दिल्ली। हिंदी की पत्रिकाएं प्रारंभ से ही साहित्य की दुनिया के साथ-साथ समाज और राजनीति के क्षेत्रों की भी सूचना देती रही हैं। अपने पाठकों को संवेदनशील बनाना और राजनैतिक जागरूकता देना भारतेंदु युगीन सहटियिक पत्रकारिता में भी देखा जा सकता है। बाद में हिंदी के लघु पत्रिका आंदोलन ने इस कार्य को अधिक गहराई से किया। सुप्रसिद्ध आलोचक और ‘आलोचना’ के सम्पादक डॉ संजीवन कुमार ने उक्त विचार हिन्दू कालेज द्वारा वेबिनार के रूप में आयोजित डॉ दीपक सिन्हा स्मृति व्याख्यान में व्यक्त किये।
उन्होंने ‘साहित्यिक पत्रिकाएं : चुनौतियाँ और सम्भावनाएँ’ विषय पर बोलते हुए कहा कि सन् 1867 में प्रकाशित हिंदी की प्रथम लघु पत्रिका ‘कवि वचन सुधा’ की सामग्री का अध्ययन करने पर पता चलता है कि प्रारंभ से ही हमारी साहित्यिक पत्रिकाएं साहित्यिक होते हुए भी सामाजिक एवं राजनीतिक विषयों को निरंतर अपने पन्नों में जगह देती रही हैं। उन्होंने कहा कि 1986 से 1993 तक हिंदी की प्रतिष्ठित पत्रिका ‘हंस’ के सारे संपादकीय सामाजिक और राजनीतिक विषय के थे अर्थात इस पत्रिका का एक चौथाई हिस्सा पूरी तरह से सामाजिक और राजनीतिक विषयों पर आधारित था। हिंदी साहित्य के लेखकों पर लगने वाले इस आरोप पर कि ‘हिंदी वालों ने समाज-विज्ञान के विषयों पर ध्यान नहीं दिया’ पर डॉ संजीव कुमार ने कहा कि यह आरोप निराधार हैं क्योंकि हिंदी के लेखक, संपादक लगातार समाज और राजनीति के विषयों पर लिखते आए हैं।
इससे पहले उन्होंने साहित्यिक पत्रिकाओं को पत्रिकाएँ मानने हुए कहा कि पाठकों और प्रसार की सीमाओं से इन्हें लघु पत्रिकाएँ कहना अनुचित नहीं है। डॉ संजीव कुमार ने कहा कि लघु पत्रिकाओं के सामने समय-समय पर नई-नई चुनौतियां आती रही हैं। वर्तमान में अपने स्तर को बरकरार रखना लघु पत्रिकाओं के सामने सबसे बड़ी चुनौती है। सीमित पाठकों और सीमित पठन क्षेत्र की वजह से लघु पत्रिकाओं के प्रकाशक-सम्पादक अपने पाठकों के प्रति बहुत अधिक जवाबदेह नहीं रहे हैं। ऐसे में एक संपादक को अपनी नैतिक जवाबदेही समझनी चाहिए।
आज के तकनीकी एवं डिजिटल दौर से प्रिंट माध्यम की तुलना करते हुए उन्होंने कहा कि डिजिटल माध्यम में वह स्थायित्व नहीं है जो प्रिंट माध्यम में है यद्यपि प्रिंट माध्यम में प्रकाशन की रफ्तार डिजिटल माध्यम की अपेक्षा कम है, फिर भी इस देरी की वजह से इस माध्यम का अपना सुख और संभावनाएं हैं। फर्राटा माध्यमों से टकराव को उन्होंने लघु पत्रिकाओं के लिए एक और चुनौती बताया।
आर्थिक रूप से अक्षमता को भी मुश्किल चुनौती के रूप में देखते हुए उन्होंने कहा कि ऐसे में विज्ञापनों से आने वाला पैसा बहुत मददगार साबित हो सकता है परंतु पाठक संख्या की सीमितता के कारण साहित्यिक पत्रिकाओं के पास विज्ञापन नहीं के बारबर है। उन्होंने लघु पत्रिकाओं के प्रसार का छोटा नेटवर्क होना भी एक कठिन चुनौती बताया।
विद्यार्थियों से सवाल-जवाब सत्र में संजीव कुमार ने कहा कि वर्तमान में जबकि संचार माध्यमों पर एक तरह से सरकारी कब्जा हो चुका है, ऐसे में लघु पत्रिकाएं वास्तविकता को दर्ज करने का एक सशक्त माध्यम बन कर सामने आई हैं। आने वाले समय में कृत्रिम बौद्धिकता (आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस) के दौर में लेखक और लघु पत्रिकाओं की प्रासंगिकता के सवाल पर उन्होंने कहा कि तकनीक कभी रचनात्मकता की जगह नहीं ले सकती है। रचनात्मक साहित्य बनी हुई लीक से अलग होता है और इसी में उसकी सार्थकता है । साहित्यिक पत्रिकाओं में आर्थिक लाभ ना होने के सवाल पर उन्होंने कहा कि साहित्यिक पत्रिकाओं का उद्देश्य कभी आर्थिक लाभ रहा ही नहीं। उन्होंने यह भी कहा कि दूसरे माध्यमों द्वारा रुचि को भ्रष्ट करने वाली सस्ती चीजें अगर परोसी भी जाती हैं तो उनके खिलाफ संघर्ष करना लघु पत्रिकाओं की जिम्मेदारी है। सवाल जवाब सत्र में प्रश्नों का संयोजन द्वितीय वर्ष की छात्रा दिशा ग्रोवर ने किया।
कार्यक्रम की शुरुआत में विभाग प्रभारी डॉ. पल्लव ने दीपक सिन्हा का संक्षिप्त परिचय देते हुए कहा कि अपने विद्वान् अध्यापक और मनीषी बैद्धिक की स्मृति में हिंदी विभाग हर वर्ष इस व्याख्यानमाला का आयोजन करता है। डॉ संजीव कुमार ने दीपक सिन्हा के साथ अपने संस्मरण साझा करते हुए कहा कि दीपक जी के संपर्क में आने पर ही उनको ज्ञात हुआ कि समाज और राजनीति से जुड़ने के लिए साहित्यिक पत्रिकाएं कितनी आवश्यक है। डॉ संजीव कुमार का परिचय दे रहे विभाग के प्राध्यापक नौशाद अली ने बताया कि ‘आलोचना’ और ‘नया पथ’ के सम्पादन के साथ संजीव कुमार अपनी लेखकीय प्रतिबद्धताओं और सामाजिक सक्रियताओं के लिए भी प्रतिष्ठित हैं।
डॉ संजीव कुमार के व्याख्यान के बाद विभाग प्रभारी डॉ. पल्लव ने हिंदी साहित्य सभा द्वारा राष्ट्रीय स्तर पर आयोजित लघुकथा/कहानी एवं निबंध प्रतियोगिताओं के परिणाम भी घोषित किए । निबंध प्रतियोगिता में जहां हिंदू कॉलेज की कुमारी अंशिका ने प्रथम स्थान प्राप्त किया वहीं कहानी प्रतियोगिता में मिरांडा हाउस की आकृति सिंह राठौर पहले स्थान पर रहीं। आयोजन में विभाग के विद्यार्थियों के साथ अन्य महाविद्यालयों के शिक्षक और साहित्य प्रेमी भी उपस्थित थे। अंत में महासचिव प्रखर दीक्षित ने कार्यक्रम की सफलता के लिए सभी का आभार व्यक्त किया।