साहित्य या रचनाकृति जो है वह तो मूल रुप से कलाकृति होती है और वह सौंदर्य की चीज़ होती है.
सौंदर्य के बारे में कीट्स ने कहा है कि ‘ए थिंग ऑफ़ ब्यूटी इज़ ज्वाय फॉर एवर ’. तो जब हम प्रेमचंद या किसी और बड़े कलाकार के बारे में बात करते हैं जो वह यह मानना चाहिए कि सौंदर्य की कृति है. सौंदर्य एक ऐसी चीज़ है जिसे लोग देखना चाहते हैं, उसका स्वाद लेना चाहते हैं. जो साहित्य है वह शब्दबद्ध सौंदर्य है और वह बूढ़ी नहीं हो सकती.
जो कालजयी साहित्य होता है वह समय के साथ-साथ और निखरता जाता है. जैसा कि सौंदर्य के बारे में कहा गया है कि जो समय के साथ निखरता जाता है वह सौंदर्य होता है.
साहित्यकार एक सौंदर्य की सृष्टि करते हैं और प्रेमचंद जितने बड़े रचनाकार हैं उतने बड़े सौंदर्य के निर्माता हैं इसलिए साहित्य बार-बार पढ़ा जाता है, जिसे हमे क्लासिकल साहित्य कहते हैं. तो अगर नई पीढ़ी को सौंदर्य के प्रति उत्सुकता है, यदि उसमें क्षमता बची हुई है कि वह सौंदर्य का आस्वादन कर सके तो वे प्रेमचंद को पढ़ेंगे.
इतिहास बिद्ध
दूसरी बात यह कि जो बड़ा साहित्य होता है वह इतिहास बिद्ध होता है और इसका मतलब यह है कि अपने समय के इतिहास से जूझता है.
साहित्य अपने समय के कितनों ही मुद्दों से, सूत्रों से, परिदृश्यों से जूझता है. आज की पीढ़ी उन सारे मुद्दों से हिंदुस्तान में जूझ रही है जो मुद्दे या सूत्र प्रेमचंद ने उठाए जैसे दहेज, अशिक्षा, वर्णाश्रम व्यवस्था, दलित आंदोलन, दलित चेतना, नारी चेतना है और सबसे बड़ी बात किसान की समस्या है.
प्रेमचंद किसान समस्या के सबसे बड़े रचनाकार हैं. अब रंगभूमि में सूरदास है, जिसकी छोटी सी ज़मीन है जिसपर मिल मालिक है जानसेवक आ कर के उस ज़मीन को हथियाना चाहता है, सूरदास उसे ज़मीन नहीं देते हैं. पूरे रंगभूमि में उसका संघर्ष दिखाई पड़ता है. गोदान में होरी छोटा किसान है. उसके ऊपर, चाहे वह कर्मकांड का हो, वर्णाश्रम व्यवस्था, सामंतवाद का हो, हर प्रकार के दबाव से उसकी ज़मीन छीन ली जाती है, और उसका लड़का नौकर बन जाता है.
इतिहास की यह प्रक्रिया उस समय से चल रही है कि छोटे किसान की ज़मीन उसके हाथ से निकल रही और वह मज़दूर बनने पर विवश है, यह एक इतिहास की प्रक्रिया है, यथार्थ का प्रवाह है. जिसे प्रेमचंद अपने उपन्यासों, कथाकृति में प्रकट करते हैं.
हमें यह याद रखना चाहिए कि साहित्य चीज़ों को जानने का भी बहुत बड़ा स्रोत है. इतिहासकार और अर्थशास्त्री जिन चीज़ों को छोड़ देते हैं, या छूट जाता है, जिस पर प्रकाश नहीं डाल सकते, साहित्यकार उस पर प्रकाश डालता है. मूल रूप से साहित्य एक जनतांत्रिक अनुशासन ही है.
स्वाधीनता आंदोलन ने जिन संपूर्ण रचनाकारों को जन्म दिया है उनमें से प्रेमचंद निश्चित रूप से महान रचनाकार हैं इसलिए हम बार-बार उनको पढ़ते हैं.
और इसीलिए उसे आज भी पढ़ा जाना चाहिए.
ये ठीक है कि प्रेमचंद के सामने जो समस्या थी वह आज उस रूप में नहीं है. प्रेमचंद ने किसान का जीवंत चित्रण किया है. आज के किसान आत्महत्या कर रहे हैं. किसानी दिमाग में पूंजीवाद आ रहा है. वह जल्दी बड़ा बनना चाहता है, जब वह नहीं होता है तो निराश होकर किसान आत्महत्या करता है. आज के रचनाकार को इसका वरण करना पड़ेगा.
डॉ० विश्वनाथ त्रिपाठी प्रगतिशील विचारधारा से संबद्ध हिन्दी के वरिष्ठ आलोचक, कवि और गद्यकार हैं। ( यह उनका पूर्व प्रकाशित लेख है)