इन दिनों पूरी दुनिया कोरोना वायरस से जूझ रही है. इससे लड़ने और इसे परास्त करने के लिए विश्वव्यापी मुहिम चल रही है. मानवता एक लंबे समय के बाद इस तरह के खतरे का सामना कर रही है. किसी ज्योतिषी ने यह भविष्यवाणी नहीं की थी कि पूरी दुनिया पर इस तरह की मुसीबत आने वाली है.
सामान्य समय में जब कोई व्यक्ति किसी गंभीर बीमारी से ग्रस्त हो जाता है तो वह या उसे चाहने वाले आराधना स्थलों पर जाकर ईश्वर से उसकी जान बचाने की गुहार लगाते हैं. निःसंदेह वे ईश्वर पर पूरी तरह निर्भर नहीं रहते. वे अस्पतालों में रोगी का इलाज भी कराते हैं. इस समय सभी धर्मों के शीर्ष आराधना स्थलों पर ताले जड़े हुए हैं, चाहे वह वेटिकन हो, मक्का, बालाजी, शिरडी या वैष्णोदेवी. पुरोहित, पादरी और मौलवी, जो लोगों का संदेश ईश्वर तक पहुंचाते हैं, स्वयं को कोरोना से बचाने में लगे हुए हैं और उनके भक्तगण अपनी-अपनी सरकारों की सलाह पर अमल करने का प्रयास कर रहे हैं. ये सलाहें वैज्ञानिकों और डाक्टरों से विचार-विमर्श पर आधारित हैं.
सोशल मीडिया में इन दिनों दो दिलचस्प संदेश ट्रेंड कर रहे हैं. एक है, ‘र्साइंस आन डयूटी, रिलीजन आन हालिडे’ (विज्ञान मुस्तैद है, धर्म छुट्टी मना रहा है), दूसरा है ‘गॉड इज़ नाट पावरफुल’ (ईश्वर शक्तिशाली नहीं है). नास्तिकों सहित कुछ ऐसे लेखक, जो अपनी बात खुलकर कहने से सकुचाते नहीं हैं, का विचार है कि जब मानवता एक गंभीर संकट के दौर से गुजर रही है उस समय ईश्वर भाग गया है. कई धर्मों का पुरोहित वर्ग श्रद्धालुओं को सलाह दे रहा है कि वे अपने घरों में प्रार्थना करें. अजान हो रही है परंतु वह अब मस्जिद में आने का बुलावा नहीं होती. अब वह खुदा के बंदों को यह याद दिलाती है कि वे अपने घरों में नमाज अता करें. यही बात चर्चों में होने वाले संडे मास और मंदिरों और अन्य तीर्थस्थानों पर होने वाली पूजाओं और आरतियों के बारे में भी सही है. यहां तक कि कुछ भगवानों को मास्क पहना दिए गए हैं ताकि कोरोना से उनकी रक्षा हो सके!
ईश्वर के अस्तित्व के संबंध में अनंतकाल से बहस होती रही है. कहा जाता है कि ईश्वर इस दुनिया का निर्माता और रक्षक है. फिर, क्या कारण है कि इस कठिन समय में पुरोहित वर्ग दूर से तमाशा देख रहा है. कुछ बाबा अस्पष्ट सलाहें दे रहे हैं. एक बाबा, जिन्हें उनके अनुयायी भगवान मानते थे और जो अब जेल में हैं, इस आधार पर जमानत चाह रहे हैं कि जेल में उन्हें कोरोना का खतरा है. अगर ईश्वर सर्वशक्तिमान है तो वह दुनिया को इस मुसीबत से क्यों नहीं बचा रहा है? क्या कारण है कि इस जानलेवा वायरस से मानवता की रक्षा करने का भार केवल विज्ञान के कंधों पर है?
इतिहास गवाह है कि विज्ञान को अपने सिद्धांतों को स्थापित करने के लिए लंबा और कठिन संघर्ष करना पड़ा है. पुरोहित वर्ग हमेशा से विज्ञान के विरोध में खड़ा रहा है. रोमन कैथोलिक चर्च, जो कि दुनिया का सबसे संगठित पुरोहित वर्ग है, वैज्ञानिक खोजों और वैज्ञानिकों का विरोधी रहा है. कापरनिकस से लेकर गैलिलियो तक सभी को चर्च के कोप का शिकार बनना पड़ा. अन्य धर्मों का पुरोहित वर्ग इतना संगठित नहीं है. इस्लाम में आधिकारिक रूप से पुरोहित वर्ग के लिए कोई जगह नहीं है परंतु वहां भी यह वर्ग है. सभी धर्मों के पुरोहित वर्ग हमेशा शासकों के पिट्ठू और सामाजिक रिश्तों में यथास्थितिवाद के पोषक रहे हैं. पुरोहित वर्ग ने कभी वर्ग, नस्ल व लिंग के आधार पर भेदभाव का विरोध नहीं किया. पुरोहित वर्ग ने हमेशा राजाओं और जमींदारों को ईश्वर का प्रतिरूप बताया ताकि लोग इन भगवानों के लिए कमरतोड़ मेहनत करते रहें और इसके बाद भी कोई शिकायत न करें. पुरोहित वर्ग का यह दावा रहा है कि धार्मिक ग्रंथों में जो कुछ लिखा है वह सटीक, अचूक और परम सत्य है जिसे चुनौती नहीं दी जा सकती.
उत्पादन के वैज्ञानिक साधनों के विकास से दुनिया में औद्योगिक क्रांति का सूत्रपात हुआ. इस क्रांति के बाद पुरोहित वर्ग ने भी अपनी भूमिका बदल ली. औद्योगिक युग में भी वे प्रासंगिक और महत्वपूर्ण बने रहे. इस वर्ग का जोर कर्मकांडों पर रहा और ईश्वर के कथित वास स्थलों को महत्वपूर्ण और पवित्र बताने में उसने कभी कोई कसर बाकी नहीं रखी.
ये सभी तर्क उचित और सही हैं परंतु धर्म के आलोचकों द्वारा धर्म के एक महत्वपूर्ण पक्ष को नजरअंदाज किया जा रहा है. और वह यह है कि सभी धर्मों के पैगंबर अपने काल के क्रांतिकारी रहे हैं और उन्होंने प्रेम व करूणा जैसे मानवीय मूल्यों को प्रोत्साहित किया है. आखिर भक्ति और सूफी संत भी धर्म का हिस्सा थे परंतु उन्होंने शोषणकारी व्यवस्था का विरोध किया और समाज में सद्भाव और शांति को बढ़ावा दिया. धर्म का एक और पक्ष महत्वपूर्ण है और वह यह कि धर्म इस क्रूर और पत्थर दिल दुनिया में कष्ट और परेशानियां भोग रहे लोगों का संबल होता है. हमें यह भी नहीं भूलना चाहिए कि कई धर्मों जैसे बौद्ध धर्म में ईश्वर की अवधारणा नहीं है.
परालौकिक शक्ति की अवधारणा भी समय के साथ बदलती रही है. आदि मानव प्रकृति पूजक था. फिर बहुदेववाद आया. उसके बाद एकेश्वरवाद और फिर आई निराकार ईश्वर की अवधारणा. नास्तिकता भी मानव इतिहास का हिस्सा रही है. भारत में चार्वाक से लेकर भगतसिंह और पेरियार जैसे विख्यात नास्तिक हुए हैं. धर्म का उपयोग बादशाहों और सम्राटों द्वारा अपने साम्राज्यवादी मंसूबों को पूरा करने के लिए किया जाता रहा है. धर्मयुद्ध, क्रूसेड और जिहाद, दरअसल, शासकों के अपने साम्राज्यों की सीमा को विस्तार देने के उपक्रम के अलग-अलग नाम हैं. आज की दुनिया में भी धर्म का इस्तेमाल राष्ट्रों द्वारा अपने-अपने स्वार्थों की पूर्ति के लिए किया जा रहा है. दुनिया के कच्चे तेल के संसाधनों पर कब्जा करने की अपनी लिप्सा के चलते अमरीका ने पहले अल्कायदा को खड़ा किया. अल्कायदा आज ‘म्यूटेट’ होकर इस्लामिक स्टेट बन चुका है और भस्मासुर साबित हो रहा है. अमरीका ने अल्कायदा को 800 करोड़ डालर और 7,000 टन हथियार उपलब्ध करवाए और अब वह ऐसा व्यवहार कर रहा है मानो आईएस की आतंकी गतिविधियों से उसका कोई लेनादेना नहीं है.
आज धर्म के नाम पर राजनीति भी की जा रही है. चाहे कट्टरवादी, मुसलमान हों, ईसाई हों अथवा हिन्दू या बौद्ध, उन्हें धर्मों के नैतिक मूल्यों से कोई मतलब नहीं है. वे दुनिया को लैंगिक और सामाजिक ऊँचनीच के अंधेरे युग में वापिस ढ़केलना चाहते हैं. भारत में हिन्दू धर्म के नाम पर राजनीति करने वालों में हिन्दुत्ववादी अग्रणी हैं. वे कहते हैं कि चाहे प्लास्टिक सर्जरी हो या जैनेटिक इंजीनियरिंग, चाहे हवाईजहाज हों या इंटरनेट, प्राचीन भारत में वे सब थे. यहां तक कि न्यूटन का गुरूत्वाकर्षण का सिद्धांत भी हमारे प्राचीन ऋषि-मुनियों को ज्ञात था!
हम केवल उम्मीद कर सकते हैं कि हमारी सरकारों, वैज्ञानिकों और डाक्टरों की मदद से हमारी दुनिया कोरोना के कहर से निपट सकेगी. हमें यह भी उम्मीद है कि मानवता पर आई यह आपदा हमें अधिक तार्किक बनाएगी और हम अंधविश्वास और अंधश्रद्धा पर विजय प्राप्त करेंगे.
लेखक आईआईटी, मुंबई में पढ़ाते थे और सन् 2007 के नेशनल कम्यूनल हार्मोनी एवार्ड से सम्मानित हैं । (हिंदी रूपांतरणः अमरीश हरदेनिया )