आम आदमी पार्टी – बल्कि ज्यादा सही कहें तो अरविन्द केजरीवाल – ने गत 17 अगस्त को आरोप लगाया कि दिल्ली के शाहीन बाग़ में नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए) के विरुद्ध जो आन्दोलन चला था वह भाजपा द्वारा प्रायोजित था. उन्होंने कहा, “विधानसभा चुनाव में उत्तर-पूर्वी दिल्ली की कुछ सीटें पर भाजपा की जीत का श्रेय शाहीन बाग आन्दोलन के कारण हिन्दुओं और मुसलमानों के बीच बनी खाई को जाता है.
आम आदमी पार्टी – बल्कि ज्यादा सही कहें तो अरविन्द केजरीवाल – ने गत 17 अगस्त को आरोप लगाया कि दिल्ली के शाहीन बाग़ में नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए) के विरुद्ध जो आन्दोलन चला था वह भाजपा द्वारा प्रायोजित था. उन्होंने कहा, “विधानसभा चुनाव में उत्तर-पूर्वी दिल्ली की कुछ सीटें पर भाजपा की जीत का श्रेय शाहीन बाग आन्दोलन के कारण हिन्दुओं और मुसलमानों के बीच बनी खाई को जाता है. शाहीन बाग़ के कारण दिल्ली में भाजपा का वोट प्रतिशत 18 से बढ़ कर 38 हो गया.” अपने इस आरोप के समर्थन में आप ने कहा कि शाहीन बाग आन्दोलन में हिस्सेदारी करने वाले शहजाद अली और कुछ अन्यों ने भाजपा की सदस्यता ले ली है. आरोप यह भी है महिला आन्दोलनकारियों ने छह लेन की कालिंदी कुंज सड़क का एक हिस्सा ही बंद किया था परंतु पुलिस ने उनकी मदद के लिए पूरी सड़क को ही एक किलोमीटर आगे से बंद कर दिया. आप के अनुसार यह इसलिए किया गया ताकि भाजपा को फायदा मिल सके. उसका यह भी कहना है कि यह सब करने के बाद भी जब भाजपा चुनाव नहीं जीत सकी तो उसने दिल्ली में दंगे भड़काए.
आप के तर्क और आरोप दोनों ही बेहूदा हैं. वे मानसिक दिवालियेपन का सुबूत तो हैं ही उनसे ऐसा भी लगता है कि आप एक राजनैतिक एजेंडे के तहत शाहीन बाग आन्दोलन को बदनाम करना चाहती है. यह स्वाधीन भारत के सबसे बड़े प्रजातान्त्रिक जनांदोलन को लांछित करने का प्रयास है.
हां, आप के इस आरोप में दम है कि भाजपा दिल्ली के कुछ हिस्सों में लोगों को सांप्रदायिक आधार पर ध्रुवीकृत कर अपना उल्लू सीधा करने में कामयाब रही. आईये हम देखें कि भाजपा की नीतियों और क़दमों ने शाहीन बाग आन्दोलन को मजबूती दी या उसे कमज़ोर किया. इसमें कोई संदेह नहीं कि आन्दोलनरत महिलाओं ने हाईवे के एक हिस्से को ही बंद किया था. परंतु भाजपा के नियंत्रण वाली पुलिस द्वारा पूरी सड़क को बंद कर देने से इस आन्दोलन को लाभ नहीं हुआ बल्कि उसकी बदनामी हुई. शहजाद अली का यह दावा अर्धसत्य है कि वह शाहीन बाग आन्दोलन का हिस्सा था. शहजाद अली आन्दोलन स्थल पर देखा गया था परन्तु आन्दोलन की दिशा तय करने या उसके सम्बन्ध में निर्णय लेने में उसकी कोई भूमिका नहीं थी.
यह मुख्यतः मुस्लिम महिलाओं का आन्दोलन था जिसमें इस समुदाय के सभी वर्गों की महिलाओं ने हिस्सा लिया. आन्दोलनकारियों में गरीब, मध्यमवर्गीय और उच्चवर्गीय परिवारों की महिलाएं शामिल थी. यह आन्दोलन पूरी तरह से जनतांत्रिक था. आन्दोलन के सम्बन्ध में निर्णय मुस्लिम महिलाओं की ‘पार्लियामेंट’ द्वारा लिए जाते थे. जिन अन्य लोगों ने आन्दोलन का समर्थन किया उनकी केवल सहायक भूमिका थी जो भाषण देने, बयान जारी करने आदि तक सीमित थी.
आन्दोलन के पीछे तात्कालिक कारण अलीगढ मुस्लिम विश्वविद्यालय, जामिया मिल्लिया इस्लामिया और जवाहरलाल नेहरु विश्वविद्यालय के विद्यार्थियों के विरुद्ध पुलिस द्वारा किया गया बेजा बलप्रयोग था. जाहिर है कि पुलिस की यह दमनात्मक कार्यवाही, भाजपा के नीति का भाग थी. परन्तु इस आन्दोलन के पीछे एक दूसरा, गहरा कारण भी था और वह था मुसलमानों में असंतोष के भाव का अपने चरम पर पहुँच जाना. भाजपा सरकार यह ढ़ोल पीट रही थी कि उसने तीन तलाक को अवैध और अपराध घोषित कर मुस्लिम महिलाओं की मदद की है. सच यह है कि मुसलमानों को यह लग रहा था कि उन्हें पीछे धकेला जा रहा है और उन्हें दूसरे दर्जे का नागरिक बनाया जा रहा है. उन्हें गद्दार (अनुराग ठाकुर का बयान ‘देश के गद्दारों को…) बताया जा रहा है, गाय के नाम पर उनकी लिंचिंग की जा रही है और उन्हें आतंकी और लव जिहादी कहा जा रहा है. पूरा मुस्लिम समुदाय अपने आप को असुरक्षित और खतरे में पा रहा था. वह अपने आप में सिमटता जा रहा था.
गोपाल सिंह आयोग, सच्चर समिति और रंगनाथ मिश्र आयोग की रपटों से यह साफ़ था कि सामाजिक-आर्थिक पैमानों पर मुसलमानों की हालत बाद से बदतर होती जा रही है. संघ परिवार के विषाक्त प्रचार के कारण पूर्ववर्ती कांग्रेस सरकार को मुसलमानों के पक्ष में सकारात्मक कार्यवाही करने का अपना इरादा त्यागना पड़ा था. इन प्रयासों का जमकर विरोध हुआ और भगवा ब्रिगेड ने अनवरत यह कहना शुरू कर दिया कि मुसलमान, पाकिस्तान के प्रति वफ़ादार हैं और अपनी आबादी तेजी के बढाकर बहुसंख्यक समुदाय बनने की फिराक में हैं ताकि देश में शरिया कानून लागू किया जा सके.
कांग्रेस, जो कम से कम मुसलमानों के प्रति शाब्दिक सहानुभूति तो व्यक्त करती रहती थी, को मुस्लिम पार्टी घोषित कर दिया गया. देश में व्याप्त सांप्रदायिक वातावरण के चलते कांग्रेस के नेता गाँधी और नेहरु की तरह बहुवाद और विविधता के पक्ष में मजबूती से अपनी आवाज़ नहीं उठा सके. कांग्रेस उस विशाल प्रचार मशीनरी के सामने धराशायी हो गयी जिसे आरएसएस ने काफी मेहनत से खड़ा किया है. संघ ने उस प्राचीन भारत का गौरव गान करना शुरू कर दिया जिसमें मनुस्मृति के कानूनों का बोलबाला था. उसने ईसाई समुदाय पर भी हमले शुरू कर दिए. उसने यह प्रचार शुरू कर दिया कि अल्पसंख्यक मुसलमान (2011 की जनगणना के अनुसार भारत की आबादी का 14.2 प्रतिशत), बहुसंख्यक हिन्दुओं के लिए खतरा हैं.
सीएए-एनआरसी ने मुसलमानों को और भयभीत कर दिया. उन्हें लगा कि बड़ी संख्या में मुसलमानों को मताधिकार से वंचित किया जा सकता है. सरकार ने लगातार ये आश्वासन दिए कि मुसलमानों को नागरिकता से वंचित करने का उसका कोई इरादा नहीं है. परन्तु इन झूठे आश्वासनों पर मुसलमानों ने भरोसा नहीं किया. विश्वविद्यालय के विद्यार्थियों पर पुलिस की बर्बर कार्यवाहियों ने आग में घी का काम किया.
एक अर्थ में शाहीन बाग आन्दोलन, स्वतंत्र भारत में मुसलमानों की वंचना और उन पर अत्याचारों के खिलाफ प्रतिरोध की सजग अभिव्यक्ति था. उससे भाजपा के इस दावे की पोल खुल दी कि सरकार की नीतियों के कारण मुस्लिम महिलाएं उससे बहुत प्रसन्न हैं. इस आन्दोलन ने इस धारणा को भी गलत सिद्ध कर दिया कि मुसलमान महिलाएं अपने पुरुषों के अधीन हैं और उनकी आज्ञा के बिना कुछ नहीं कर सकतीं. मुसलमानों के साथ हो रहे अन्याय के विरोध में यह आन्दोलन एक मज़बूत आवाज़ बन कर उभरा. इतनी ज़ोरदार आवाज़ पहले कभी न उठी थी. इस आन्दोलन ने यह भी सिद्ध कर दिया कि मुसलमानों की निष्ठा भारतीय संविधान के प्रति है न कि शरीयत के प्रति. यह आन्दोलन पूरी तरह से स्वस्फूर्त था. आन्दोलनकारियों ने तिरंगे और संविधान की उद्देश्यिका को अपने प्रतीक बनाया. आन्दोलन स्थल पर गाँधी और नेहरु के अलावा अम्बेडकर, पटेल, मौलाना आजाद और भगतसिंह के चित्र भी लगाये गए.
आप दिल्ली में अपने आधार को मज़बूत करना चाहती है. राष्ट्रीय स्तर के भ्रष्टाचार के मुद्दे बहुत पहले उसके एजेंडा से गायब हो चुके हैं. वह अब भाजपा-मार्का अति-राष्ट्रवाद की पैरोकार बन गयी है. और इसीलिये वह शाहीन बाग के प्रजातान्त्रिक जनांदोलन को बदनाम करना चाहती है – उस आन्दोलन को जो आज़ादी की बात करता था, जो ‘हम देखेंगे’ गाता था और जो यह जोर देकर कहता था कि हिंदुस्तान किसी के बाप का नहीं है.
लेखक आईआईटी, मुंबई में पढ़ाते थे और सन् 2007 के नेशनल कम्यूनल हार्मोनी एवार्ड से सम्मानित हैं (हिंदी रूपांतरणः अमरीश हरदेनिया)