चे ने अपनी रिपोर्ट में लिखा, “हमें नेहरू ने बेशकीमती मशविरे दिए और हमारे उद्देश्य की पूर्ति में बिना शर्त अपनी चिंता का प्रदर्शन भी किया. भारत यात्रा से हमें कई लाभदायक बातें सीखने को मिलीं. सबसे महत्वपूर्ण बात हमने यह जाना कि एक देश का आर्थिक विकास उसके तकनीकी विकास पर निर्भर करता है और इसके लिए वैज्ञानिक शोध संस्थानों का निर्माण बहुत ज़रूरी है- मुख्य रूप से दवाइयों, रसायन विज्ञान, भौतिक विज्ञान और कृषि के क्षेत्र में.”
एक समय अमरीका का सबसे बड़ा दुश्मन, चे ग्वेरा, आज दुनिया के कई लोगों की नज़र में एक महान क्रांतिकारी है. अर्नेस्टो चे ग्वेरा आज दिल्ली के पालिका बाज़ार में बिक रहे टी-शर्ट पर मिल जाएंगे, लंदन में किसी की फ़ैशनेबल जींस पर भी, लेकिन चे क्यूबा और दक्षिण अमरीकी देशों के करोड़ों लोगों के लिए आज भी किसी देवता से कम नहीं है.
चे ग्वेरा ये वो शख़्स था जो पेशे से डॉक्टर था, 33 साल की उम्र में क्यूबा का उद्योग मंत्री बना, लेकिन फिर लातिनी अमरीका में क्रांति का संदेश पहुँचाने के लिए ये पद छोड़कर फिर जंगलों में पहुँच गया. 14 जून, 1928 को लातिनी अमरीकी क्रांतिकारी चे ग्वेरा का जन्म एक मध्यमवर्गीय परिवार में हुआ था. जब 9 अक्तूबर, 1967 को मारा गया उनकी उम्र थी महज़ 39 साल.अमरीका की बढ़ती ताक़त को पचास और साठ के दशक में चुनौती देने वाला यह युवक – अर्नेस्तो चे ग्वेरा पैदा हुआ था अर्जेंटीना में.वो चाहते तो अर्जेंटीना की राजधानी ब्यूनस आयर्स के कॉलेज में डॉक्टर बनने के बाद आराम की ज़िंदगी बसर कर सकते थे.लेकिन अपने आसपास ग़रीबी और शोषण देखकर युवा चे का झुकाव मार्क्सवाद की तरफ़ हो गया और बहुत जल्द ही इस विचारशील युवक को लगा कि दक्षिणी अमरीकी महाद्वीप की समस्याओं के निदान के लिए सशस्त्र आंदोलन ही एकमात्र तरीक़ा है.
1955 में यानी 27 साल की उम्र में चे की मुलाक़ात फ़िदेल कास्त्रो से हुई. जल्द ही क्रांतिकारियों ही नहीं, लोगों के बीच भी ‘चे’ एक जाना-पहचाना नाम बन गया.क्यूबा ने फ़िदेल कास्त्रो के क़रीबी युवा क्रांतिकारी के रूप में चे को हाथों-हाथ लिया.क्रांति में अहम भूमिका निभाने के बाद चे 31 साल की उम्र में बन गए क्यूबा के राष्ट्रीय बैंक के अध्यक्ष और उसके बाद क्यूबा के उद्योग मंत्री.1964 में चे संयुक्त राष्ट्र महासभा में क्यूबा की ओर से भाग लेने गए. चे बोले तो कई वरिष्ठ मंत्री इस 36 वर्षीय नेता को सुनने को आतुर थे
आज क्यूबा के बच्चे चे ग्वेरा को पूजते हैं. और क्यूबा ही क्यों पूरी दुनिया में चे ग्वेरा आशा जगाने वाला एक नाम है.दुनिया के कोने-कोने में लोग उनका नाम जानते हैं और उनके कार्यों से प्रेरणा लेते हैं.
चे की जीवनी लिखने वाले जॉन एंडरसन ने कहा था, “चे क्यूबा और लातिनी अमरीका ही नहीं दुनिया के कई देशों के लोगों के लिए एक प्रेरणा स्रोत हैं.”उनके मुताबिक, “मैंने चे की तस्वीर को पाकिस्तान में ट्रकों, लॉरियों के पीछे देखा है, जापान में बच्चों के, युवाओं के स्नो बोर्ड पर देखा है. चे ने क्यूबा को सोवियत संघ के करीब ला खड़ा किया. क्यूबा उस रास्ते पर कई दशक से चल रहा है. चे ने ही ताकतवर अमरीका के ख़िलाफ़ एक-दो नहीं कई विएतनाम खड़ा करने का दम भरा था. चे एक प्रतीक है व्यवस्था के ख़िलाफ़ युवाओं के ग़ुस्से का, उसके आदर्शों की लड़ाई का.”
37 साल की उम्र में क्यूबा के सबसे ताक़तवर युवा चे ग्वेरा ने क्रांति का संदेश अफ़्रीका और दक्षिणी अमरीका में फैलाने की ठानी.कांगो में चे ने विद्रोहियों को गुरिल्ला लड़ाई की पद्धति सिखाई. फिर चे ने बोलीविया में विद्रोहियों को प्रशिक्षित करना शुरू किया.अमरीकी खुफ़िया एजेंट चे ग्वेरा को खोजते रहे और आख़िरकार बोलीविया की सेना की मदद से चे को पकड़कर मार डाला गया.
यह कम ही लोगों की जानकारी में है कि चे ग्वेरा ने भारत की भी यात्रा की थी. तब वे क्यूबा की सरकार में मंत्री थे.
चे ने भारत की यात्रा के बाद 1959 में भारत रिपोर्ट लिखी थी जो उन्होंने फ़िदेल कास्त्रो को सौंपी थी.इस रिपोर्ट में उन्होंने लिखा था, “काहिरा से हमने भारत के लिए सीधी उड़ान भरी. 39 करोड़ आबादी और 30 लाख वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल. हमारी इस यात्रा में सभी उच्च भारतीय राजनीतिज्ञों से मुलाक़ातें शामिल थीं. नेहरू ने न सिर्फ आत्मीयता के साथ हमारा स्वागत किया बल्कि क्यूबा की जनता के समर्पण और उसके संघर्ष में भी अपनी पूरी रुचि दिखाई.”
चे ने अपनी रिपोर्ट में लिखा, “हमें नेहरू ने बेशकीमती मशविरे दिए और हमारे उद्देश्य की पूर्ति में बिना शर्त अपनी चिंता का प्रदर्शन भी किया. भारत यात्रा से हमें कई लाभदायक बातें सीखने को मिलीं. सबसे महत्वपूर्ण बात हमने यह जाना कि एक देश का आर्थिक विकास उसके तकनीकी विकास पर निर्भर करता है और इसके लिए वैज्ञानिक शोध संस्थानों का निर्माण बहुत ज़रूरी है- मुख्य रूप से दवाइयों, रसायन विज्ञान, भौतिक विज्ञान और कृषि के क्षेत्र में.”
अपनी विदाई को याद करते हुए चे ग्वेरा ने लिखा था, “जब हम भारत से लौट रहे थे तो स्कूली बच्चों ने हमें जिस नारे के साथ विदाई दी, उसका तर्जुमा कुछ इस तरह है- क्यूबा और भारत भाई-भाई. सचमुच, क्यूबा और भारत भाई-भाई हैं.”
(साभार- बीबीसी संवाददाता आकाश सोनी का ये लेख 9 अक्टूबर, 2007 को प्रकाशित हुआ था)