अन्तॉन पावलेविच चेखव (1860-1904)
रूसी कथाकार और नाटककार अन्तॉन पावलेविच चेखव विश्व के सबसे महत्वपूर्ण लेखकों में से एक हैं। चेखव के लेखन में अपने समय का जैसा गहन और मार्मिक वर्णन मिलता है। चेखव की संवेदना में मानवीयता का तत्व इतना गहरा है कि वे बहुत त्रासद स्थितियों में भी सूरज की थोड़ी सी रोशनी और सुन्दरता के शाश्वत गुण को देख लेते हैं । चेखव की कला में सादगी एक असाधारण शक्ति के रूप में उभरी है और वह विश्व कथा साहित्य में अप्रतिम है । सैकड़ों कहानियों के अलावा चेखव के कई विश्व प्रसिद्ध नाटक भी हैं । आज पढ़ें उनकी कहानी- गिरगिट
गिरगिट
पुलिस का दारोगा ओचुमेलोव नया ओवरकोट पहने, हाथ में एक बण्डल थामे बाजार के चौक से गुज़र रहा है. लाल बालों वाला एक सिपाही हाथ में टोकरी लिये उसके पीछे-पीछे चल रहा है. टोकरी जब्त की गयी झड़बेरियों से ऊपर तक भरी हुई है.
चारों ओर ख़ामोशी…चौक में एक भी आदमी नहीं…दुकानों व शराबख़ानों के भूखे जबड़ों की तरह खुले हुए दरवाज़े ईश्वर की सृष्टि को उदासी भरी निगाहों से ताक रहे हैं. यहां तक कि कोई भिखारी भी आसपास दिखाई नहीं देता है.
“अच्छा! तो तू काटेगा? शैतान कहीं का!” ओचुमेलोव के कानों में सहसा यह आवाज़ आती है. “पकड़ लो, छोकरो! जाने न पाए! अब तो काटना मना है! पकड़ लो! आ…आह!”
कुत्ते के किकियाने की आवाज़ सुनाई देती है. ओचुमेलोव मुड़ कर देखता है कि व्यापारी पिचूगिन की लकड़ी की टाल में से एक कुत्ता तीन टांगों से भागता हुआ चला आ रहा है. एक आदमी उसका पीछा कर रहा है – बदन पर छींट की कलफ़दार कमीज़, ऊपर वास्कट और वास्कट के बटन नदारद. वह कुत्ते के पीछे लपकता है और उसे पकड़ने की कोशिश में गिरते-गिरते भी कुत्ते की पिछली टांग पकड़ लेता है. कुत्ते की कीं-कीं और वही चीख़ – “जाने न पाए!” दोबारा सुनाई देती है. ऊंघते हुए लोग गरदनें दुकानों से बाहर निकल कर देखने लगते हैं, और देखते-देखते एक भीड़ टाल के पास जमा हो जाती है मानो ज़मीन फाड़ कर निकल आई हो.
“हुजूर! मालूम पड़ता है कि कुछ झगड़ा-फसाद है!” सिपाही कहता है.
ओचुमेलोव बाईं ओर मुड़ता है और भीड़ की तरफ़ चल देता है. वह देखता है कि टाल के फाटक पर वही आदमी खड़ा है, जिसकी वास्कट के बटन नदारद हैं. वह अपना दाहिना हाथ ऊपर उठाये भीड़ को अपनी लहूलुहान उंगली दिखा रहा है. उसके नशीले चेहरे पर साफ़ लिखा लगता है, “तुझे मैंने सस्ते में न छोड़ा, साले!” और उसकी उंगली भी जीत का झण्डा लगती है. ओचुमेलोव इस व्यक्ति को पहचान लेता है. वह सुनार ख्रूकिन है. भीड़ के बीचोंबीच अगली टांगें पसारे, अपराधी – एक सफ़ेद ग्रे-हाउण्ड पिल्ला, दुबका पड़ा, ऊपर से नीचे तक कांप रहा है. उसका मुंह नुकीला है और पीठ पर पीला दाग है. उसकी आंसू भरी आंखों में मुसीबत और डर की छाप है.
“क्या हंगामा मचा रखा है यहां?” ओचुमेलोव कन्धों से भीड़ को चीरते हुए सवाल करता है, “तुम उंगली क्यों ऊपर उठाए हो? कौन चिल्ला रहा था?”
“हुजूर! मैं चुपचाप अपनी राह जा रहा था,” ख्रूकिन अपने मुंह पर हाथ रख कर खांसते हुए कहता है. मित्री मित्रिच से मुझे लकड़ी के बारे में कुछ काम था. एकाएक, मालूम नहीं क्यों, इस कमबख़्त ने मेरी उंगली में काट लिया…हुजूर माफ़ करें, पर मैं कामकाजी आदमी ठहरा…और फिर हमारा काम भी बड़ा पेचीदा है. एक हफ़्ते तक शायद मेरी यह उंगली काम के लायक़ न हो पाएगी. मुझे हरजाना दिलवा दीजिए. और, हुजूर, यह तो क़ानून में कहीं नहीं लिखा है कि ये मुए जानवर काटते रहें और हम चुपचाप बरदाश्त करते रहें…अगर सभी ऐसे ही काटने लगें, तब तो जीना दूभर हो जाए…”
“हुंह…अच्छा…” ओचुमेलोव गला साफ़ करके, त्योरियां चढ़ाते हुए कहता है, “ठीक है…अच्छा, यह कुत्ता है किसका? मैं इस बात को यहीं नहीं छोड़ूंगा! यों कुत्तों को छुट्टा छोड़ने का मज़ा चखा दूंगा! लोग क़ानून के मुताबिक़ नहीं चलते, उनके साथ अब सख़्ती से पेश आना पड़ेगा! ऐसा जुरमाना ठोकूंगा कि दिमाग़ ठीक हो जाएगा बदमाश का! फ़ौरन समझ जाएगा कि कुत्तों और हर तरह के ढोर-डंगर को ऐसे छुट्टा छोड़ देने का क्या मतलब है! मैं ठीक कर दूंगा, उसे! येल्दीरिन! सिपाही को सम्बोधित कर दारोगा चिल्लाता है, पता लगाओ कि यह कुत्ता है किसका, और रिपोर्ट तैयार करो! कुत्ते को फ़ौरन मरवा दो! यह शायद पागल होगा…मैं पूछता हूँ यह कुत्ता है किसका?”
“यह शायद जनरल झिगालोव का हो!” भीड़ में से कोई कहता है. “जनरल झिगालोव का? हुंह…येल्दीरिन, ज़रा मेरा कोट तो उतारना…ओफ़, बड़ी गर्मी है…मालूम पड़ता है कि बारिश होगी. अच्छा, एक बात मेरी समझ में नहीं आती कि इसने तुम्हें काटा कैसे?” ओचुमेलोव ख्रूकिन की ओर मुड़ता है. “यह तुम्हारी उंगली तक पहुँचा कैसे? यह ठहरा ज़रा सा जानवर और तुम पूरे लहीम-शहीम आदमी. किसी कील-वील से उंगली छील ली होगी और सोचा होगा कि कुत्ते के सिर मढ़ कर हरजाना वसूल कर लो. मैं ख़ूब समझता हूं! तुम्हारे जैसे बदमाशों की तो मैं नस-नस पहचानता हूं!”
“इसने उसके मुंह पर जलती हुई सिगरेट लगा दी, हुजूर! बस, यूं ही मज़ाक़ में. और यह कुत्ता बेवक़ूफ़ तो है नहीं, उसने काट लिया. ओछा आदमी है यह हुजूर!”
“अबे! काने! झूठ क्यों बोलता है? जब तूने देखा नहीं, तो झूठ उड़ाता क्यों है? और सरकार तो ख़ुद समझदार हैं. सरकार ख़ुद जानते हैं कि कौन झूठा है और कौन सच्चा. और अगर मैं झूठा हूं, तो अदालत से फ़ैसला करा लो. क़ानून में लिखा है…अब हम सब बराबर हैं, ख़ुद मेरा भाई पुलिस में है…बताए देता हूं…हां…”
“बन्द करो यह बकवास!”
“नहीं, यह जनरल साहब का नहीं है,” सिपाही गंभीरतापूर्वक कहता है “उनके पास ऐसा कोई कुत्ता है ही नहीं, उनके तो सभी कुत्ते शिकारी पोंटर हैं.
“तुम्हें ठीक मालूम है?”
“जी, सरकार.”
“मैं भी जानता हूँ. जनरल साहब के सब कुत्ते अच्छी नस्ल के हैं, एक से एक क़ीमती कुत्ता है उनके पास. और यह! यह भी कोई कुत्तों जैसा कुत्ता है, देखो न! बिल्कुल मरियल खारिश्ती है. कौन रखेगा ऐसा कुत्ता? तुम लोगों का दिमाग़ तो ख़राब नहीं हुआ? अगर ऐसा कुत्ता मास्को या पीटर्सबर्ग में दिखायी दे, तो जानते हो क्या हो? क़ानून की परवाह किए बिना एक मिनट में उसकी छुट्टी कर दी जाए! ख्रूकिन! तुम्हें चोट लगी है और तुम इस मामले को यूं ही मत टालो…इन लोगों को मज़ा चखाना चाहिए! ऐसे काम नहीं चलेगा.”
“लेकिन मुमकिन है, जनरल साहब का ही हो…” कुछ अपने आपसे सिपाही फिर कहता है, “इसके माथे पर तो लिखा नहीं है. जनरल साहब के अहाते में मैंने कल बिल्कुल ऐसा ही कुत्ता देखा था.”
“हां, हां, जनरल साहब का ही तो है!” भीड़ में से किसी की आवाज़ आती है.
“हुंह…येल्दीरिन, ज़रा मुझे कोट तो पहना दो…हवा चल पड़ी है, मुझे सरदी लग रही है…कुत्ते को जनरल साहब के यहां ले जाओ और वहां मालूम करो. कह देना कि इसे सड़क पर देख कर मैंने वापस भिजवाया है…और हां, देखो, यह भी कह देना कि इसे सड़क पर न निकलने दिया करें…मालूम नहीं कितना क़ीमती कुत्ता हो और अगर हर बदमाश इसके मुंह में सिगरेट घुसेड़ता रहा, तो कुत्ता तबाह हो जाएगा. कुत्ता बहुत नाज़ुक जानवर होता है…और तू हाथ नीचा कर, गधा कहीं का! अपनी गन्दी उंगली क्यों दिखा रहा है? सारा क़ुसूर तेरा ही है…
“यह जनरल साहब का बावर्ची आ रहा है, उससे पूछ लिया जाए. ए प्रोखोर! इधर तो आना भाई! इस कुत्ते को देखना, तुम्हारे यहां का तो नहीं है?”
“अमां वाह! हमारे यहां कभी भी ऐसे कुत्ते नहीं थे!”
“इसमें पूछने की क्या बात थी? बेकार वक्त ख़राब करना है,” ओचुमेलोव कहता है, “आवारा कुत्ता है. यहां खड़े-खड़े इसके बारे में बात करना समय बरबाद करना है. कह दिया न आवारा है, तो बस आवारा ही है. मार डालो और काम ख़त्म!”
“हमारा तो नहीं है,” प्रोखोर फिर आगे कहता है, “पर यह जनरल साहब के भाई साहब का कुत्ता है. उनको यह नस्ल पसन्द है…”
“क्या? जनरल साहब के भाई साहब आए हैं? व्लीदीमिर इवानिच?” अचम्भे से ओचुमेलोव बोल उठता है, उसका चेहरा आह्लाद से चमक उठता है. “ज़रा सोचो तो! मुझे मालूम भी नहीं! अभी ठहरेंगे क्या?”
“हां…”
“ज़रा सोचो, वह अपने भाई से मिलने आए हैं…और मुझे मालूम भी नहीं कि वह आए हैं. तो यह उनका कुत्ता है? बड़ी ख़ुशी की बात है. इसे ले जाओ…कुत्ता अच्छा…और कितना तेज़़ है…इसकी उंगली पर झपट पड़ा! हा-हा-हा…बस-बस, अब कांप मत. गुर्र-गुर्र…शैतान ग़ुस्से में है…कितना बढ़िया पिल्ला है…”
प्रोखोर कुत्ते को बुलाता है और उसे अपने साथ ले कर टाल से चल देता है. भीड़ ख्रूकिन पर हंसने लगती है.
“मैं तुझे ठीक कर दूंगा,” ओचुमेलोव उसे धमकाता है और अपना ओवरकोट लपेटता हुआ बाज़ार के चौक के बीच अपने रास्ते चल देता है.
(1884 में प्रकाशित)