श्वेता चौहान
महान सर्गोन की पुत्री एनहेडुआना जिसका समय 2285 से 2250 ईसा पूर्व माना जाता है। सर्गोन, प्राचीन सुमेर सभ्यता जिसे उस समय मेसोपोटामिया और अभी इराक की भूमि कहा जाता है, का प्रतापी राजा था। तीन महान ग्रंथों के अलावा एनहेडुआना ने लगभग 42 कवितायेँ और लिखीं हैं जिसमें उसने अपने जीवन की सारी आशाओं, कामनाओं, उदासी, पीड़ा और संसार की खुशियों और परेशानियों को बड़े ही मार्मिक लय में प्रस्तुत किया है। ईसाई चर्च की प्रारम्भिक कविताओं में भी एनहेडुआना की कविताओं की झलक साफ दिखायी देती है। उसके जीवनकाल में ही उसका असर उसके साहित्य के माध्यम से सुमेरियन सभा में छाया रहा।
साहित्य किसी भाषा, संस्कृति और विचारों की विशेषताओं को पन्ने पर उतारने का नाम है जिसके माध्यम से न जाने कितने ही साहित्यकार अमर हो गए और हमें सौंप गए वो धरोहरें जिन्हें आज भी समाज सहेज कर रखा करते हैं ताकि वे अगली पीढ़ियों को शिक्षा दे सकें लेकिन क्या आपको मालूम है कि विश्व का सबसे पहला इतिहास किसने लिखा था? प्राचीन इतिहास के पन्नों और इतिहासकारों की खोज पर गौर करें तो विश्व का सर्वप्रथम साहित्य लिखने वाली एक महिला थी।
महान सर्गोन की पुत्री एनहेडुआना जिसका समय 2285 से 2250 ईसा पूर्व माना जाता है। सर्गोन, प्राचीन सुमेर सभ्यता जिसे उस समय मेसोपोटामिया और अभी इराक की भूमि कहा जाता है, का प्रतापी राजा था। एनहेडुआना सर्गोन की गोद ली हुई बेटी थी या जैविक बेटी; इसपर इतिहासकारों में मतभेद है लेकिन सर्गोन उसे बहुत सम्मान देता था और उसने एनहेडुआना को वहाँ के सबसे प्रसिद्ध जिगरत मंदिर के पुजारियों में श्रेष्ठ स्थान दिया था। उसे अक्काद और सुमेरियन देवों को खुश रखने का कार्य सौंपा गया था जिससे सर्गोन के साम्राज्य में समृद्धि और शांति बनी रहे।
एनहेडुआना के नाम का अर्थ होता है ‘अन की मुख्य पुजारिन’। अन सुमेर सभ्यता में आकाश के देवता को कहा जाता था। एनहेडुआना तीन शब्दों से मिलकर बना है। एन यानी मुख्य पुजारिन , हेडु का अर्थ है आभूषण और आना से तात्पर्य है स्वर्ग की….. इस तरह से इसका पूरा मतलब हुआ “स्वर्ग की आभूषण मुख्य पुजारिन”। ऐसा बिल्कुल भी नहीं है कि एनहेडुआना को यह पद, सम्मान काफी आसानी से मिल गया इसके लिए उसे कई विरोधों का भी सामना करना पड़ा था। लुगल-आने नामक व्यक्ति ने उसका काफी विरोध किया तथा तख्तापलट करने का भी प्रयास किया था और उसने एनहेडुआना को निर्वासन तक दे दिया था। फिर भी एनहेडुआना ने हार नहीं मानी और खुद को साबित कर मुख्य जिगरत के प्रधान पुजारिन का पद हासिल किया। अक्काद साम्राज्य कई छोटे छोटे राज्यों से मिलकर बना था इसलिए यहां कई प्रकार के विद्रोह होते रहते थे। एनहेडुआना की एक जिम्मेदारी उन्हें धर्म के दायरे में बांध कर, शांति बहाल कर अक्काद साम्राज्य को मजबूत और समृद्ध बनाये रखने की भी थी।
उसने अपने मन्त्रों और प्रार्थनाओं में देवताओं की नए ढंग से व्याख्या की और सर्गोन के शासन में सभी लोगों को समान धार्मिक विश्वासों में बांध कर रखने का प्रयत्न किया और साम्राज्य में होने वाली अराजकता को उसने धार्मिक दायरे में लाकर पाप घोषित कर दिया। यह सर्गोन के महान साम्राज्य के लिए बहुत ही खास बात रही। एनहेडुआना ने अपनी शुरू की रचनओं में भावों को बड़े मार्मिक ढंग से पेश किया है जिसमें उन्होंने लुगल-आने की उससे लड़ाई और राज्य से निर्वासित कर देने की पीड़ा को अभिव्यक्त किया। उन्होंने इश्तर के नाम से प्रचलित महान देवी इनन्ना जिन्हें प्रेम और कामना की देवी का दर्ज प्राप्त है, को अपनी मदद के लिए कविता के माध्यम से गुहार लगाई। इस प्रार्थना में उन्होंने इनन्ना से देवता अन को उसका सन्देश देने को कहा कि – ‘मुझे उसने (लुगल-आने) जीते- जी ही मार दिया जैसे कि मैं कभी वहाँ रही ही नहीं | मैंने रौशनी को छूना चाहा तो रौशनी मुझे जलाने लगी और जब मैंने कभी अँधेरे में शरण लेनी चाही तो उसने तूफानों से मुझे डराया। मेरा मधुमय मुख कड़वाहटों से भर गया। इनन्ना ! तुम अन को बताओ कि किस तरह से लुगल- आने ने मेरा भाग्य मुझसे छीन लिया। मुझे यकीन है कि जब अन ये सुनेंगे तो वो मुझे सारी मुश्किलों से आज़ाद कर देंगे। इनन्ना ने उसकी प्रार्थना सुन ली और देवताओं ने उसका पुराना खोया हुआ पद और गौरव उसे लौटा दिया। उर के प्राचीन समय में वह इस पद को प्राप्त करने वाली पहली महिला मानी जाती है जिसने उस पद पर रहते हुए वो काम किये जो सदियों तक अनुयायियों के लिए एक प्रेरणास्रोत बने रहे।
उसकी ख्याति सुमेर के महान साहित्य इन्निनसगुरा (करुणामयी स्वामिनी), निनमेसारा ( इनन्ना स्तुति ) और इन्निनमेहुसा ( भीषण शक्तियों की देवी) जो देवी इआना के लिए रचे गये, की रचना के बाद युगांत तक अमर हो गयी। इन्हीं श्लोकों में उसने अक्काद के लोगों के लिए देवताओं की फिर से व्याख्या की जिससे कि अक्काद साम्राज्य सर्गोन के शासन में अक्षुण्ण बना रहे और धार्मिक झगड़े समाप्त हो जाएं। इस तरह से उसे भारत में तुलसीदास के समान ही महान माना जा सकता है जिन्होंने सारे देवताओं को एक सूत्र में समाहित कर सदियों से एक-दूसरे का विरोध करते चले आ रहे वैष्णव, शैव, शाक्त ,गाणपत्य और सौर ये पांच तरह के सनातनी को एक साथ कर दिया।
लुगल-आने के प्रयासों के बावजूद वह इसके बाद 40 वर्षों तक मुख्य पुजारिन के पद पर बनी रही। इन तीन महान ग्रंथों के अलावा एनहेडुआना ने लगभग 42 कवितायेँ और लिखीं हैं जिसमें उसने अपने जीवन की सारी आशाओं, कामनाओं, उदासी, पीड़ा और संसार की खुशियों और परेशानियों को बड़े ही मार्मिक लय में प्रस्तुत किया है। उनकी रचनायें बड़ी वैयक्तिक और स्पष्ट हैं। साथ ही एक-दूसरे के हर सुख-दुःख में साथ खड़े होने का पाठ भी पढ़ाती हैं। उनके द्वारा लिखी गई रचनाएँ हमें सिखाती है कि कैसे हम एक साथ इस नश्वर संसार में उम्मीदों और डर के बीच बेहतर और बिना डर के ज़िन्दगी जी सकें। ईसाई चर्च की प्रारम्भिक कविताओं में भी एनहेडुआना की कविताओं की झलक साफ दिखायी देती है। उसके जीवनकाल में ही उसका असर उसके साहित्य के माध्यम से सुमेरियन सभा में छाया रहा।
सौज- एफआईआई