जब लोकतंत्र के रास्ते से एक कमअक्ल, मूर्ख और सनकी आदमी किसी देश की सत्ता पर काबिज हो जाता है तो वही होता है जो अमेरिका में हुआ है। रिपब्लिकन पार्टी की हार से बौखलाए हुए डोनाल्ड ट्रम्प के समर्थक अमेरिका माता की जय बोलकर संसद में घुस गए। सदन के सभापति की कुर्सी को चौराहे का चबूतरा समझकर सेल्फी लेने लगे। उपराष्ट्रपति माइक पेंस के दफ्तर को तहस-नहस कर दिया। और इस तरह चार साल पहले लेट्स मेक अमेरिका ग्रेट अगेन यानि अमेरिका को फिर से महान बनाएं का नारा लोकतंत्र की बदली हुई आहट के साथ अमेरिका की सबसे वीभत्स शर्मिंदगी में बदल गया। बहाना वही पुराना- राष्ट्रवाद।
इस दृश्य से 28 साल पीछे लौटिए। राष्ट्रवाद का यही नारा पूरे उत्तर भारत में गूंज रहा था। गुंडे, मवाली और उचक्के 6 दिसंबर 1992 को अयोध्या की बाबरी मस्जिद के ढांचे पर चढ़ आए थे। उसके बाद जो हुआ, सब जानते हैं। दोनों घटनाओं के अपने-अपने आयाम हैं, लेकिन एक बात दोनों में समान है। दोनों ही तस्वीरों में गुंडों की पलटन अपनी बात मनवाने के लिए किसी इमारत पर नहीं, लोकतंत्र की छाती पर चढ़ बैठी थी।
किसी नेता के पीछे चलती हुई भीड़ से सबसे पहली उसकी चेतना छीन ली जाती है। उसकी समझदारी छीन ली जाती है। उसकी आत्मा से इंसानियत के एहसास को मारकर उसके हाथ में थमा दिए जाते हैं पत्थर, लाठियां, गंड़ासे, गोलियां और बंदूकें। आप दुनिया के किसी भी कोने में रहते हों इसे अपने आसपास की घटनाओं से जोड़कर देखिए। आपको ऐसे लोग इफ़रात में नजर आएंगे। ऐसे लोग पत्रकार हो सकते हैं, विचारक हो सकते हैं, सामाजिक कार्यकर्ता हो सकते हैं, नेता हो सकते हैं, महंत, मंत्री, मुख्यमंत्री या किसी देश के प्रधान हो सकते हैं। आप उनके चेहरों और उनके इरादों को देखिए, आपको समझ में आ जाएगा कि बाबरी मस्जिद की गुंबद या अमेरिकी संसद की गुंबद पर चढ़ जाने की मानसिकता दरअसल एक जैसी है। वो लोकतंत्र से, संविधान की सत्ता से, भाईचारे से, इंसानियत से, एकता से, अमन से, प्रेम और मुस्कुराहटों से नफ़रत करते हैं।
लेट्स मेक अमेरिका ग्रेट अगेन के नारे पर अब दुनिया हंस रही है। यह नारा ढाई सौ साल पुराने अमेरिकी लोकतंत्र का सबसे भद्दा नारा बन चुका है। अमेरिकी इतिहास के पन्नों से इस शर्मिंदगी को धोया नहीं जा सकेगा कि उसने डोनाल्ड ट्रम्प जैसे सनकी और गंदे आदमी को चार साल तक अपने विश्वास का ईश्वर बनाकर रखा था। ट्रम्प के बचे हुए 14 दिन के कार्यकाल के बारे में वाशिंगटन पोस्ट ने लिखा कि ये आदमी एक पल भी इस कुर्सी पर बैठे रहने के लायक नहीं है। इसे तुरंत हटाया जाना चाहिए। एक भारतीय के तौर पर हालांकि इस शर्मिंदगी के धब्बे हमारे दामन पर भी हैं।
बीती 20 फरवरी, 2020 को उस सनकी, गंदे और सिरफिरे आदमी के स्वागत में इस देश की सत्ता ने पूरे देश की तरफ से नमस्ते ट्रंप कर डाला था। इसके छह महीने पहले 22 सितंबर, 2019 को हमारे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ह्यूस्टन के स्टेडियम में उस गंदे और सिरफिरे आदमी का प्रचार कर रहे थे। उसकी शान में कसीदे पढ़ रहे थे। ट्रम्प, मोदी को महान बताते रहे और मोदी, ट्रम्प को अपना दोस्त। कमाल की बात ये है कि दोनों ही आयोजनों को सरकारी बताने की हिम्मत नहीं सरकार की। मतलब करोड़ों फूंककर पूरे शहर में रैली निकाल देने की जो राष्ट्रीय तस्वीरें कायम की गई थीं वो एक दूसरे की व्यक्तिगत खुशी और मौज मस्ती के लिए थीं। उन तस्वीरों के पीछे उनके वो अंधभक्त थे जिन्हें लोकतंत्र का मतलब सिर्फ एक नेता समझ में आता है। जब उस नेता को लोकतंत्र खारिज कर देता है तो वो दंगा-फसाद और हमले पर उतर आते हैं।
आज जब वाशिंगटन डीसी की सड़कें, गलियां और यहां तक कि सीनेट, कांग्रेस और कैपिटल तक की दीवारें ट्रम्प की दिमागी गंदगी और लिजलिजेपन के छींटों से गंदी हो चुकी हैं, तो ह्यूस्टन से अहमदाबाद तक की वो तस्वीरें और डरावनी, और फूहड़ लगने लगी हैं। क्या आप कल्पना कर सकते हैं कि किसी देश का राष्ट्रपति या प्रधान अपनी निगरानी में अपने ही देश की संसद पर हमले करवा दे? संभव है, बशर्ते उस आदमी के पीछे मूर्ख, जाहिल और सिरफिरे भक्तों की कतारें हों। उसके पीछे एक उजड्ड ट्रोल आर्मी हो।
डोनाल्ड ट्रम्प के इशारों पर आंख मूंदकर हमला कर देने वाले भक्तों ने अमेरिकी लोकतंत्र के झंडे को इतिहास के पन्नों में बेशर्मी और शर्मिंदगी के अध्याय में बदलकर छोड़ दिया है। अमेरिका का पूरा लोकतंत्र साम्राज्यवाद से संचालित है, लेकिन बाहरी दुनिया के लिए। आंतरिक लोकतंत्र जॉर्ज वाशिंगटन से लेकर थॉमस जेफरसन और रूजवेल्ट तक एक पवित्र विचार रहा है। इस लिहाज से मौजूदा घटनाओं के संदर्भ में अमेरिकी लोकतंत्र से बहुत कुछ सीखे जाने की जरूरत है। गलाकाट दलगत राजनीति के बावजूद ट्रम्प के साथियों ने उनके इशारे पर नाचने से इंकार कर दिया है।
राष्ट्रपति चुनाव में हार की घोषणा हो जाने के बाद भी ट्रम्प हार स्वीकार करने को तैयार नहीं थे। उन्होंने बाकायदा नतीजों के विरोध में वाशिंगटन में नंगेपन पर उतरे अपने समर्थकों को संबोधित किया और भड़काया। डोनाल्ड ट्रम्प दबाव बनाते रहे हैं कि चुनाव में धांधली हुई है और इसके नतीजों को रद्द किया जाए। उन्होंने अपने उपराष्ट्रपति माइक पेंस से कुछ राज्यों के नतीजे रद्द करने की घोषणा करने को कहा, लेकिन पेंस ने इससे सीधे इंकार कर दिया। उन्होंने टेक्सास के जज से खुद अनुरोध किया कि स्विंग स्टेट में ट्रम्प की हार को रोकने के लिए लगाई गई याचिका पर विचार करने की कोई जरूरत नहीं जबकि माइक पेंस चाहते तो वो ट्रम्प के लिए रास्ता बना सकते थे। पेंस को इसके लिए तैयार करने के लिए ट्रम्प ने उन्हें लंच पर बुलाया और कहा कि आप हारे हुए कुछ राज्यों के नतीजों को टाल दें। उन्होंने लोकतंत्र के पक्ष में एक सिरफिरे नेता के पागलपन को मानने से साफ मना कर दिया और कहा कि मेरे पास ये अधिकार नहीं है।
इसके बाद ट्रम्प और उनके समर्थक पेंस पर भड़क उठे। ट्रंप समर्थक गुंडों ने कैपिटल में बने उनके दफ्तर पर धावा बोल दिया। अमेरिकी संसद के सुरक्षा गार्ड्स ने उन्हें रोकने के लिए गोली चलाई जिसमें एक महिला की मौत हो गई।
जो अमेरिकी लोकतंत्र का कमाल है वो ये कि डोनाल्ड ट्रम्प के कई साथी सांसद और मंत्री ही खुलकर उनके खिलाफ खड़े हो गए हैं। ट्रम्प के भरोसेमंद अफसरों में देश के सर्वोच्च पदों से इस्तीफों की झड़ी लग गई। अमेरिका के उप राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार मैट पोटिंजर, व्हाइट हाउस की डिप्टी प्रेस सेक्रेटरी सारा मैथ्यू और फर्स्ट लेडी मेलानिया ट्रंप की चीफ ऑफ स्टाफ स्टेफनी ग्रिशम ने हिंसा के विरोध में तुरंत इस्तीफा दे दिया। राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार रॉबर्ट ब्रायन और डिप्टी चीफ ऑफ स्टाफ क्रिस लिडेल ने भी इस्तीफे की पेशकश कर डाली। कांग्रेस ने पेंस से अनुरोध किया कि वो अमेरिकी संविधान के 25वें संशोधन के तहत राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प को हटाने की घोषणा करें और संसद में उनके राष्ट्रपति रहते हुए उनके खिलाफ महाभियोग लाया जाए।
कायदे से ट्रम्प केवल 12 दिन के लिए राष्ट्रपति बचे हैं, लेकिन उनके साथ मिलकर अमेरिका पर राज करने वाले उनके साथी तक उन्हें एक दिन भी और राष्ट्रपति नहीं देखना चाहते। जो बिडेन ने तो इसे राजद्रोह तक कह दिया और ट्रंप को लगभग आदेश देते हुए कहा कि अगर आप नेशनल टेलीविजन पर आकर इस पागलपन को नहीं रोकते तो हमें लोकतंत्र को बचाने के लिए कोई भी कदम उठाना पड़ेगा। हक्के-बक्के ट्रम्प ने तुरंत एलान किया कि 20 जनवरी को वो कुर्सी छोड़ देंगे।
सिरफिरे ट्रम्प ने अमेरिकी लोकतंत्र को किस कदर शर्मिंदा कर दिया है इसका अंदाजा इससे लगाइए कि यूट्यूब ने राजधानी वाशिंगटन डीसी में दिए गए उनके भाषण को नफरत भरा मानते हुए अपने प्लेटफॉर्म से हटा दिया। फेसबुक और इंस्टाग्राम ने उन्हें पहले 24 घंटे के लिए बैन कर दिया और फिर अनिश्चितकाल के लिए। मार्क जुकरबर्ग ने कहा कि सत्ता हस्तांतरण तक ऐसे आदमी का सोशल मीडिया पर रहना अमेरिकी लोकतंत्र के लिए ठीक नहीं है। ट्विटर ने भी ट्रंप के अकाउंट को 12 घंटे के लिए रद्द कर दिया और चेतावनी दी कि अगर आप अपनी हरकतों से बाज़ नहीं आए तो हम हमेशा-हमेशा के लिए आपका अकाउंट बंद कर देंगे। सोचिए कि ट्रम्प के कई साथी सांसद कह रहे हैं कि इस आदमी के खिलाफ महाभियोग लाया जाना चाहिए ताकि आइंदा कोई सिरफिरा राष्ट्रपति की कुर्सी की तौहीन करने की हिम्मत न करे।
कैपिटल में ही हाउस ऑफ रिप्रेजेंटेटिव और सीनेट की संयुक्त बैठक होनी थी जिसमें खुद ट्रम्प को बिडेन के चुने जाने के एलान करना था, लेकिन वो कायरों की तरह जनमत का सम्मान करने से भाग खड़े हुए। बाद में कांग्रेस ने इसकी घोषणा की। क्या आप कल्पना कर सकते हैं कि किसी शहर का मेयर कर्फ्यू लगाने के बाद अपने देश के राष्ट्रपति तक को बिना इजाजत राष्ट्रपति निवास से बाहर निकलने पर रोक लगा दे? अमेरिका में ऐसा ही हुआ है। लोकतंत्र नाजुक वक्त में ऐसे ही फैसलों से जिंदा रहता है। ताकि कोई पागल या सनकी संवैधानिक कुर्सियों को मज़ाक न बना दे।
सौज- जनपथ