारी सत्ता की भाषा में जनविरोधी फैसलें सुनाने लगें या किसी पीड़ित की अपील को सुनने से मना कर दें और जज किसी मामले की सुनवाई से खुद को अलग कर लें, तो उस […]

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एक सभ्य समाज की पहचान जस्टिस – मार्कंडेय काटजू

October 7, 2020

मैंने आदेश दिया कि क्योंकि यह सार्वजनिक सड़क थी, निजी नहीं, इसलिए संविधान के अनुच्छेद 25 के तहत मुसलमानों को अंतिम संस्कार का जुलूस निकालने का अधिकार है, और अधिकारियों को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि कोई भी उस अधिकार में हस्तक्षेप न करे। सभ्य समाज की एक पहचान यह है कि उसमें अल्पसंख्यक गौरव और […]

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दलितों के ख़िलाफ़ हिंसा के विरोध का जिम्मा इसी समुदाय का नहीं है!-अपूर्वानंद

October 6, 2020

बाबा साहब आंबेडकर और संविधान के चलते दलितों को बराबरी का अधिकार क़ानूनी तौर पर प्राप्त हुआ, लेकिन एक व्यापक जीवन में शामिल होने का अनुभव उन्हें कभी नहीं मिला। यह अभी भी सपना ही है कि एक दलित सामान्य लोकसभा या विधानसभा की सीट पर जीत जाए। वैसे ही जैसे एक मुसलमान ग़ैर मुसलमान-बहुल […]

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वीके मेनन : नेहरू का चाणक्य जिससे अमेरिका तक खौफ़जदा था

October 6, 2020

अनुराग भारद्वाज 1957 में कश्मीर मुद्दे पर अमेरिका के जनमत संग्रह प्रस्ताव का उन्होंने इस कदर विरोध किया कि संयुक्त राष्ट महासभा को प्रस्ताव वापस लेना पड़ा. 1947 से लेकर 1964 तक भारत और नेहरू पर जिन ख़ास लोगों का प्रभाव था उनमें से वीके मेनन एक थे. मेनन पर साम्यवाद का प्रभाव लंदन स्कूल […]

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श्रद्धा और घृणा की धुंध हटाए बिना गांधी को जानना कठिन है- अपूर्वानंद

October 3, 2020

गांधी अपने ही देश में अफवाह बन गए हैं. उन्हें जानने की शुरुआत उस तरीके से की जा सकती है जो नेहरू ने ‘गांधी’ बनाने की सोच रहे रिचर्ड अटेनबरो को सुझाया था यह किंचित सुखद आश्चर्य की बात है कि गांधी में अभी भी नौजवानों की दिलचस्पी बनी हुई है. कुछ समय पहले महू […]

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